अधिकांश युवाओं के पास नौकरियां क्यों नहीं हैं?
punjabkesari.in Sunday, May 25, 2025 - 04:48 AM (IST)

सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ई.) क्षेत्र पर हाल ही में दो रिपोर्ट आई हैं, एक भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (एस.आई.बी.डी.आई.) की और दूसरी नीति आयोग की। दोनों ही आधिकारिक रिपोर्ट हैं। इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र उद्यमों का वाॢषक सर्वेक्षण(ए.एस.यू.एस.ई.) भी है।
बुनियादी तथ्य, विशेषताएं : सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ई.) क्षेत्र के बारे में कौन से बुनियादी तथ्य इन दोनों रिपोर्टों से प्राप्त किए जा सकते हैं?
वर्तमान वर्गीकरण के तहत, सूक्ष्म उद्यमों में निवेश सीमा 2.5 करोड़ रुपए तक और कारोबार सीमा 10 करोड़ रुपए तक है; लघु उद्यमों में 25 करोड़ रुपए तक और 100 करोड़ रुपए तक है; और मध्यम उद्यमों में 125 करोड़ रुपए तक और 500 करोड़ रुपए तक है। इस वर्गीकरण से यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारत में कुछ हजार उद्यमों को छोड़कर बाकी सभी उद्यम एम.एस.एम.ई. हैं।
एम.एस.एम.ई. की कुल संख्या का वितरण माइक्रो के पक्ष में है। हिस्सेदारी माइक्रो-98.64 प्रतिशत; लघु-1.24 प्रतिशत; और मध्यम-केवल 0.12 प्रतिशत है।
स्वामित्व में प्रोपराइटरशिप (59 प्रतिशत), भागीदारी (16प्रतिशत), एल.एल.पी. (1 प्रतिशत), प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (23प्रतिशत) और पब्लिक लिमिटेड कंपनी (1 प्रतिशत) शामिल हैं।
भारत में लगभग 7,34,00,000 एम.एस.एम.ई. हैं। इनमें से लगभग 6,20,00,000 मार्च 2025 तक उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत हैं।
एम.एस.एम.ई. क्षेत्र में लगभग 24 प्रतिशत (लगभग 30 लाख करोड़ रुपए) का ऋण अंतर है; सेवा उप-क्षेत्र में यह अंतर 27 प्रतिशत है और महिला स्वामित्व वाले उद्यमों में यह 35 प्रतिशत है।
एम.एस.एम.ई. ने 2023-24 में भारत के व्यापारिक निर्यात में लगभग 45 प्रतिशत का योगदान दिया। कुल मिलाकर, 2024-25 में निर्यात करने वाले एम.एस.एम.ई. की संख्या 1,73,350 थी (जो एम.एस.एम.ई. की कुल संख्या का 1 प्रतिशत का अंश है)। निर्यात किए जाने वाले प्रमुख सामान में रेडीमेड गार्मैंट, रत्न और आभूषण, चमड़े के सामान, हस्तशिल्प, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और ऑटो कंपोनैंट हैं। एक को छोड़कर सभी कम तकनीक वाले सामान हैं।
एम.एस.एम.ई. के लिए ऋण सहायता योजनाओं और विकास योजनाओं की भरमार है। रिपोर्ट पढ़ते हुए, मैंने कम से कम 2 सबसिडी योजनाओं, 4 क्रैडिट गारंटी योजनाओं और कम से कम 13 विकास योजनाओं की गिनती की। 2025-26 के बजट में पहली बार उद्यमियों के लिए एक योजना और एक क्रैडिट कार्ड योजना की घोषणा की गई। इसने एक नए फंड ऑफ फंड्स, एक डीप टेक फंड ऑफ फंड्स और एक नए स्ट्रीट वेंडर्स निधि (पी.एम. स्वनिधि) की भी घोषणा की।
