‘युवा वर्ग’ ही किसी देश का भविष्य होता है

punjabkesari.in Wednesday, Jul 15, 2020 - 03:00 AM (IST)

यह साधारण ज्ञान वाली बात है कि कोरोना वायरस काल के बाद का जीवन पहले की तरह नहीं होगा। इसका प्रभाव अंतिम तौर पर सभी प्रकार की गतिविधियों के ऊपर लम्बे समय तक रह सकता है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था तथा जीवन को बचाने में जुटी हुई हैं। 

महामारी ने लॉकडाऊन को प्रेरित किया ताकि अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाया जा सके। इससे वैश्विक आपूॢत चेन अस्त-व्यस्त होकर रह गई और सभी क्षेत्रों के लोगों के जीवन प्रभावित हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने की काल दी। स्वयं जीविका कमाने की राह पर देश को आगे बढ़ाने के लिए मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की। ऐसे ही समय आत्मनिर्भर भारत की काल का मतलब संरक्षणवाद या फिर अलगाववाद को प्रोत्साहित करना नहीं बल्कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को लम्बी अवधि में विनिर्माण, मूलभूत सुविधाओं को विकसित कर, निवेश को प्रोत्साहित कर तथा उपभोक्ता के नेतृत्व वाली वृद्धि पर खड़ा करना है। 

बिचौलियों के लूटने की प्रवृत्ति तथा प्रतिकूल हालातों के चलते भारतीय किसान को इसका भुगतान भुगतना पड़ा है। किसानों को अपने उत्पाद को कहीं भी बेचने का कदम सही दिशा में उठाया गया है और इससे उनको उचित मूल्य मिल सकेगा। किसानों को जरूरी कौशल तथा ई-नाम जैसे लाभप्रद उपायों से मदद मिलेगी। 

आत्मनिर्भर भारत के तहत उठाए गए विभिन्न पगों का मकसद अर्थव्यवस्था में जान फूंकना है तथा शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों की जीविकाओं का संरक्षण करना है। इसमें कोई शक नहीं कि युवा वर्ग किसी भी देश का भविष्य होता है। मगर भारत अन्य देशों को पछाड़ सकता है क्योंकि देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 आयु वर्ग से नीचे की है तथा 50 प्रतिशत की आबादी 25 आयु वर्ग से नीचे की है। इतनी बड़ी शिक्षित युवा जनसंख्या के साथ भारत जनसांख्यिकी के मकसद को समझता है और इसका उपयोग मानवीय स्रोतों के बड़े पावर हाऊस के तौर पर किया जा  सकता है। वास्तविकता यह है कि भारतीय विभिन्न एम.एन.सीका की तरफ रुख कर रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि देश में ज्ञान तथा टेलैंट का कोई अकाल नहीं है। हालांकि समय की पुकार युवाओं में कौशल बढ़ाने की है ताकि तकनीक वाली 21वीं शताब्दी की रोजगार की जरूरतों को पूरा किया जा सके। 

विभिन्न ज्ञान क्षेत्र के कार्यालय विशेषकर आई.टी. सैक्टर में अब कम से कम स्टाफ की क्षमता दिखाई दे रही है। लॉकडाऊन के चलते तथा कोरोना वायरस के फैलाव पर अंकुश लगाने के प्रयास में ज्यादातर संगठन अपने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कह रहे हैं। विश्व युवा कौशल दिवस के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सही ढंग से इसका थीम ‘एक लचीले युवक के लिए कौशल’ को चुना है। कोविड-19 महामारी के दौरान इसे आभासी बैठकों के माध्यम से मनाया जा रहा है। भविष्य की नौकरियों के लिए अपेक्षित कौशल आज के युवाओं के पास होने वाले कौशल से बिल्कुल भिन्न होगा। रोजगार कौशल के रूप में युवाओं को न केवल आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है बल्कि किसी भी हालात से पार पाने के लिए उनमें क्षमता होने की जरूरत है। 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कोविड-19 महामारी तथा लॉकडाऊन के उपायों ने विश्वव्यापी तकनीक तथा वोकेशनल शिक्षा एवं ट्रेङ्क्षनग को बंद कर दिया है। इससे कौशल विकास की निरंतरता को खतरा बढ़ गया है। स्कूलों के बंद होने से करीब 70 प्रतिशत विश्व के छात्र प्रभावित हुए हैं। आत्मनिर्भर भारत की कॉल को देखते हुए स्थानीय स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक के विकासों को देखा जा रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों की क्षमताओं ने आत्मनिर्भरता के मामले में एक नई मिसाल कायम की है। लाखों पी.पी.ई. किटें, वैंटीलेटर के निर्माण के लिए आटोमोबाइल उद्योगों के साथ सहयोग, डी.आर.डी.ओ. द्वारा 70 से ज्यादा ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों का निर्माण, आई.टी.आई. रुड़की द्वारा विकसित कम लागत के वैंटीलेटरों ‘प्राणा-वायु’, कोरोना वायरस से निपटने के लिए कर्नाटक में स्टार्टअप द्वारा विकसित उत्पाद, भारतीय वैज्ञानिकों की योग्यता को दर्शाता है। 

अब स्थानीय वस्तुओं को प्रोत्साहित करने की आवाज उठ रही है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा से निपटने के लिए भारतीय उत्पादों को सभी क्षेत्रों में बेहतर बनाया जा रहा है। पब्लिक सैक्टर यूनिट तथा प्राइवेट सैक्टर यूनिट आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में एक बढिय़ा भूमिका अदा कर सकते हैं। नि:संदेह निजी क्षेत्र को आर. एंड डी. में निवेश स्थापित करने होंगे। हाईटैक मैडीकल डिवाइसिज तथा संयंत्रों जैसे क्षेत्रों में भारत ने निर्यात में कमी लाने के लिए अपने विनिर्माण को आगे बढ़ाया है और इससे बेशकीमती विदेशी मुद्रा को बचाया जा सका है। अब समय है कि 130 करोड़ भारतवासी अपनी एकजुटता, धैर्य तथा मिलकर साथ चलने की क्षमता को दिखाएं। हम विश्व को दिखा सकते हैं कि 21वीं शताब्दी भारत की है इसे हम अनुशासन, समर्पण तथा स्वयं पर भरोसे के माध्यम से विश्व को दिखा सकते हैं।-एम. वेंकैया नायडू माननीय उपराष्ट्रपति


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