भूख के खिलाफ अधूरी लड़ाई क्यों?

punjabkesari.in Wednesday, Oct 23, 2024 - 05:26 AM (IST)

आजादी  के 78 वर्ष बीत जाने के बाद भी भुखमरी देश के लिए कलंक बनी हुई है। बीते साढ़े सात दशक से भारत इस कलंक को मिटाने का प्रयास में लगा हुआ है, लेकिन ग्लोबल हंगर इंडैक्स की ताजा रिपोर्ट भारत में भुखमरी के लिए किए गए तमाम प्रयासों की पोल खोलती नजर आती है। कुपोषण से ग्रस्त देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में इस साल भारत 105वें पायदान पर जा पहुंचा है। इससे पता चलता है कि देश में कुपोषण की स्थिति बहुत गंभीर है, जो देश की आर्थिक वृद्धि के बावजूद व्यापक भूख के उच्च स्तर को दर्शाती है। 

रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में 27.3 के स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है। पिछले कई सालों से भारत निचले दर्जे पर ही रहा है। पिछले साल यानी 2023 में124 देशों में भारत का स्थान 111वां था और उससे पहले यानी 2022 में 117वां। थोड़े सुधार के बावजूद हालत अभी भी चिंताजनक है। ग्लोबल हंगर इंडैक्स में भारत अपने पड़ोसी देशों नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश और म्यांमार से भी पीछे है। साथ ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ यह उन 42 देशों की सूची में शामिल है, जिनमें भूख का स्तर बहुत ज्यादा है। 

असल बात यह है कि हम अभी भी दुनिया को भुखमरी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से छुटकारा दिलाने के लक्ष्य की दिशा वांछित रफ्तार से काफी पीछे हैं। दुनिया में स्वस्थ आहार तक पहुंच भी एक गंभीर मुद्दा है, जो दुनिया की एक बड़ी आबादी को प्रभावित कर रहा है। साफ  है, भूख की समस्या को पूरी तरह समाप्त करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय किया जाना बाकी है। लेकिन गौर करने वाली अहम बात यह है कि एक ओर हमारे और आपके घर में रोज सुबह रात का बचा हुआ खाना बासी समझ कर फैंक दिया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं होता और वे भूख से मर रहे हैं। दुनिया में पैदा किए जाने वाले खाद्य पदार्थ में से करीब आधा हर साल बिना खाए सड़ जाता है। 

यदि अपने देश की बात करें तो यहां भी खाद्य सुरक्षा और भुखमरी में कमी के लिए तमाम योजनाएं चला रही हैं। इन पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, किन्तु इनका पूरा लाभ गरीबों तक अब भी नहीं पहुंच पाता। यही वजह है कि अभी भी बड़े पैमाने पर लोगों को खाना नसीब नहीं हो रहा। भारत की सबसे बड़ी विडंबना यह रही है कि अन्न का विशाल भंडार होने के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार होते हैं। अगर इसके कारणों की पड़ताल करें तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल का अभाव, अकुशल नौकरशाही, भ्रष्ट सिस्टम और भंडारण क्षमता के अभाव में अन्न की बर्बादी जैसे कारक सामने आते हैं। यह ऐसे देश की तस्वीर है, जहां दुनिया के सबसे ज्यादा अमीर लोग रहते हैं, उनके पास इतना पैसा है कि कुछ व्यक्तियों के खजाने के बल पर पूरे देश में खुशहाली-समृद्धि लाई जा सकती है। लेकिन जो गरीब है, वह इतना गरीब है कि जीवनयापन जैसी बुनियादी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर सकता। 

यही वजह है कि सरकार की तमाम नीतियां सवालों के घेरे में आ जाती हैं। यह वस्तुस्थिति आर्थिक प्रगति का दावा करने वाली अब तक के सभी सरकारी दावों पर सवाल खड़ा करती है। भारत की यह विरोधाभासी छवि वाकई सोचने को बाध्य कर देती है। विकास के इस भयावह असंतुलन को दूर करने के लिए नीतियों और प्राथमिकता में बदलाव करने की जरूरत है। देश में भुखमरी मिटाने पर जितना धन खर्च हुआ, वह कम नहीं। केंद्र सरकार के प्रत्येक बजट का बड़ा भाग आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के उत्थान हेतु आबंटित रहता है, किन्तु अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिलते। ऐसा लगता है कि प्रयासों में या तो प्रतिबद्धता नहीं है या उनकी दिशा ही गलत है।

खाद्यान्न सुरक्षा तभी संभव है, जब सभी लोगों को हर समय पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक तत्वों से युक्त खाद्यान्न मिले, जो उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। इसलिए कई मोर्चों पर एक साथ मजबूत इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा। कुल मिलाकर ग्लोबल हंगर इंडैक्स भारत के लिए गंभीर चिंताएं पैदा करता है। यह दर्शाता है कि वास्तविक विकास का आशय केवल जी.डी.पी. वृद्धि नहीं, बल्कि सभी के लिए भोजन और पोषण जैसी बुनियादी जरूरतों तक पहुंच सुनिश्चित करने में है। 

ऐसा नहीं है कि दुनिया के देशों में इसके लिए जरूरी धन और संसाधनों की कोई कमी है, दरअसल समस्या मंशा, इरादे और सबसे ज्यादा आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण की है। वर्तमान समय में हर देश विकास के पथ पर आगे बढऩे का दावा करता है। ऐसे में जब कोई ऐसा आंकड़ा सामने आ जाए, जो आपको यह बताए कि अभी तो देश ‘भूख’ जैसी समस्या को भी हल नहीं कर पाया है, तब विकास के आंकड़े झूठे लगने लगते हैं। यह कैसा विकास है जिसमें बड़ी संख्या में लोगों को भोजन भी उपलब्ध नहीं।-रवि शंकर


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