कब होगा ‘बेरोजगारी’ का अंत

punjabkesari.in Thursday, Oct 24, 2019 - 02:15 AM (IST)

बेरोजगारी से अभिप्राय: श्रमिकों की मांग तथा पूर्ति में असंतुलन से है। बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण निर्धनता है। कोई भी राष्ट्र बेरोजगारी के होते हुए अपने आप को कल्याणकारी कह सकता है, यह बात केवल कल्पना ही लगती है। जिस राष्ट्र में प्रतिवर्ष 4 लाख युवा बेकारों की भीड़ में आ जुड़ते हैं, उसका आर्थिक विकास संदिग्ध ही रहेगा। 

मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है कि राष्ट्र में उपलब्ध श्रम पूंजी का उचित प्रयोग हो। एक बेकार व्यक्ति न केवल अपना आत्मविश्वास खो देता है बल्कि परिवार व समाज पर बोझ भी बनता है। उसमें आक्रोश एवं व्यवस्था के प्रति विद्रोह का भाव भी पैदा हो जाता है जिसके लिए वह समाज विरोधी कार्यों में जुट सकता है और बुरी आदतों का शिकार भी बन सकता है। 

आज भारत के सामने जो समस्याएं फन फैलाए खड़ी हैं, उनमें से एक महत्वपूर्ण समस्या है बेरोजगारी। लोगों के पास हाथ हैं पर काम नहीं, प्रशिक्षण है पर नौकरी नहीं, योजनाएं और उत्साह है पर अवसर नहीं हैं। बेरोजगारी समाज के लिए एक अभिशाप है। इससे न केवल व्यक्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है बल्कि यह पूरे समाज को भी प्रभावित करती है। भारत में लगभग 135 करोड़ लोग रहते हैं। यहां पर बेरोजगारी की समस्या बहुत ही विकराल रूप धारण किए हुए है। यह किसी भी देश के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधी समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं जो बेरोजगारी का कारण बनते हैं। 

डिग्रियां, निराशा और चिंता
महाविद्यालय की डिग्री लेकर रोजगार की तलाश में भटकते हुए युवाओं के चेहरे पर निराशा और चिंता का भाव होना आजकल सामान्य-सी बात हो गई है। कभी-कभी रोजगार की तलाश में भटकता हुआ युवाअपनी डिग्रियां फाडऩे अथवा जलाने के लिए विवश दिखाई देता है। वह रात को देर तक बैठकर अखबारों के विज्ञापनों को पढ़ता है, आवेदन पत्र लिखता है, साक्षात्कार देता है और नौकरी न मिलने पर फिर रोजगार की तलाश में भटकता रहता है। घर के लोग उसे निकम्मा समझते हैं, समाज के लोग आवारा कहते हैं, वह निराशा की नींद सोता है और आंसुओं के खारे पानी को पीकर समाज को अपनी मौन व्यथा सुनाता है। 

कहने को तो भगवान ने यह दुनिया बनाई है पर बेरोजगार तो खुद अपनी एक अलग ही दुनिया बना लेते हैं जिसमें उनके अलावा और कोई नहीं रहता। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत लोगों को यह आशा थी कि देश में सबको रोजगार प्राप्त हो जाएगा किन्तु यह संभव नहीं हो सका और तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति बद से बदतर होती गई। यद्यपि निर्धनता, गंदगी, रोग, अशिक्षा और बेकारी-इन पांच राक्षसों ने संसार को विनाश की ओर प्रेरित किया है तथापि बेकारी इनमें सबसे भयानकतम है। 

समस्या सभी देशों में
बेरोजगारी की समस्या विकसित और विकासशील दोनों देशों में पाई जाती है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कीन्स बेरोजगारी को किसी भी समस्या से बड़ी समस्या मानता था। इसी कारण वह कहता था कि यदि किसी देश के पास बेरोजगारों से करवाने के लिए कोई भी काम न हो तो उनसे सिर्फ गड्ढे खुदवाकर उन्हें भरवाना चाहिए। ऐसा करवाने से बेरोजगार लोग भले ही कोई उत्पादक कार्य न करें लेकिन वे अनुत्पादक कार्यों में संलिप्त नहीं होंगे। एक मोटे अनुमान से भारत में बेरोजगारों की संख्या करोड़ों में है। 

इस वक्त देश में रोजगार की हालत पिछले 45 सालों में सबसे खराब है। नैशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एन.एस.एस.ओ.) के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पी.एल.एफ.एस.) के मुताबिक, साल 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी रही। रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 की बेरोजगारी दर 1972-73 के बाद सबसे ज्यादा है। देश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी जबकि ग्रामीण इलाकों में 5.3 फीसदी है। 15-29 साल के शहरी पुरुषों के बीच बेरोजगारी की दर 18.7 फीसदी है। 2011-12 में यह दर 8.1 फीसदी थी। 2017-18 में शहरी महिलाओं में 27.2 फीसदी बेरोजगारी थी जो 2011-12 में 13.1 फीसदी थी। 

वर्ष 2011-12 के दौरान श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 3.8 प्रतिशत है। देश के विभिन्न राज्यों में से गुजरात में बेरोजगारी दर सबसे कम 1 प्रतिशत है जबकि दिल्ली एवं महाराष्ट्र में 4.8 प्रतिशत एवं 2.8 प्रतिशत है। सर्वाधिक बेरोजगारी दर वाले राज्य केरल और पश्चिम बंगाल थे। इस सर्वे के अनुसार देश की महिलाओं की अनुमानित बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत थी। ऐसा भी नहीं है कि सरकार की तरफ से कोई कोशिश नहीं की जा रही है। 

केन्द्र और राज्य की प्रत्येक सरकार अपनी-अपनी तरफ से बेरोजगारी से निपटने के लिए योजनाएं प्रस्तुत कर रही है। पंजाब सरकार ने भी रोजगार मेले लगाकर तथा बेरोजगारी भत्ता देकर इस ओर कदम बढ़ाया है। सरकार की तरफ से इतनी कोशिशें होने के बावजूद भी इस तरफ बहुत ध्यान देने की जरूरत है। बेरोजगार तो बस इसी आस में जी रहे हैं कि : अपनी काबिलियत देखकर समंदर को पसीना आएगा,सरकार किसी की भी हो, पर अपना टाइम कब आएगा।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 


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