एम.एस.एम.ई.रोजगार सृजन का प्राथमिक स्रोत है। यह दावा किया जाता है कि इस क्षेत्र द्वारा सृजित कुल रोजगार लगभग 26 करोड़ है। नौकरियां हैं, व्यक्ति नहीं: अब, आइए इस निबंध के मुख्य प्रश्न पर आते हैं। एम.एस.एम.ई. क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों में, रिपोर्ट सूचीबद्ध करती है - कुशल श्रमिकों की कमी, कौशल अंतराल और प्रतिभा को आकर्षित करने में कठिनाई। ये निष्कर्ष देश में बेरोजगारी की पूरी कहानी बताते हैं। यह मानना उचित है कि बड़े उद्योग (जिनमें 125 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश और 500 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार है) उच्च शैक्षणिक योग्यता और उच्च कौशल वाले व्यक्तियों को रोजगार देते हैं, जो कि अधिकांश बेरोजगारों के पास नहीं है। दूसरी ओर, एम.एस.एम.ई. को श्रमिकों की आवश्यकता है; फिर भी, यदि उनके पास श्रमिकों की कमी है और प्रतिभा को आकॢषत करने में कठिनाई है, तो क्यों? खेदजनक लेकिन अपरिहार्य निष्कर्ष यह है कि, सबसे पहले, नौकरियों के लिए आवेदकों के पास नौकरियों को भरने के लिए शिक्षा या कौशल नहीं है और, दूसरी बात, उद्यम की संरचना या पारिश्रमिक के कारण प्रस्तावित नौकरियां आकर्षक नहीं हैं।
संरचनात्मक तथ्यों और रोजगार परिणामों का मिलान करके, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि भारत के युवाओं में उच्च बेरोजगारी क्यों है।
*अप्रैल 2025 में भारत की जनसंख्या 146 करोड़ थी।
*श्रम बल भागीदारी दर (एल.एफ.पी.आर.) जनसंख्या का वह प्रतिशत है जो या तो काम कर रहा है या सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहा है। यह 55.6 प्रतिशत या लगभग 81 करोड़ है।
*श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यू.पी.आर.) कुल जनसंख्या में कार्यरत लोगों के अनुपात को परिभाषित करता है। यह 52.8 प्रतिशत या लगभग 77 करोड़ है।
*बेरोजगार व्यक्तियों की पूर्ण संख्या अंतर है, अर्थात, 4 करोड़। यह एक बड़ी संख्या है, लेकिन याद रखें, यह ‘सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश’ करने वालों की संख्या से बाहर है। ऐसे कई लाखों लोग हैं जिन्होंने विभिन्न कारणों से रोजगार की तलाश छोड़ दी है।
*आधिकारिक बेरोजगारी दर 4 करोड़/81 करोड़ है जो 5.0 प्रतिशत के बराबर है।
समाधान का मार्ग:एम.एस.एम.ई. की सबसे बड़ी संख्या ‘सूक्ष्म’ है जो 98.64 प्रतिशत है। इस तथ्य के साथ कि स्वामित्व और भागीदारी सभी एम.एस.एम.ई.का 75 प्रतिशत हिस्सा है, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि 26 करोड़ ‘रोजगार’ में से अधिकांश परिवार के सदस्य और रिश्तेदार हैं जो परिवार द्वारा संचालित उद्यमों में काम करते हैं। यह ‘लघु’ और ‘मध्यम’ (एम.एस.एम.ई.का 1.36 प्रतिशत या लगभग 10,00,000) हैं जो वास्तव में लोगों को रोजगार देते हैं जहां मालिक और नौकर का रिश्ता होता है।
नौकरियों का ‘आपूर्ति’ पक्ष 10,00,000 एम.एस.एम.ई. से आना चाहिए। नौकरियों के लिए ‘मांग’ पक्ष उन युवा पुरुषों और महिलाओं से आना चाहिए जो स्कूल छोड़ चुके हैं या जिनके पास स्कूली शिक्षा है या जिनके पास बुनियादी कला या विज्ञान की डिग्री है।
संभावित नियोक्ता ऋण की कमी, दमनकारी विनियमन और कई योजनाओं और अनुपालनों से प्रभावित होते हैं। संभावित कर्मचारियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, कौशल की कमी और प्रशिक्षण की अनुपस्थिति से बाधा होती है। संक्षेप में, बहुत कम ‘प्रतिभा’ है।
शासन को इन कमियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पहला पड़ाव कौशल प्रशिक्षण के साथ स्कूली शिक्षा है। अगला पड़ाव एस.एम.ई. (ध्यान दें कि मैंने एम को हटा दिया है) को केवल एक उदार ऋण-सह-ब्याज सबसिडी योजना के साथ मदद करना है। इसे सरल रखें।-पी. चिदम्बरम