‘सैनिकों से सौतेले बेटों जैसा व्यवहार क्यों’

punjabkesari.in Tuesday, Jan 26, 2021 - 05:45 AM (IST)

सैन्य वर्ग से संबंधित मामलों के बारे में सैंकड़ों की गिनती में लैफ्टीनैंट जनरल रैंक तक के प्रसिद्ध पूर्व सैनिकों ने इंडियन एक्स सॢवसमैन मूवमैंट (आई.ई.एस.एम.) की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र की पुष्टि की है। 

उल्लेखनीय है कि हाल ही में आई.ई.एस.एम. के चेयरमैन मेजर जनरल सतबीर सिंह की ओर से प्रधानमंत्री को विस्तारपूर्वक विवरणों सहित लिखे पत्र में उनका ध्यान सरकार की ओर से सैनिकों के साथ सौतेले बेटों जैसे व्यवहार के प्रति आकर्षित करते हुए यह मांग की है कि सैनिकों की समस्याओं का समाधान ढूंढा जाए। पत्र में तीनों सेनाओं के 630 अधिकारियों के विवरण दर्ज हैं जिन्होंने सेना और पूर्व सैनिकों की समस्याओं को सुलझाने के लिए तसदीकशुदा अपना समर्थन दिया है। इस बारे विचार-चर्चा करना जरूरी भी बनता है ताकि स्थिति स्पष्ट की जा सके। 

भेदभाव क्यों 
सेना तथा सिविल के कर्मियों का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए पांच पन्नों वाले पत्र के साथ 25 पन्नों की फाइल में यह दर्ज है कि स्वतंत्रता के फौरन बाद सैनिकों का वेतन तथा पैंशन कम कर दी गई मगर सिविलियन की नहीं। उल्लेखनीय है कि चीफ आफ आर्मी स्टाफ की पैंशन प्रतिमाह 1000 रुपए थी जबकि सर्वोच्च सिविलियन अधिकारी की पैंशन 416.50 रुपए प्रति माह थी। छठा वेतन आयोग जोकि 1 जनवरी 2006  से लागू किया गया, उसके अनुसार दोनों वर्गों के बराबर के अधिकारियों की पैंशन बढ़ा कर 45,000 रुपए कर दी गई जिसके फलस्वरूप एक सिविलियन अधिकारी की पैंशन तो 108 गुणा बढ़ाई गई जबकि आर्मी चीफ की पैंशन केवल 45 प्रतिशत ही बढ़ी और यह भेदभाव सिपाही रैंक तक पहुंचा और बढ़ता ही गया। 

नॉन फंक्शनल फाइनांशियल अपग्रेडेशन (एन.एफ.एफ.यू.) का सिद्धांत सिविल के सभी ग्रेड ‘ए’ वाले अधिकारियों तक लागू कर दिया गया परंतु सेना के लिए नहीं। जनरल रैंक तक पहुंचने के लिए हजारों की गिनती में विभिन्न रैंकों के निचले रैंक के अधिकारियों का नम्बर कट जाता है तथा फिर उन्हें वेतन, भत्ते तथा पैंशन इत्यादि उसी रैंक की मिलती है जहां पर उनको सुपरसीड कर दिया गया था जबकि सिविलियन अधिकारी ज्यादातर अतिरिक्त सचिव तक पहुंच ही जाते हैं तथा वेतन और पैंशन भी बढ़ती जाती है। 

इस तरह जम्मू-कश्मीर, शिलांग, सियाचिन जैसे क्षेत्रों तथा नौसेना में सबमैरीन भत्ते इत्यादि सेना के कम तथा सिविलियन के ज्यादा हैं। आखिर ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि बाबूशाही फैसला करने के लिए मंत्रियों के निकट ए.सी. कमरों में बैठ कर मंत्रियों को चक्रव्यूह में डाल कर उनसे अपने हितों के लिए जैसा चाहे वैसी अनुमति ले सकते हैं? इसी तरह संसद सदस्य या विधायक पार्टी स्तर से ऊपर उठकर एकजुट होकर अपना वेतन तथा भत्ते बढ़वा लेते हैं मगर जब सीमाओं की रक्षा में जुटे हुए जवान बेहद खराब मौसम में भी गलवान घाटी जैसे कठिन क्षेत्रों में अपनी जानें न्यौछावर कर रहे होते हैं तो कभी उनका डी.ए. कट तथा फिर पैंशन को कम करने वाली नीतियां तैयार की जाती हैं। क्या यह सब भेदभावपूर्ण नहीं है? 

वन रैंक वन पैंशन (ओ.आर.ओ.पी.)
एन.डी.ए. सरकार की ओर से वन रैंक वन पैंशन (ओ.आर.ओ.पी.) को संसद में मंजूरी देने के बाद पहली जुलाई 2014 से स्कीम को लागू करने के बारे 7 नवम्बर, 2015 को अधिसूचना जारी की गई। इस अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया कि 5 साल बाद मतलब कि पहली जुलाई 2019 को इसकी बराबरी कर दी जाएगी। हालांकि नियम अनुसार प्रत्येक वर्ष इसकी बराबरी होनी चाहिए थी। 

पूर्व सैनिकों के संगठनों ने इन भेदभावों को दूर करने के बारे में दिवंगत रक्षा मंत्री मनोहर पाॢरकर को बताया था। उसके बाद सरकार ने इन कमियों पर विचार करने के लिए पटना हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य जज एल. नरसिम्हा रैड्डी की एक सदस्यीय ज्यूडीशियल कमेटी नियुक्त की जिसने दिसम्बर, 2015 को अधिसूचना जारी कर दी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 24 अक्तूबर, 2016 को रक्षामंत्री को सौंपी जिसको अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया, लागू करना तो एक ओर रहा।

आई.ई.एस.एम. के चेयरमैन मेजर जनरल सतबीर सिंह, ग्रुप कैप्टन वी.के. गांधी तथा कुछ अन्यों ने सुप्रीमकोर्ट का सहारा लिया। सुप्रीमकोर्ट ने 1 मई, 2019 को रक्षा मंत्रालय को आदेश जारी किया कि याचिकाकत्र्ताओं को बुला कर कमियां दूर की जाएं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह  के साथ बैठक भी हुई। किसानों की बैठकों की तरह सैनिकों की बैठकें भी बेनतीजा ही रहीं। 

सुप्रीमकोर्ट की ओर से तारीख पर तारीख सुनवाई के लिए दी जा रही है मगर सरकार अभी भी टाल-मटोल करती जा रही है। अभी मैं यह लिख ही रहा था कि समाचारपत्रों में मुझे समाचार पढऩे को मिला कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने 20 लाख सैनिकों का 40 प्रतिशत वेतन बढ़ाने का फैसला किया है। भारत में परमात्मा और सेना को दुख की घड़ी में ही याद किया जाता है जो उचित नहीं।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)
 


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