विश्व में जिनका मुकाबला नहीं उनका नाम है जगतगुरु रामभद्राचार्य

punjabkesari.in Sunday, Jan 14, 2024 - 05:36 AM (IST)

विश्व में लगभग 1 अरब दिव्यांग हैं। इसी के अंतर्गत भारत में भी लगभग 3 करोड़ से अधिक दिव्यांगों की संख्या है। इन्हें पहले विकलांग कहा जाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने 2 दिसम्बर 2015 को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को ‘दिव्यांग’ नाम से संबोधित करने का निर्णय बताया। विश्व पटल पर जब दिव्यांगों के बारे में विचार करते हैं तो देखने में आता है कि ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, जर्मनी, अमरीका, ब्रिटेन सहित अनेक देशों में दिव्यांगों ने कहीं गणित तो कहीं भौतिकी, कहीं मीडिया, कहीं संगीत के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की है। यहां तक कि एक दिव्यांग को अपने कार्यक्षेत्र में ‘नोबेल पुरस्कार’ भी मिला।

लेकिन जब भारत में दिव्यांगों की चर्चा शुरू होती है तो एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम उभरकर आता है जो न केवल 140 करोड़ भारतीयों के लिए बल्कि विश्व के करोड़ों लोगों के लिए भी एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। उनके जीवन से न केवल दिव्यांग, बल्कि करोड़ों सर्वांग व्यक्तियों को प्रेरणा मिलती है। भारत के उस व्यक्तित्व का नाम है जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य। उनको कोई दृष्टि बाधित या दिव्यांग कहता है, तो कहते हैं कि मुझे यह अच्छा नहीं लगता। मैंने अपनी इन्हीं आंखों से साक्षात भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का बाल्यकाल रूप देखा है।

14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शांडिल्य खैर गांव में जन्मे, जिनका पूर्व में नाम डा. गिरिधर लाल मिश्र था, वे जन्म के 2 माह बाद ही अपनी दोनों आंखों की ज्योति खो चुके थे, लेकिन उन्होंने साहस नहीं खोया। 14 जनवरी 2024 को अयोध्या में 9 दिनों तक उनका अमृत महोत्सव मनाने की तैयारी चल रही है। पूज्य रामभद्राचार्य जी के जीवन के अतीत का जब अध्ययन करते हैं तो लगता है कि ईश्वर ने उन्हें साक्षात अपनी शक्ति प्रदान की है।

उन्होंने जीवन में कभी भी ब्रेल लिपि का उपयोग नहीं किया, जब वे 5 वर्ष के हुए तो श्रीमद्भगवत गीता और सात वर्ष की आयु में श्रीरामचरितमानस पूरी तरह से कंठस्थ कर लिया था। आरंभ से आचार्य (परास्नातक) तक सभी कक्षाओं में प्रथम श्रेणी एवं प्रथम स्थान प्राप्त किया। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणासी से शास्त्री तथा आचार्य में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
तदोपरांत पी.एच.डी. शोध के बाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी के निर्देश पर रामानंद संप्रदाय में विरक्त दीक्षित होकर जगतगुरु रामभद्राचार्य के पद पर सर्वसम्मति से मूर्धभिषेक हुए। ऐसे विलक्षण साहित्यकार जिनकी पुस्तकों का लोकार्पण देश के दो सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री क्रमश: अटल बिहारी वाजपेयी तथा नरेंद्र मोदी ने किया।

240 ग्रंथों का प्रणयन जिसमें 4 महाकाव्य सहित साहित्य के सभी विधाओं में रचनाएं रची गईं। साहित्य के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित सम्मान साहित्य अकादमी से 2005 में सम्मानित किए गए। 19 नवम्बर 1992 को चित्रकूट मध्य प्रदेश में श्रीतुलसीपीठ की स्थापना रामभद्राचार्य जी द्वारा की गई। श्री तुलसी प्रज्ञाचक्षु दिव्यांग उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की गई। उसके बाद विश्व स्तर पर दिव्यांगों के लिए जगतगुरु रामभद्राचार्य विश्व का पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय है, जहां से अब तक 5 हजार से अधिक  विद्यार्थी अध्ययन कर देश के खासकर उत्तरप्रदेश के अनेक उच्च स्थानों पर पदस्थ हैं। विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना 2001 में की गई।

