जैट एयरवेज के इतने घोटाले सामने आने पर भी सरकार मौन क्यों

punjabkesari.in Monday, May 07, 2018 - 04:29 AM (IST)

पिछले वर्ष से 3 लेखों में हमने देश की सबसे बड़ी निजी एयरलाइंस ‘जैट एयरवेज’ और भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के भ्रष्ट अधिकारियों की सांठ-गांठ के बारे में बताया था। इस घोटाले के तार बहुत दूर तक जुड़े हुए हैं। वह चाहे यात्रियों की सुरक्षा की, या देश की शान माने जाने वाले महाराजा एयर इंडिया की बिक्री की बात हो। ऐसे सभी घोटालों में जैट एयरवेज का किसी न किसी तरह से कोई न कोई हाथ जरूर है। 

आश्चर्य की बात यह है कि इतने घोटाले सामने आने के बाद सत्ता के गलियारों और मीडिया में उफ  तक नहीं हो रही जबकि इस पर अब तक तूफान मच जाना चाहिए था। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय की ‘एक्टिंग मुख्य न्यायाधीश’ न्यायमूर्ति गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की खंडपीठ ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय, डी.जी.सी.ए. व जैट एयरवेज को कालचक्र ब्यूरो के समाचार सम्पादक राजनीश कपूर की जनहित याचिका पर नोटिस दिया। उन तमाम आरोपों पर इन तीनों से जवाब तलब किया गया  जो कालचक्र ने इनके विरुद्ध उजागर लिए हैं। याचिका में इन तीनों प्रतिवादियों पर सप्रमाण ऐसे कई संगीन आरोप लगे हैं, जिनकी जांच अगर निष्पक्ष रूप से होती है तो इस मंत्रालय के कई वर्तमान व भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी संकट में आ जाएंगे। 

इस याचिका का एक आरोप जैट एयरवेज के एक ऐसे अधिकारी, कैप्टन अजय सिंह के विरुद्ध  है, जो पहले जैट एयरवेज में उच्च पद पर आसीन था और 2 साल के लिए उसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन डी.जी.सी.ए. में संयुक्त सचिव के पद के बराबर नियुक्त किया गया था। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि कालचक्र की आर.टी.आई. के जवाब में डी.जी.सी.ए. ने लिखा कि ‘‘उनके पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कैप्टन अजय सिंह ने डी.जी.सी.ए. के ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर नियुक्त होने से पहले जैट एयरवेज में अपना त्याग पत्र दिया है या नहीं। 

कानून के जानकार इसे ‘कन्फ्लिक्ट आफ  इन्ट्रेस्ट’ मानते हैं। समय-समय पर कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर रहकर जैट एयरवेज को काफी फायदा पहुंचाया। जब ‘कालचक्र न्यूज’ ने एक अन्य आर.टी.आई. में डी.जी.सी.ए. से यह पूछा कि कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद से किस दिन इस्तीफा दिया? उसका इस्तीफा किस दिन मंजूर हुआ? उन्हें इस पद से किस दिन मुक्त किया गया? और इस्तीफा जमा करने व पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन अजय सिंह ने डी.जी.सी.ए. में जैट एयरवेज से संबंधित कितनी फाइलों का निस्तारण किया? जवाब में यह पता लगा कि इस्तीफा देने और पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन सिंह ने जैट एयरवेज से संबंधित 66 फाइलों का निस्तारण किया। यह अनैतिक आचरण है। 

दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने सुनवाई के दौरान इस बात पर सरकारी वकील को खूब लताड़ा और कहा कि ‘‘यदि यह बात सच है तो यह काफी संगीन मामला है’’। यदि कोई निजी एयरलाइंस से आया हुआ व्यक्ति नागरिेक उड्डयन मंत्रालय में ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर नियुक्त होता है, तो यह बात स्वाभाविक है कि उसकी वफादारी अपनी एयरलाइन्स के प्रति होगी न कि सरकार के प्रति। ‘सी.एफ.ओ.आई.’ का काम सभी एयरलाइंस के आप्रेशंस की जांच करना व उनकी खामियां मिलने पर समुचित कार्रवाई करना होता है। इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि भारत के राष्ट्रीय कैरियर ‘एयर इंडिया’ को मुनाफे वाले रूट व समय न देकर  घाटे की ओर धकेलने का काम यहीं से शुरू हुआ है। अब जब एयर इंडिया के विनिवेश की बात हो रही है, तो उसे खरीदने के लिए जैट एयरवेज ने भी दिलचस्पी दिखाई। 

यह अलग बात है कि कालचक्र द्वारा दायर याचिका व लगभग 100 आर.टी.आई. के चलते जैट एयरवेज ने एयर  इंडिया के विनिवेश में ‘‘काफी कड़े नियम व कानून’’ का हवाला देते हुए, अपना नाम वापस ले लिया। कालचक्र की याचिका पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय, डी.जी.सी.ए. व जैट एयरवेज को नोटिस की खबर, भारत की एक मुख्य समाचार एजैंसी ने चलाई लेकिन कुछ अखबारों को छोड़कर यह खबर सभी जगह दबाई गई। यह हमें हवाला कांड के दिनों की याद दिलाता है। जब हमारे आरोपों को राष्ट्रीय मीडिया ने गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन जब 1996 में 115 ताकतवर लोगों को भारत के इतिहास में पहली बार भ्रष्टाचार के मामले में चार्जशीट किया गया, तो पूरी दुनिया के मीडिया को इस पर लिखना पड़ा। 

जैट के मामले में कालचक्र की याचिका पर हुए नोटिस को अब लगभग 3 हफ्ते हो चुके हैं और राष्ट्रीय मीडिया के कई ऐसे मित्रों ने हमसे इस मामले की पूरी जानकारी व याचिका की प्रति भी ले ली है और यह भरोसा दिलाया कि वे इस पर खबर जरूर करेंगे पर उनकी खबर रुकवा दी गई। पता चला है कि जैट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल का ‘पी.आर.’ विभाग उन सभी को, जो जरा भी शोर मचाने की ताकत रखते हैं, मुफ्त की हवाई टिकट या अन्य प्रलोभन देकर, शांत कर देता है। अब वे व्यक्ति चाहे राजनीतिज्ञ हों, चाहे वकील या मीडिया के साथी, वो देर-सवेर इस सब के आगे घुटने टेक ही देते हैं लेकिन ‘बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी’। चूंकि आम भारतीय को आज भी न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है और वह न्यायपालिका के समक्ष सभी तथ्यों को रखकर उसके फैसले का इंतजार करता है।-विनीत नारायण


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Pardeep

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