क्या मोदी भारतीयों के आर्थिक हालात बेहतर बनाएंगे

punjabkesari.in Thursday, May 30, 2019 - 03:03 AM (IST)

चुनावों के बाद की टिप्पणियां यह दर्शाती हैं कि पी.एम. नरेन्द्र मोदी एक तरह के पॉलीटिकल यूनिकॉर्न हैं जिन्होंने आॢथक तथा राजनीतिक सफलता के बीच बनाए गए लिंक को ललकारा है। 6.6 प्रतिशत की सुस्त रफ्तार से चल रही अर्थव्यवस्था, अभी तक की चरमसीमा तक पहुंची बेरोजगारी तथा कृषि आय में हो रही निरंतर कमी के बावजूद राजनीतिक पंडितों की सोच से विपरीत मोदी ने अपनी प्रसिद्धि को लयबद्ध किया है। भाजपा तथा राजग केवल जीते ही नहीं बल्कि अपने 2014 वाले प्रदर्शन को भी बेहतर किया है। राजनीतिक विश्लेषकों ने तो अपने सिर तक खुजला लिए और अर्थशास्त्री भी नरेन्द्र मोदी को मिले जनादेश से चकित रह गए। मगर हमें तीन कारणों पर नजर दौड़ानी होगी।

युवा मत
पहला कारण युवा मत है। भारत में 35 वर्ष की आयु से नीचे दो-तिहाई भारतीय युवा वर्ग से आते हैं। वहीं 15 से 16 मिलियन लोगों ने प्रथम बार मतदान किया। 2014 के बाद 2019 के आम चुनावों में 84 मिलियन युवा लोग मत डालने के लिए प्रथम बार योग्य हुए। मत डालने वालों में औसतन लोगों की तुलना में युवा मतदाताओं की हिस्सेदारी ज्यादा रही। सर्वे ने भी यही जताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं। 

यह युवा वर्ग अभी राजनीति के मायाजाल में नहीं फंसा है क्योंकि उन्होंने अभी तक संवेदनशील राजनीतिक असफलताओं को नहीं झेला है। युवा वर्ग पूरी उम्मीद के साथ कार्य शक्ति में प्रवेश कर रहा है और वह इसके लिए एक सशक्त नेतृत्व की ओर देख रहा है। मगर 5 में से एक शहरी पुरुष तथा 4 में से एक शहरी महिला ने अभी नौकरियों को नहीं खोजा है। कृषि आय के निरंतर घटने से इससे जुड़े 60 से 70 लाख लोग अन्य क्षेत्रों में रोजगार की तलाश में कृषि क्षेत्र को छोड़ रहे हैं। 

12 से 13 मिलियन युवा भारतीय कार्य शक्ति में प्रत्येक वर्ष दाखिल होते हैं और इसके लिए भारत को 20 मिलियन नौकरियों की प्रत्येक वर्ष दरकार है। अगले चुनाव में 80 से 100 मिलियन युवा तथा बेरोजगार मतदाता और शामिल होंगे, जोकि बेरोजगारी के चलते आक्रोश में होंगे। यह चुनाव पूर्णतया मोदी नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमता है जिसका अभिप्राय है कि जब युवा मतदाताओं का मोहभंग होगा तब वे मोदी को दोष देंगे। 5 से 7 वर्ष नौकरी की तलाश में भटकने वाले युवा अपने दादा-पड़दादा की तरह संयम रखने वाले नहीं हैं। 

कट्टरपंथियों की भरमार
दूसरे कारण पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि राजनीतिक पंडितों ने धर्मनिरपेक्षता तथा आर्थिक सुधारों के अंत की घोषणा कर दी है। वे लोग तो पूरी तरह ही विश्वास रखे हुए हैं कि हालात अब निराशाजनक हो चुके हैं। उनका कहना है कि भारत नफरत भरे कट्टरपंथियों से भरा पड़ा है। 900 मिलियन योग्य वोटरों में से 67.11 प्रतिशत ने ही मत डाला जोकि अभी तक में सबसे ऊंची दर है। 

600 मिलियन मतदाताओं में से भाजपा का वोट शेयर 37.4 प्रतिशत रहा। मोदी की अपार जीत इसी के कारण हुई। यहां पर यह कहना ठीक होगा कि यदि रोजगार मुख्य मुद्दा बने तब व्यक्तिगत वोटिंग के अंक मायने रखते हैं। 1.35 अरब की आबादी वाले देश में 225 मिलियन लोगों ने मोदी के लिए मत डाला और इन वोटरों ने भाजपा के हिन्दुत्व एजैंडे के लिए वोट दिया। कुछ तो मोदी के नेतृत्व से प्रभावित थे। 

दूसरी ओर अन्यों ने विभिन्न स्कीमों जैसे बिजली, एल.पी.जी., शौचालय इत्यादि से प्रभावित हो मोदी को मत डाला और यदि अगली बार बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी तो सत्ताधारी पार्टी का चुनावी गणित अपने आप नाटकीय ढंग से बदल जाएगा। इसलिए यह कहना गलत होगा कि आर्थिक हालात भारतीयों पर असर नहीं डालते। हिन्दू लहर कुछ ही भारतीयों तक सीमित रह जाती है, जो अपने आर्थिक हालातों के कमजोर होने के बावजूद भाजपा के भरोसेमंद माने जाते हैं। अन्यों के लिए आर्थिक हालात महत्ता रखते हैं। आज के बेपरवाह कल के असंतुष्ट मतदाता बनेंगे और हिन्दू लहर के शुभचिंतक लोग ज्यादा देर तक भाजपा के भरोसेमंद वोटर नहीं होंगे यदि उनका आर्थिक स्तर ऊपर न उठा तो। 

घोर गरीबी
तीसरा कारण ऊपर के दोनों कारणों से भिन्न है क्योंकि यह गाजर है बल्कि एक लाठी नहीं। मोदी इतिहास के पन्नों पर अपनी छवि छोड़ जाएंगे और वह इस बात से भली-भांति वाकिफ हैं। इतिहास ऐसे नेताओं के योग्य नहीं होता जो आर्थिक सर्वनाश करते हैं। 75 मिलियन अभी भी घोर गरीबी (1.90 डालर प्रतिदिन आय वाले लोग) के अंधकार में जी रहे हैं और भारत जैसे देश में 450 मिलियन नागरिकों का तीसरा हिस्सा 3.20 डालर प्रतिदिन की आय पर आश्रित है। 

पी.वी. नरसिम्हा राव जनता के एक प्यारे नेता थे जोकि आर्थिक वृद्धि के चलते इतिहास के पन्नों में हीरो का दर्जा पाए हुए हैं। उन्होंने 1991 में आॢथक सुधार किए, जिससे गरीबी दूर हुई। मोदी के पास तो और भी बेहतर मौका है कि वह लाखों लोगों का जीवन और भी बढिय़ा बनाएं तथा यदि वह भारतीयों को तरक्की की ओर ले जाएंगे तो वह फरिश्ता कहलाएंगे। लंबी दौड़ में आर्थिक हालात हमेशा ही व्यक्तिगत तथा समूचे लोगों की किस्मत को तय करते हैं और हमारे प्रधानमंत्री इस बात को हमेशा याद रखेंगे और उनके नेतृत्व पर किए जा रहे वर्तमान व्याख्यान को नजरअंदाज करेंगे।-एस.राजगोपालन


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