हरियाणा में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने का उद्देश्य क्या था
punjabkesari.in Monday, Aug 07, 2023 - 05:04 AM (IST)

यदि हरियाणा के कई जिलों में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने का उद्देश्य राजस्थान में चुनावी रुझान को ठीक करना, 2024 के आम चुनावों के लिए ‘उपयुक्त’ मूड बनाना, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के तीसरे कार्यकाल की संभावनाओं को बढ़ावा देना और कुछ तनाव फैलाना था तो मुझे डर है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भाजपा को बेहतर प्रदर्शन करना होगा। भाजपा के लिए सबसे बड़ी परेशानी की बात यह है कि उसके रास्ते में एक बाधा विकसित हो रही है जोकि जाट-मुस्लिम सामाजिक एकजुटता है। ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए रास्ता बनाने के लिए इस लगभग जैविक जाट-मुस्लिम विकास को बाधित करना होगा।
हरियाणा में मुसलमानों और जाटों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश चल रही है। पलवल के एक जाट गांव मंडकोला में बजरंग दल के सदस्यों ने एक सभा को संबोधित करते हुए ङ्क्षहदुओं को मुसलमानों के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। विभाजनकारी प्रयास बहुत दूर तक नहीं गया। अगले ही दिन पड़ोसी मुस्लिम गांव कोट में एक पंचायत हुई जो लगभग पूरी तरह से हर कीमत पर साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए समॢपत थी। यह भ्रामक है कि यह एक मुस्लिम गांव था। मुझे इसके बारे में समझाना होगा। स्थानीय व्यवस्था में ‘पाल’ एक खाप जाट या मेव समूह का हिस्सा है जो पारम्परिक सामाजिक पदानुक्रम को बनाए रखता है। कोट में पंचायत में मुस्लिम ‘पाल’-शिकलोट, मगरिया, डमरोटे तथा हिंदू पाल-रावत, सोशेल, सहरावत ने संयुक्त रूप से हर कीमत पर सद्भाव का समर्थन किया।
जो लोग पिछले 40 वर्षों में हिंदू और मुसलमानों के बीच झगड़े के आदी हो गए हैं उनके लिए यह एक पहेली बनी रहनी चाहिए कि भाजपा शासन के तहत पड़ोसी राज्य में दो प्रमुख समुदायों ने शांति का बंधन स्थापित किया है। पिछली शताब्दियों में इस सामंजस्य का एक कारण मेवों का खुद को हिंदू धर्म से धर्मांतरित मानवों का निर्भीक चिंतन था। वे अपने हिंदू वंश से प्राप्त संस्कृति पर गर्व करते थे। एक प्रगतिशील मेव से मेरी मुलाकात हुई। उसने अपना नाम बरकरार रखा जिससे स्पष्ट रूप से उसके वंश का पता चला। उसका नाम था जफर मेव यदुवंशी। हमारी जाति-धर्म आधारित व्यवस्था में मेव संस्कृति के एकीकृत पहलुओं को प्रशंसकों की भीड़ नहीं मिल पाई है। मुस्लिम सुधार आंदोलनों के उभार का प्रभाव पड़ा। सुधारवादी ‘मुल्ला’ को मेव संस्कृति भी ‘हिंदू’ लगी। हिंदू समाज धीरे-धीरे आर्य समाज और बाद में राजनीतिक हिंदू धर्म के प्रभाव में आ गया और ‘सुधरे हुए’ मेवों को ‘बहुत अधिक मुस्लिम’ पाया गया। दोनों तरफ से धक्कामुक्की होने पर कुछ मेव बदलने लगे।
