क्या डोनाल्ड ट्रम्प भारत के लिए ‘लाभदायक’ सिद्ध होंगे

punjabkesari.in Thursday, May 26, 2016 - 02:03 AM (IST)

(विलियम एच. एवरी) भारत-अमरीकी रिश्ते एक ढर्रे में फंस कर रह गए हैं। यह ढर्रा है दोनों ओर से प्रयुक्त हो रहे ‘रणनीतिक भागीदारी,’ ‘सबसे बड़े लोकतंत्रों,’ एवं ‘जनता से जनता के बीच आदान-प्रदान’ जैसे कालबाह्य जुमलों का। इस तरह की बातचीत में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन फिर भी हमें ईमानदारी से यह मानना होगा कि इस तरह की बातें कूटनीतिज्ञ तब करते हैं, जब उन्हें नए विचार न सूझ रहे हों।

 
नवम्बर में होने जा रहे अमरीकी राष्ट्रपति के चुनावों में अब यह लगभग तय लग रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प और हिलेरी किंलटन ही आमने-सामने होंगे। किंलटन से भारतीय सरकार के अधिकारी पहले ही अच्छी तरह परिचित हैं क्योंकि 8 वर्ष तक वह अमरीका की प्रथम महिला रही हैं। फिर उसके बाद 8 वर्ष तक सीनेटर और अगले 4 वर्ष विदेश मंत्री। इन सभी वर्षों दौरान वह भारत की घनिष्ठ मित्र रही हैं। यदि वह राष्ट्रपति चुन ली जाती हैं तो वह दक्षतापूर्ण ढंग से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का काम करेंगी लेकिन वह बने-बनाए ढर्रे पर चलते हुए इस काम को अंजाम देंगी। 
 
सवाल पैदा होता है कि यदि  ट्रम्प राष्ट्रपति बन जाते हैं तो भारत-अमरीका संबंधों के लिए कैसे रहेंगे? भारत और इसके पड़ोसियों के बारे में जो कुछ ट्रम्प ने कहा है, उनमें से अधिकतर बातों से यही संकेत मिलता है कि वह भारत-अमरीका संबंधों को घिसे-पिटे ढर्रे में से बाहर निकालेंगे। ऐसा करते हुए वह पहले से ही बेहतरीन द्विपक्षीय संबंधों को और भी बढिय़ा बनाते हुए इन्हें आश्चर्यजनक आयाम दे सकते हैं। 
 
यदि ट्रम्प नवम्बर के चुनाव में जीत जाते हैं तो वह एशिया में सत्ता संतुलन को अस्त-व्यस्त करके नया रूप देंगे जो भारत के लिए हितकर होगा। चीन और पाकिस्तान कई दशकों से अमरीका को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी के  रूप में प्रयुक्त कर रहे हैं : चीन का अमरीका के साथ व्यापार 2015 में 366 अरब डालर के भारी-भरकम सरप्लस आंकड़े तक पहुंच गया था जबकि पाकिस्तान दोहरा खेल खेलकर लाभ उठा रहा है। 2002 से अब तक वह उग्रपंथी इस्लाम के विरुद्ध लडऩे के नाम पर 30 अरब डालर से भी अधिक की अमरीकी सहायता हजम कर चुका है। इस प्रकार के तमाम संकेत मिल रहे हैं कि यदि ट्रम्प राष्ट्रपति चुने गए तो वह इन दोनों देशों की ओर हो रहा अमरीकी करंसी का निकास कम कर देंगे। 
 
गत 15 वर्षों में अमरीका के कारखाना क्षेत्र में 50 लाख नौकरियों की कमी आई है, जबकि इसी समय दौरान चीन के कारखाना क्षेत्र ने बहुत तेज गति से तरक्की की है। ट्रम्प ने चुनावी अभियान दौरान यह वायदा किया है कि वह अमरीका के हाथों से गई इन नौकरियों को दोबारा अमरीका में लाएंगे। ऐसा करने का केवल एक ही तरीका है कि सस्ती श्रम शक्ति का चीन को जो लाभ मिल रहा है, उसे निष्प्रभावी करने के लिए हर प्रकार के प्रतिबंधात्मक एवं वैधानिक कदम उठाए जाएं और साथ ही साथ अमरीकी कारखाना क्षेत्र को रियायतें दी जाएं। 
 
यदि ऐसा होता है तो 2017 का वर्ष चीन के लिए बहुत ही मनहूस सिद्ध होगा और एक दशक से चीन में भारी-भरकम निवेश की जो आंधी आई हुई है, उसका गुब्बारा एकदम फूट सकता है। वैसे ट्रम्प के सत्ता में आने से हो सकता है भारत को टैक्नोलॉजी और आऊटसोर्स के मामले में थोड़ा-बहुत नुक्सान उठाना पड़े। एक बात तो तय है कि अमरीका-चीन व्यापार युद्ध से चीन को जो भी नुक्सान पहुंचेगा, उससे भारत को अवश्य ही लाभ होगा और चीन को बड़े स्तर पर नुक्सान पहुंचना अवश्यंभावी है। 
 
चीन के बाद भारत का दूसरा पंगेबाज पड़ोसी पाकिस्तान ही है। इसे भी ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने की स्थिति में काफी बड़े स्तर पर नुक्सान उठाना होगा। ट्रम्प ने अपने चुनावी अभियान दौरान पाकिस्तान के बारे में कहा है, ‘‘यह शायद दुनिया का सबसे खतरनाक देश है...। इस पर अंकुश लगाने के लिए हमें भारत से किसी न किसी रूप में हाथ मिलाना होगा। भारत ही पाकिस्तान के नाक में नुकेल सिद्ध हो सकता है...। 
 
मैं बहुत जल्द ही इस विषय में भारत के साथ बातचीत शुरू करूंगा।’’अब तक अमरीका के किसी भी राष्ट्रपति ने अपने चुनावी अभियान में भारत-पाक रिश्तों के संबंध में ट्रम्प जैसी कठोर भाषा प्रयुक्त नहीं की। केवल 8 वर्ष पूर्व ओबामा साहिब अपने चुनावी अभियान में प्रचार कर रहे थे कि कश्मीर के मामले में अमरीका मध्यस्थता करेगा। लेकिन अब ओबामा का संभावी वारिस बनने जा रहा उम्मीदवार बिल्कुल अलग स्वर में बोल रहा है और उसने पुरानी नीतियों को एक तरफ फैंक दिया है। वास्तव में पाकिस्तान अपने आप में एक समस्या है और भारत उस समस्या के हल का हिस्सा है। यही इस्लामाबाद के लिए सबसे बड़ी शॄमदगी की बात है। 
 

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