लगता है सरकार ने कोरोना से अपने ‘हाथ धो लिए’

punjabkesari.in Thursday, Sep 03, 2020 - 05:00 AM (IST)

देश में कोरोना वायरस मामलों की गिनती में कोई कमी नहीं आ रही। पिछले कुछ सप्ताहों से इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है। प्रतिदिन करीब 80,000 लोग संक्रमित हो रहे हैं जोकि विश्व में सबसे ऊंची दर है। अभी भी ये आंकड़े भटकाने वाले हो सकते हैं। पहला यह कि देश में टैस्टिंग दर घोर रूप से 18,000 प्रति मिलियन है जोकि शायद बड़े राष्ट्रों के बीच सबसे कम है। 

हालांकि हमारी जनसंख्या का नंबर चीन के बाद आता है। ऐसी भी आशंका है कि ज्यादा टैस्टिंग का नतीजा खोजे जाने वाले मामलों की गिनती में बढ़ौतरी का हो सकता है। दूसरी बात यह है कि यहां पर ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि मौत का कारण कोविड मामलों की ज्यादा गिनती का नहीं बल्कि कुछ अन्य बीमारियां भी हैं जो मरीज पहले से ही भोग रहे हैं। ऐसी कोई मौत या शिकायत नहीं जहां पर पीड़ितों के रिश्तेदारों ने यह बताया हो कि मरने वाले का कोरोना वायरस के लिए टैस्ट नहीं हुआ था। जबकि भारत में हम लोग कोविड की पहली लहर के साथ भुगत रहे हैं, वहीं कई पश्चिमी देश कोविड की दूसरी लहरों को देख रहे हैं जहां पर ऐसी रिपोर्टें हैं कि यह और भी घातक है। यहां तक कि न्यूजीलैंड जैसे देश ने अपने आपको कोविड फ्री घोषित कर रखा था मगर वहां पर भी सभी उपायों तथा सावधानियों के बावजूद ताजा मामले उजागर हो रहे हैं। 

देश में महामारी के फैलने के बारे में और चिंताजनक तथ्य यह है कि ताजा ट्रैंड यह दर्शाता है कि यह बीमारी अब ग्रामीण क्षेत्रों की ओर अग्रसर है जहां पर स्वास्थ्य सहूलियतों की आधारभूत कमी है। एक आधिकारिक सर्वे के अनुसार अब नए पॉजिटिव मामलों का 50 प्रतिशत देश के 739 जिलों में से 538 में से आया है। इन्हें पूरी तरह से ग्रामीण या ग्रामीण जिलों के तौर पर देखा गया है। हमारी जनसंख्या का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण या फिर सैमी-ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहा है जहां पर बुरा स्वास्थ्य मूलभूत ढांचा है। ऐसे क्षेत्रों में पीड़ितों को अपना जीवन गंवाने का ज्यादा जोखिम है। गांव वाले अपने टैस्ट करवाने में भी आनाकानी करते हैं।

यहां तक कि पंजाब जैसे प्रगतिशील राज्य में भी गांवों में स्वास्थ्य टीमों को घुसने से मना किया जाता है विशेषकर माझा क्षेत्र में। ऐसा तर्क दिया जाता है कि स्वस्थ लोग जिन्हें अस्पताल ले जाया जाता है वे अपने घर को वापस नहीं लौट रहे। सरकार द्वारा जागरूक अभियान लांच होने के बावजूद ऐसे विचार लोगों के मनों में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में नए संक्रमण की गिनती के घटने का कोई संकेत नहीं। इस महामारी से पहले से ही बहुत ज्यादा लोग पीड़ित तथा प्रभावित हैं। लोगों ने बहुत ज्यादा क्षति को झेला है। सबसे ज्यादा प्रभावित असंगठित श्रमिक हैं। लाखों की तादाद में प्रवासी श्रमिक जो अपने घर की ओर लौट चुके हैं, अब फिर से अपने कार्य स्थलों पर लौटने के उत्सुक हैं क्योंकि उनके राज्य में रोजगार की कमी है। 

