यह कहानी है भारत की ताकत और उसकी जीत की

punjabkesari.in Sunday, Jan 16, 2022 - 07:30 AM (IST)

एक साल, 156 करोड़ वैक्सीनेशन! यानी हर दिन औसतन 42 लाख से ज्यादा टीके। हम सभी जानते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान की तैयारी करते समय कुछ बुद्धिजीवियों और विषय विशेषज्ञों ने अनेक तरह की शंकाएं अपने व्यक्तिगत अनुभवों,  तथ्यों और तर्कों के आधार पर जाहिर की थीं। 

सभी आलोचनाओं और अविश्वास के माहौल के बीच ‘टीम हैल्थ इंडिया’ ने एक सुव्यवस्थित रणनीति और आत्मविश्वास के साथ एकजुट होकर काम करना शुरू कर दिया। इस आत्मविश्वास की पृष्ठभूमि में था :

-हमारा राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम  यू.आई.पी. को चलाने का वर्षों का अनुभव। पल्स पोलियो अभियान के तहत सीमित समय में लगभग 10 करोड़ छोटे बच्चों को पोलियो की 2 बूंद पिलाने का 25 वर्षों से अधिक का तजुर्बा।
-पंद्रह साल तक के 35 करोड़ से ज्यादा बच्चों को मीसल्स एवं रूबेला वैक्सीन लगा पाने की क्षमता। 29,000 से अधिक कोल्ड चेन प्वाइंट्स पर वैक्सीन स्टोरेज कर दूर-दराज के क्षेत्रों में नियमित रूप से वैक्सीन पहुंचाने का अनुभव। 

-और इस आत्मविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण सबब बना हमारे देश के प्रधानमंत्री का देश के नागरिकों की छुपी हुई क्षमताओं और योग्यताओं पर अटूट विश्वास, जिसने शुरूआत से ही एक नैतिक संबल प्रदान करने का काम किया। आज से ठीक एक साल पहले माननीय प्रधानमंत्री द्वारा दुनिया के इस सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान की शुरूआत से पहले न सिर्फ सभी बुनियादी गाइडलाइन्स को अंतिम रूप दिया जा चुका था, बल्कि इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण भी पूरे किए जा चुके थे। 

इन सभी तैयारियों से संबंधित ‘ड्राय रन’ भी सभी राज्यों में किया जा चुका था। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हजारों कोविड वैक्सीनेशन सैंटरों, राज्य के मुख्यालयों एवं भारत सरकार के मंत्रालय में पदस्थ टीम, जो कोविन प्लेटफार्म पर काम कर रही थी, सभी को 15 जनवरी की सारी रात जागना पड़ा। कोई ऐसी तकनीकी समस्या थी, जिसे हल करने के लिए सभी इकट्ठा थे। कड़ाके की ठंड थी। सूर्योदय होने तक सभी के दिल उसी तरह से जोर-जोर से धड़क रहे थे। उस रात टीम की बेचैनी और अंततोगत्वा मिले सुखद परिणाम की अनुभूति का इजहार शब्दों में नहीं कर सकता।

‘कोविन’ बखूबी चल पड़ा और हम सभी गवाह हैं इस अनोखे भारतीय डिजिटल प्लेटफॉर्म की खूबियों के, जिसने लगातार कार्यक्रम की जरूरतों के मुताबिक खुद को और बेहतर किया है। और फिर अभी तो शुरूआत हुई थी। सीमित मात्रा में उपलब्ध वैक्सीन का लगातार तर्कसंगत वितरण एक चुनौती थी, न सिर्फ भारत सरकार के स्तर पर, अपितु राज्यों एवं जिलों के स्तर पर भी। ऐसे में आलोचनाएं स्वाभाविक थीं। ‘टीम हैल्थ इंडिया’ ने इस काम को भी बखूबी अंजाम दिया। लेकिन यह आसान नहीं था। इसके लिए हर रोज घंटों वर्चुअल बैठकें करनी पड़ती थीं।

वैक्सीन निर्माताओं के साथ, वैक्सीन परिवहन करने वाली एजैंसियों के साथ, वैक्सीन के भंडारण केंद्रों के साथ, वैक्सीन वितरण करने वाले कोल्ड चेन प्वाइंट्स के साथ और वैक्सीन लगाने वाले केंद्रों के साथ। और मकसद सिर्फ  एक होता था, उपलब्ध वैक्सीन का यथासंभव सर्वश्रेठ इस्तेमाल और वैक्सीन की हर बूंद का सदुपयोग। और अंदाजा लगाइए, देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में वैक्सीन पहुंचाई गई। जहां सड़क नहीं थी, वहां साइकिल दौड़ाई गई, रेगिस्तान में ऊंट का सहारा लिया गया, नदी पार करने के लिए नाव पर सवारी की गई। पहाड़ों पर तो वैक्सीन कैरियर को अपनी पीठ पर ही उठा लिया। वैक्सीन पहुंचाई भी, लगाई भी। पीले चावल देकर वैक्सीनेशन के लिए आमंत्रित किया। वैक्सीन नहीं लगवाने वाले नागरिकों के लिए ‘हर घर दस्तक’ देकर पुकार भी लगाई। यह विशुद्ध रूप से भारतीय मॉडल था। इसमें भारत के सामथ्र्य की अनूठी छाप थी। 

एक वर्ष की कोविड टीकाकरण की यह अनूठी गाथा है क्योंकि तैयारी करने के लिए वक्त सीमित था। वक्त के साथ-साथ फील्ड से प्राप्त अनुभवों और सकारात्मक आलोचनाओं और सुझावों से हम सीखते चले गए, कार्यक्रम में सुधार करते चले गए, अपने संकल्प और इरादों को और दृढ़ करते चले गए और सही मायने में अंग्रेजी कहावत ‘बिल्डिंग द शिप व्हाइल सेलिंग’ को चरितार्थ करते चले गए। 

‘टीम हैल्थ इंडिया’ ने इस सारी धुन में अनदेखी की है अपनी जरूरतों की, अपने व्यक्तिगत समय की, अपने परिवार की। भुलाया है अपने सपनों को और खोया है अपनों को। लेकिन फख्र ही नहीं, बल्कि यह ‘टीम हैल्थ इंडिया’ का सौभाग्य भी है कि उसे सदियों में कभी एक बार आने वाला यह अवसर मिला और देश की सेवा करते हुए इस नोबल प्रोफैशन को नोबेलनैस बनाए रखने का मौका भी। हां, उन्हें ढेर सारा प्यार भी मिला। 

मैं जो कुछ देख पाया हूं या लिख पाया हूं वो तो मात्र ‘टिप ऑफ द आइसबर्ग’ के समान है। ‘टीम हैल्थ इंडिया’ के पास तो ऐसे अनगिनत संघर्ष और संतुष्टि के उदाहरण होंगे। ऐसे उदाहरण जो इंसानियत की मिसाल होंगे, जो कृतज्ञता का एहसास कराते होंगे और ऐसे उदाहरण जो आशावाद के वाहक होंगे । अंत में यह याद दिलाना चाहता हूं कि हैल्थ को ‘पब्लिक गुड’ माना गया है और भारत के कोविड टीकाकरण की इस असाधारण गाथा में सरकारी तंत्र की भूमिका ने इस विचारधारा को और पुख्ता किया है, मजबूत किया है। जय हिन्द! (अतिरिक्त सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय)-डॉ. मनोहर अगनानी


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