हम विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था : मगर मंजिल अभी दूर

punjabkesari.in Thursday, Jun 12, 2025 - 05:41 AM (IST)

इस तथ्य से उत्पन्न उत्साह कि हम अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और कुछ वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हैं तथा 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखते हैं, को वास्तविकता की जांच की आवश्यकता है। इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं है कि हमारा सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) 4.2 ट्रिलियन डॉलर है और संभवत: यह जापान की जी.डी.पी. से थोड़ा ही आगे निकल गया है। उम्मीद है कि हम कुछ वर्षों में यूनाइटिड किंगडम की अर्थव्यवस्था से आगे निकल जाएंगे और अगले 10 वर्षों में 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। यह एक तथ्य है कि हम विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था हैं, जिसकी औसत वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत प्रति वर्ष है। सरकार ने यह भी दावा किया है कि मुद्रास्फीति में तेजी से कमी आई है, हालांकि कई लोग इस दावे पर संदेह कर सकते हैं।

इस महीने की शुरुआत में प्रकाशित विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में अत्यधिक गरीबी 2011-12 में 27.1 प्रतिशत से तेजी से घटकर 2022-23 में 5.3 प्रतिशत हो गई है। यह गिरावट इस तथ्य के बावजूद है कि विश्व बैंक ने अत्यधिक गरीबी को मापने की सीमा को 2.15 डॉलर प्रतिदिन से बढ़ाकर 3.00 डॉलर प्रतिदिन कर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन मानदंडों के साथ, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या इस अवधि में लगभग 344 मिलियन से घटकर लगभग 75 मिलियन हो गई। वास्तव में यह एक तथ्य है कि भुखमरी से मृत्यु की कोई भी रिपोर्ट नहीं आती है, जिसका मुख्य कारण मनरेगा जैसी योजनाएं हैं।

नीति आयोग ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें अनुमान लगाया गया था कि बहुआयामी गरीबी में भी 2005-2006 में 55.34 प्रतिशत से 2019-2021 में 14.96 प्रतिशत तक की तीव्र गिरावट दर्ज की गई है। ये आंकड़े प्रभावशाली हैं और सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान कर रही है  लेकिन वास्तव में विकसित राष्ट्र बनने के लिए हमें अभी लंबा सफर तय करना है। हमारे सामने अनेक चुनौतियां हैं (आंतरिक और बाहरी )जो हमारी स्वतंत्रता की शताब्दी तक ‘विकसित भारत’ बनने के हमारे प्रयास की परीक्षा लेंगी।

भले ही हम खुद को चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था कहते हैं  लेकिन तथ्य यह है कि हमारी आधी से अधिक आबादी (लगभग 80 करोड़ ) अभी भी सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुफ्त या सबसिडी वाले राशन पर जीवित है। यह एक कल्याणकारी उपाय है  लेकिन विकसित देश बनने का लक्ष्य रखने वाला कोई भी देश इस बात पर गर्व नहीं कर सकता कि उसके आधे से अधिक नागरिक सरकारी सहायता पर निर्भर हैं। स्पष्टत: ऐसे नागरिकों की संख्या को कम करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं जिनके पास राशन के लिए सरकार पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि मनरेगा के तहत नौकरियों की मांग बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। इससे पता चलता है कि नागरिकों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं, जिसके कारण उन्हें सरकार द्वारा प्रस्तावित न्यूनतम वेतन वाली नौकरियों को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कई अन्य चिंताजनक कारक भी हैं। एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि देश का कृषि कार्यबल अपने गैर-कृषि समकक्षों की तुलना में अधिक उम्र का हो गया है। इससे पता चलता है कि युवा पुरुष कृषि कार्य छोड़कर नौकरी की तलाश में कस्बों और शहरों की ओर जा रहे हैं  और अधिकांशत: यह प्रयास व्यर्थ ही जा रहा है। 

बेरोजगारी की दर बढ़ रही है जिससे युवा नागरिकों में निराशा पैदा हो रही है। हमारी विनिर्माण वृद्धि दर कृषि वृद्धि दर से भी धीमी है जो आंशिक रूप से उच्च बेरोजगारी दर की व्याख्या करती है। हम लगभग सभी मापदंडों में विकसित देशों से बहुत पीछे हैं। स्वास्थ्य सेवाएं, स्वच्छता की स्थिति, प्राथमिक शिक्षा, नागरिक सुविधाएं, स्वच्छ जल और ऊर्जा की आवश्यकता जैसी बुनियादी आवश्यकताएं अभी भी मृगतृष्णाएं हैं, जिनके पीछे हम भागते रहते हैं। इसके अलावा हिन्दू-मुस्लिम की बढ़ती कहानी और जाति के आधार पर समाज को विभाजित करने की प्रवृत्ति देश के विकास और वृद्धि को उस गति से रोक रही है जो वास्तव में एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए आवश्यक है।

हमें यह तथ्य भी ध्यान में रखना चाहिए कि 2047 तक विकसित राष्ट्र के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए 6.5 प्रतिशत की औसत विकास दर पर्याप्त नहीं है। हमें चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के अपने उत्साह को एक अन्य वास्तविकता से भी संतुलित करना होगा। संयुक्त राज्य अमरीका, जो विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, का सकल घरेलू उत्पाद 30 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है जबकि चीन, जो दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, का सकल घरेलू उत्पाद लगभग 19.23 ट्रिलियन डॉलर है जबकि हमारा वर्तमान आकार 4.2 ट्रिलियन डॉलर है। हमें एक लंबा रास्ता तय करना है।-विपिन पब्बी
 


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