यू.पी. विधानसभा चुनाव में भाजपा का ‘विघटनकारी एजैंडा’

punjabkesari.in Thursday, Mar 02, 2017 - 12:10 AM (IST)

यू.पी. विधानसभा चुनाव सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण तो माने ही जा रहे हैं लेकिन देश में सैकुलरवाद और लोकतंत्र के भविष्य की दृष्टि से भी इनका महत्व कम नहीं। राम जन्म भूमि आंदोलन के समय से ही भाजपा बहुत जोर-शोर से हिंदुत्व की भावना भड़काती आ रही है और इसका इसे राजनीतिक लाभ भी मिला है। यही फार्मूला यू.पी. विधानसभा चुनाव में अपनाया गया है। 

चुनाव की घोषणा होने से पहले ही कई भाजपा नेताओं ने राम मंदिर, ‘लव जेहाद’ तथा कैराना से हिंदुओं के पलायन जैसे मुद्दे उठाने शुरू कर दिए थे। मोदी के करीबी सहयोगी भी हिंदुत्व के एजैंडे में शामिल राम मंदिर, तिहरे तलाक और धारा 370 जैसे मुद्दे  उठाते रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में विकास के प्रचार के साथ-साथ ही साम्प्रदायिकवाद की पुट भी शामिल की गई थी और इसी के कारण भाजपा लोकसभा में साधारण बहुमत हासिल कर पाई थी। अबके चुनाव में भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने जब मुस्लिमों पर देश की जनसंख्या बढ़ाने का आरोप लगाया तो चुनाव आयोग ने उनकी खिंचाई की थी। 

शायद इसीलिए यू.पी. के ताजा चुनाव में पाकिस्तान के विरुद्ध की गई ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ तथा काले धन का समूलनाश करने के लिए नोटबंदी जैसी कार्रवाइयां ‘राष्ट्र गौरव’ के रूप में परोसने की कोशिश की गई। ऐसा लगता है कि इन दोनों ही कदमों से मोदी की सार्वजनिक छवि दागदार हुई है क्योंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारतीय सैनिकों की भारी संख्या में हत्याएं हुई हैं। जहां तक नोटबंदी का सवाल है इससे आम आदमी इतनी बुरी तरह प्रभावित हुआ है कि वह अपनी पीड़ा को भुलाकर कभी भी नोटबंदी का समर्थन नहीं कर सकता। शायद इसी हकीकत को भांप कर भाजपा ने विघटनकारी प्रोपेगंडा तेज कर रखा है। यहां तक कि भाजपा के चुनावी मैनीफैस्टो में भी बहुत चालाकी भरे ढंग से यह काम किया गया है। मैनीफैस्टो में हिंदू  गौरव, सम्पूर्ण हिंदू  समाज, राम मंदिर इत्यादि जैसे मुद्दों का उल्लेख है। 

आलोचकों का कहना है कि राम मंदिर का मुद्दा तो भाजपा के लिए वोट बैंक मजबूत करने के लिए एक स्थायी हथकंडा है और जब भी इसे जरूरत पड़ती है, यह इसे प्रयुक्त करने से नहीं चूकती। बाबरी ढांचा गिराए जाने के समय से ही यह मुद्दा भाजपा के हर प्रकार के बयानों का अंग बनता आ रहा है, हालांकि  भाजपा अच्छी तरह जानती है कि यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है। 

भाजपा के शस्त्रागार में विभिन्न नेताओं द्वारा अब नई वृद्धियां की गई हैं। मोदी तो स्पष्ट रूप में साम्प्रदायिक मुद्दों का कम उल्लेख करेंगे या फिर उन्हें बहुत ही सूक्ष्म ढंग से प्रस्तुत करेंगे जबकि उनके सहयोगी अपनी टिप्पणियों में अधिक बेबाकी प्रयुक्त करते हैं। कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा भाजपा सांसद हुक्म सिंह द्वारा कुछ समय पूर्व उठाया गया था। अब एक अन्य भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने यह कहकर इसे भयावह आयाम प्रदान कर दिया है कि सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश को कश्मीर बनाने की कोशिश की जा रही है और हिंदुओं को आतंकित करके इलाके से भगाया जा रहा है। जबकि तथ्य यह है कि मुजफ्फरनगर हिंसा के बाद हजारों मुस्लिमों को अपने गांव छोडऩे पड़े थे। वास्तव में हुक्म सिंह का हिंदुओं के पलायन का दावा केवल प्रचार मात्र ही है क्योंकि जिन परिवारों के गांव छोड़ जाने का उन्होंने उल्लेख किया था उनमें से कई एक तो अब भी वहीं रह रहे हैं जबकि कुछ लोग आॢथक कारणों के चलते शहरों में चले गए हैं। अब भाजपा के मैनीफैस्टो में इस मुद्दे पर श्वेत पत्र जारी करने की बातें हो रही हैं। 

मुजफ्फरनगर दंगे ‘लव जेहाद’ के मुद्दे को आधार बनाकर भड़काए गए थे और अब भाजपा अपने ‘रोमियो स्क्वायड’ बनाने का बातें कर रही है,जो कि अंतर धार्मिक शादियों के विरुद्ध एक गुप्त संदेश है। यानी कि लव जेहाद को एक नए मुहावरे में प्रस्तुत किया जा रहा है। पिछले चुनाव में दादरी प्रकरण के बूते ध्रुवीकरण बनाकर भाजपा ने बहुत अधिक राजनीतिक लाभ अर्जित किया था और अबकी बार मैनीफैस्टो में मशीनी बूचडख़ाने बंद करने का वायदा किया जा रहा है। इसी प्रकार ‘जैंडर जस्टिस’ के मामले में भी भाजपा स्पष्ट रूप में दोहरे मापदंड अपना रही है जो कि बहुत ही भयावह संकेत है। जहां मुस्लिम महिलाओं के मामले में तिहरे तलाक को लेकर भाजपा अधिक चिंतित है, वहीं दलितों, आदिवासियों और हिंदू  महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अत्याचारों के मुद्दे पर इसने मौन साधे रखा है। 

यह तो मात्र कुछ नमूने हैं, वैसे भाजपा नेताओं द्वारा इस प्रकार के भड़काऊ और ध्रुवीकरण करने वाले भाषणों के अनेकों उदाहरण और भी हैं। लगातार साजिशें रच कर भाजपा पहले से मौजूद राम मंदिर, धारा 370 जैसे मुद्दों में नई वृद्धि करती जा रही है। आज इसके पास ऐसे मुद्दों का काफी बड़ा पिटारा है जिसमें से विभिन्न नेता अपनी पसंद का मुद्दा उठा सकते हैं। भाजपा के प्रचार का एक और आयाम यह है कि इसके नेताओं के बीच एक प्रकार से श्रम विभाजन किया गया है। जहां कुछ नेता विकास का पत्ता खेलते हैं वहीं कुछ अन्य हैं जो टेढ़े-मेढ़े ढंग से साम्प्रदायिक एजैंडा आगे बढ़ाते हैं। कुछ अन्य हैं जो सीधे-सीधे साम्प्रदायिक तनाव भड़काते हैं।                    


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