इसके पश्चात श्री गीता ज्ञान मंदिर राजकोट गुजरात की स्थापना भी उनके द्वारा की गई। वशिष्ठ अयनम हरिद्वार उत्तराखंड की स्थापना भी उनके द्वारा की गई। साहित्य तथा सामाजिक योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 2015 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। जगतगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के वे जीवनपर्यंत कुलाधिपति बने रहेंगे। भारत सरकार के स्वच्छता अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें नौ रत्नों में शामिल किया गया।

भौतिक नेत्र न होते हुए भी, ब्रेल लिपि के बिना उपयोग के अब तक वे 1275 से अधिक श्रीरामचरितमानस पर कथा प्रवचन कर चुके हैं और श्रीमद्भागवत पर 1115 से अधिक कथा वाचन अभी तक कर चुके हैं। धारा प्रवाह संस्कृत संभाषण में विश्व में उनका कोई जोड़ नहीं है। वे एक घंटे में 100 श्लोक बनाने की क्षमता रखते हैं। दर्शन काव्य एवं लेखन अप्रतिहर्त गति उन्हें प्रदान है। तत्काल समस्या पूर्ति पर संस्कृत, ङ्क्षहदी आदि भाषाओं में वे श्लोक एवं अन्य विधा रच लेते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व शांति शिखर सम्मेलन मंम सोलह मिनट का ऐतिहासिक भाषण संपन्न हुआ। वे 22 भाषाओं के ज्ञाता हैं। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जब श्रीराम जन्मभूमि मामले पर बहस चल रही थी तो मुस्लिम पक्ष ने यह सवाल खड़ा किया कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा तो तुलसीदास ने जिक्र क्यों नहीं किया। ङ्क्षहदू पक्ष के लिए संकट खड़ा हो गया लेकिन तब संकट मोचन बने श्रीरामभद्राचार्य जी। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 15 जुलाई 2003 को गवाही दी और तुलसीदास के दोहा शतक में लिखे उस दोहे को जज साहब को सुनाया जिसमें बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा राम मंदिर को तोडऩे की बात कही गई है। दोहा इस प्रकार है :

रामजन्म मंदिर महिं मंदिरहि तोरि मसीत बनाय।
जबहि बहु हिंदुन हते, तुलसी कीन्ही हाय।।
दल्यो मीर बाकी अवध, मंदिर राम समाज।
तुलसी रोवत हृदय अति, त्राहि त्राहि रघुराज।।


जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर होने के 437 प्रमाण न्यायालय को दिए गए हैं। वे प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि वाल्मीकि रामायण के बाल खंड के 8वें श्लोक से श्रीराम जन्म के बारे में जानकारी शुरू होती है। रामभद्राचार्य जी बताते हैं कि वेद में भी श्रीरामजन्म का स्पष्ट प्रमाण है। ऋग्वेद के दशम मंडल में भी इसका प्रमाण है। रामचरितमानस में बहुत ही स्पष्ट लिखा है।

स्वामी रामभद्राचार्य जी ने प्रमाणों से इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को चकित कर दिया कि श्री रामलला अयोध्या उसी विवादित स्थल पर विराजते हैं। उनके दिए गए तर्कों के तारतम्य में ही उच्चतम न्यायालय में भी बहस हुई तो अधिवक्ताओं ने उनके द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को न्यायाधीशों के सामने प्रस्तुत किया। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि श्रीराम जन्मभूमि पर ही अयोध्या में श्री रामलला विराजते हैं, के पक्ष में निर्णय लेने में रामभद्राचार्य जी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। -प्रभात झा (पूर्व सांसद एवं पूर्व भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष)


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