जाटों के केंद्र के खिलाफ होने का एक साधारण कारण जाट आरक्षण के आंदोलन के प्रति आधिकारिक उदासीनता है। दूसरा यह कि जाटों और मुसलमानों को जोडऩे में बहुत अधिक महत्वपूर्ण किसान आंदोलन या किसानों का आंदोलन था जिसमें मेव जाटों के साथ खड़े थे। इस संबंध में पलवल, सोहना, गुरुग्राम के जाट हमारे सिख भाइयों को भावुकतापूर्ण याद करते हैं। जिस उदारता के साथ उन्होंने लंगर या भोजन केंद्र खोले, वह जाट क्षेत्र में किंवदंतियों की तरह है। इन बड़े भोजन केंद्रों को महीनों तक चलाने के लिए सिख संगठन को कभी-कभी जाटों की मदद की आवश्यकता होती थी। एक बार तो भोजन केंद्रों को सैंकड़ों लीटर दूध की जरूरत पड़ी। जाट जो कभी गाय और भैंस पालते थे कई मामलों में आजीविका के अन्य साधनों की ओर चले गए हैं। गुज्जर अब दुधारू पशु पालते हैं लेकिन परम्परागत रूप से उनका विरोध किया जाता है।
जाटों ने इस मामले में मदद करने से इंकार कर दिया। दूध की कमी को मेव मुस्लिम डेयरी किसानों ने पूरा किया। यह एक ऐसा तथ्य है जिसे जाट कभी नहीं भूलेंगे। हाल ही में महिला पहलवानों, जो जाट भी हैं, के आंदोलन में समुदाय को फिर से मुसलमानों का पूरा समर्थन मिला। दूसरे शब्दों में जाट और मुस्लिम हिंदू धर्म को मजबूत करने के बजरंग दल के प्रयासों के खिलाफ एकजुट हैं। जबकि ब्राह्मण, ठाकुर और गुज्जर विपरीत दिशा में हैं।
कैसे शुरू हुई परेशानी? : एंडी वारहोल ने कहा, ‘‘समाज उस स्तर पर पहुंच गया है जब हर कोई कुछ मिनटों के लिए प्रसिद्ध हो जाएगा।’’ इस समय राजस्थान और हरियाणा में सबसे कुख्यात बदमाश मोनू मानेसर और पिंटू बजरंगी हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने पिछले साल मई में राजस्थान में 2 मेव मुसलमानों को जिंदा जला दिया था। इस घटना और उसके बाद पुलिस की सुस्ती ने पूरे मेवात क्षेत्र में मुस्लिम गुस्से को भड़का दिया। गुस्सा उबल पड़ा। फिर जुलाई के अंत में फेसबुक पर पोस्ट में मोनू मानेसर और पिंटू बजरंगी की 31 जुलाई को हरियाणा के मेव बहुल नूंह में ननहर महादेव मंदिर से शुरू होने वाले विश्व हिंदू परिषद प्रायोजित यात्रा में भाग लेने की घोषणा की गई।
मोनू और पिंटू की फेसबुक पोस्ट में लोगों से बड़ी संख्या में उन्हें माला पहनाने के लिए आने को कहा गया। जब जुलूस शुरू हुआ तो मुस्लिम युवाओं ने पथराव किया लेकिन उनका मुख्य निशाना 2 अज्ञात लोग मोनू मानेसर और पिंटू बजरंगी थे। वे कहीं छुपे हुए थे? शायद आसपास खड़ी कारों में गाडिय़ां जला दी गईं। एक स्थानीय जाट नेता के छोटे से रहने वाले कमरे में हिंदू और मुस्लिम वकील, सामाजिक कार्यकत्र्ता, पंचायत नेता बारी-बारी से एक-दूसरे के प्रतिनिधि से बात करते थे। वे सभी एक ही बात कहते दिखे। तलवारों और लाठियों से लैस यात्रा में जाटों ने हिस्सा नहीं लिया। मुसलमान भी हथियारबंद होकर घेरने और अंधाधुंध हत्या करने की स्थिति में थे। साम्प्रदायिकता के बादल अभी भी मंडरा रहे हैं।-सईद नकवी