32000 कारों से 2.5 मिलियन तक

punjabkesari.in Wednesday, Jan 28, 2015 - 04:23 AM (IST)

नई दिल्ली (बी.ए.): मारुति सुजूकी (भारत) के अध्यक्ष आर.सी. भार्गव ने कहा, ‘‘मैंने वर्ष 1964 में सरकारी आबंटन के माध्यम से अपने 23,000 रुपए में प्रीमियर पद्मिनी कार खरीदी थी। वर्ष 1960 और 70 के दशक में एक प्रीमियर पद्मिनी कार खरीदने के लिए प्रतीक्षा अवधि कई साल थी क्योंकि एक फास्ट ट्रैक आबंटन के लिए एक ही रास्ता था या तो सरकार या फिर प्रीमियर ऑटोमोबाइल में दोस्तों का होना।

वर्ष 1970 के दशक एक कार कंपनी के साथ रहे एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कार बिक्री के परिणाम एक तरह से मौन थे। इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स सोसायटी (सियाम) के आंकड़ों के अनुसार, कुल यात्री वाहनों की बिक्री का आंकड़ा (कार और उपयोगिता वाहन) वर्ष 1970 में 32,000 इकाइयां था जो आज के समय में कम से कम एक ही हफ्ते में बिक जाती हैं। वर्ष 2014 में 2.5 लाख इकाइयों की बिक्री हुई, विश्वस्तर पर भारत छठे सबसे बड़े कार बाजार के रूप में भारत रहा, जबकि विकास दर में भारत नंबर 2 पर था।

कार निर्माताओं की छवि एकाधिकार और तकनीकी रूप से आलसी के रूप में देखी जाती थी। बाजार में केवल 5 मुख्य खिलाड़ी थे जिनमें से 4 देसी थे, प्रीमियर ऑटोमोबाइल (प्रीमियर पद्मिनी), हिंदुस्तान मोटर्स (अम्बैसेडर), महिंद्रा एंड महिंद्रा (विली जीप के लिए प्रसिद्ध) और स्टैंडर्ड मोर्टस (अब बंद हो चुकी है)। केवल एक विदेशी इतालवी कार निर्माता कंपनी फिएट ने वालचंद समूह की प्रीमियर ऑटोमोबाइल से अपनी कारों का स्थानीय उत्पादन के लिए गठबंधन किया था। इस दौरान वर्ष 1983 में सरकार समर्थित मारुति सुजूकी के प्रवेश और भारत ऑटो विनिर्माण क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ .डी.आई.) की अनुमति दी है। मारुति सुजूकी के बाजार में आने के बाद बैंकों ने इस कारोबार में प्रवेश किया। सिटी बैंक और बैंक ऑफ अमरीका 1980 के दशक में प्रमुख खिलाड़ी थे। बाद में वर्ष 1998 में आया आई.सी.आई.सी.आई. बैंक 2002 तक ऑटो वित्तपोषण में प्रमुख खिलाड़ी बना रहा जिससे बहुत कम समय में ऑटो वित्तपोषण में वृद्धि हुई है।


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