मनरेगा से संबंधित आधिकारिक आंकड़े दर्शाते हैं कि रोजाना मजदूरी पर निर्भर लोगों की गिनती में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है। हालांकि इसे भी एक वर्ष में 100 दिनों तक सीमित किया गया है। विशेष तौर पर उद्योग छोटे या मध्यम जोकि ज्यादा प्रभावित हुए हैं, अभी भी अपने काम शुरू करने में योग्य नहीं क्योंकि अर्थव्यवस्था में निरंतर गिरावट जारी है। हालांकि अर्थव्यवस्था पहले से ही ढलान पर है जोकि लॉकडाऊन से पहले से चल रही है। इसका मुख्य कारण नोटबंदी  तथा जी.एस.टी. का बुरा रोल आऊट  है। वह क्षेत्र जिसमें सबसे ज्यादा श्रमिक लगे हुए हैं अभी भी जद्दोजहद कर रहा है क्योंकि कोविड के मामले निरंतर बढ़ रहे हैं। इसके सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। अपने तौर पर सरकार ऐसा प्रतीत होती है कि उसने अपने हाथ सख्त पाबंदियों को लागू कर धो लिए हैं। 

वायरस को फैलने से रोकने में सरकार असफल हुई। शुरूआती दिनों में इसने सख्ती से पालना की तथा सख्त लॉकडाऊन को पूरे देशभर में लागू किया और उस समय पॉजिटिव मामलों की गिनती मात्र 500 थी। अब कुल आंकड़े 31 लाख को पार कर चुके हैं। अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के प्रयास में सरकार निरंतर ही पाबंदियां उठा रही है। यहां पर ऐसी कोई शंका नहीं कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की जरूरत है और इसके लिए संतुलन बनाए रखना जरूरी है। सरकार को ऐसे नियमों को लागू करना चाहिए जिसके बारे में वह सोचती है कि वायरस के फैलाव पर नियंत्रण करने के लिए अनिवार्य है। इससे अर्थव्यवस्था प्रभावित नहीं होनी चाहिए। इसमें कोई शंका नहीं कि नागरिक अपने भाई-बंधुओं की तरफ अपना सामाजिक दायित्व निभाए। दुर्भाग्यवश हमारे देश में ऐसी बात नहीं। 

देश में ऐसे बहुत सारी मिसालें हैं कि  लोग सामाजिक समारोह तथा पाॢटयों को आयोजित करने में लगे हुए हैं। हालांकि इसके लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों की तरफ से निर्देश तथा परामर्श दिए जाते रहे हैं। उससे भी सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार अपनाए हुए है। वह न तो मास्क पहनने को तैयार हैं तथा न ही सामाजिक दूरी बनाकर रखी जा रही है। कानून लागू करने वाली एजैंसियों के पास ऐसे अधिकार होने चाहिएं कि वह नियमों की पालना न करने वालों पर सख्त जुर्माना लगाए। इसी तरह इन एजैंसियों को सामाजिक दूरी को यकीनी बनाने के लिए भी कार्य करना होगा। ऐसे कदम अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं करते। 

दूसरी ओर सरकार समाज में प्रभावित लोगों की पहचान करे। ऐसे लोगों की पहचान हो जो 65 वर्ष की आयु से ऊपर हैं तथा अन्य बीमारियों जैसे मधुमेह तथा दिल की बीमारियों के मरीज हों। ऐसे लोगों को सख्ती से कहा जाए कि वह घरों के अंदर रहें और अगर वह बाहर आकर नियमों को तोड़ते पाए गए तो उन पर सख्त जुर्माने लगाए जाएंगे। इसके बदले में उनके नजदीकी रिश्तेदारों को जुर्माना भरना होगा। सरकार सामाजिक तथा स्वयंसेवी संगठनों की इस मामले में सहायता ले सकती है जो नियमों की पालना करवाए।  यहां तक कि ऐसे लोगों के रिश्तेदारों से बातचीत कर उन्हें समझाया जाए कि वह मरीजों को बाहर टहलने न दें। आखिरकार यह देश के सबसे बड़े हमले से पार पाने के लिए एक संयुक्त लड़ाई है।-विपिन पब्बी


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