हम दो-हमारे दो और ‘अब सबके भी दो’

punjabkesari.in Thursday, Jun 18, 2020 - 03:55 AM (IST)

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 2014 तक भी कुछ न कुछ विकास होता रहा। कुछ क्षेत्रों में भारत ने सराहनीय प्रगति भी की है परन्तु अति गरीबों के लिए कोई लक्षित कार्यक्रम न होने के कारण आर्थिक विषमता और गरीबी भी बढ़ती रही। 2014 के बाद श्री नरेन्द्र मोदी जी की अध्यक्षता में पूरी योजनाओं को बदला गया। सबका साथ और सबका विकास संकल्प बना। बहुत सोच समझ कर बढिय़ा योजनाएं बनीं। उनके लिए धन का प्रावधान भी हुआ। 

सच्चाई यह है कि भारत का शासन और प्रशासन न तो पूरी तरह दक्ष है और न ही ईमानदार है। नीचे गांव के स्तर तक पहुंचते-पहुंचते योजना पूरी तरह लागू नहीं होती। इन 6 वर्षों में अच्छी योजनाओं का अच्छा परिणाम भी हुआ है परन्तु कड़वी सच्चाई यह है कि बढ़ती आबादी का राक्षस उस परिणाम को निगल गया। यही कारण है कि इन 6 वर्षों के बाद भी आर्थिक विषमता बढ़ी है और गरीबी भी बढ़ी है। 

नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने असंभव समझी जाने वाली कश्मीर समस्या का समाधान कर दिखाया। आज से 67 वर्ष पहले 1953 में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में कश्मीर के पूर्ण विलय के लिए भारतीय जनसंघ ने सत्याग्रह किया। मैं 19 वर्ष की आयु में सत्याग्रह करके 8 मास हिसार जेल में रहा। डा. मुखर्जी का बलिदान हुआ। सब आशा छोड़ चुके थे परन्तु नरेन्द्र मोदी जी ने प्रबल साहस दिखाया। आज पूरा कश्मीर हमारा है। तीन तलाक व नागरिकता कानून जैसे महत्वपूर्ण निर्णय हुए। 

मैं सरकार से आग्रह करूंगा कि अब खुले दिल से इस बात को स्वीकार किया जाए कि सबका साथ-सबका विकास संकल्प अधूरा है इसके स्थान पर अब संकल्प होना चाहिए ‘‘सबका साथ सबका विकास और अब नीचे के सबसे अधिक गरीब का विकास सबसे पहले और सबसे अधिक।’’ इस संकल्प के आधार पर नए तरीके से पूरी योजना पर सोचना होगा। 

सरकार सहित सभी को यह लगता है कि आबादी को रोकना अब सबसे अधिक आवश्यक हो गया है। प्रश्र इस पर निर्णय लेने का साहस करने का है। इस संबंध में मैंने प्रधानमंत्री जी को दो बार पत्र लिखे। बात भी हुई। एक बार सांसदों के सामने उन्होंने कहा था कि विषय ध्यान में है ठीक समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि ठीक समय कई बार आया और निकल गया। अब तो प्रश्न यह है कि यदि भारत को बर्बादी सेे बचाना है तो एक नया संकल्प करना होगा। ‘‘हम दो-हमारे दो और अब सबके भी दो।’’ इसके लिए अतिशीघ्र कानून बनना चाहिए। अब अधिक विलम्ब बहुत अधिक घातक होगा। 

अन्त्योदय मंत्रालय सबसे पहले पूरे देश में अति गरीब लोगों की पहचान करे। ग्लोबल हंगर इंडैक्स के अनुसार पूरे देश में 19 करोड़ 40 लाख लोग इस श्रेणी में आते हैं। सरकार  के पास भी आंकड़े हैं। चयन का काम सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण है। खाद्य मंत्री रहते पूरे देश में 5 करोड़ अन्त्योदय परिवार चुने गए थे। एक विस्तृत सूचना, फार्म इत्यादि बनाकर सारा काम बड़ी सावधानी से हुआ था। उसी प्रकार  पूरी सावधानी से इन परिवारों का चयन करके उन्हें अन्त्योदय परिवार का कार्ड दिया जाए। 

देश में विभिन्न वर्गों के लिए जो भी आरक्षण तय किया है सरकार यह आदेश दे कि उस आरक्षण का सबसे पहला लाभ उसी वर्ग के अन्त्योदय परिवार को दिया जाए। अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण है। इस योजना से उस वर्ग को आरक्षण उतना ही रहेगा परन्तु उसी वर्ग में उसका लाभ सबसे पहले सबसे अधिक गरीबों को होगा। आज आरक्षण का पूरा लाभ उन्हीं वर्गों में सम्पन्न लोग उठा रहे हैं। पूरे देश में सरकारी और गैर-सरकारी तथा निजी विभागों में प्रति वर्ष चतुर्थ श्रेणी या उसी वर्ग के लाखों उम्मीदवारों की नियुक्ति होती है। सरकार आदेश दे कि वर्ष में केंद्र व राज्य सरकारों, निगमों तथा सभी प्रकार के निजी संस्थानों ने ऐसी जितनी नियुक्तियां करनी हैं उनकी सूची सरकार को दी जाए। 

आवश्यकता हो तो कानून बनाया जाए कि पूरे देश के सरकारी अर्ध-सरकारी और निजी कार्यालयों में ये नियुक्तियां केवल सरकार करेगी। उन पदों के लिए चयनित अन्त्योदय परिवारों से बच्चों का सब जगह चयन किया जाए, उन्हें उन पदों के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाए और वर्ष में एक बार महात्मा गांधी जी की जयंती पर उन अन्त्योदय परिवारों के प्रशिक्षित लाखों बच्चों को नियुक्त किया जाए। एक ही दिन में लाखों परिवार गरीबी रेखा से ऊपर चले आएंगे। 

अयोध्या में प्रभु राम का भव्य मंदिर बने इससे बड़ी प्रसन्नता और कोई नहीं हो सकती परन्तु 19 करोड़ राम भूखे रहें इससे बड़ा दुख भी और कोई नहीं हो सकता। यह वेद-उपनिषद, ऋषि-मुनियों की धरती है। मनुष्य ने विश्वभर में लाखों मंदिर बनाए परन्तु याद रहे परमेश्वर ने भी एक मंदिर बनाया है। वह मंदिर है ‘मनुष्य’ और उसकी सेवा ही ईश्वर की सच्ची पूजा है। पूरी विनम्रता के साथ क्षमा चाहूंगा अंत में यह लिखने के लिए यदि राम मंदिर बन गया और ये 19 करोड़ राम यूं ही भूखे रहे तो ईंट-पत्थर के उस मंदिर में राम नहीं आएंगे।
कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों से समाप्त 
कर रहा हूं
हो चली है पीर पर्वत सी,
पिघलनी चाहिए,
अब हिमालय से,
कोई गंगा निकलनी चाहिए।-शांता कुमार(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)


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