राजनीति का खेल न्यारा, पार्टी धर्म से धड़ा प्यारा?

punjabkesari.in Sunday, Jun 23, 2024 - 05:59 AM (IST)

सोचा क्यों न यह लेख खुद की विचारक राजनीतिक सोच, दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आत्मिक लेखक की खुद्दारी से ओत-प्रोत हो राजनीतिक दलों में पनपे दूषित धड़ेबंदी सिस्टम व निजी महत्वाकांक्षा केंद्रित राजनीतिक सोच पर निष्पक्ष चोट करने हेतु उसी भावना से लिखा जाए? 

धड़ा तो द्वापर में भी था लेकिन महाभारत में श्री कृष्ण सारथी के रूप में पांडवों के साथ धर्म की अधर्म पर पताका लहराने की जिद के कारण ऐन महाभारत के मैदान के बीचों-बीच सुशोभित थे। कलयुग में सतयुग की कामना मिथ्याभाव लगती है। आज कलयुग में कोई कल्कि अवतार खुद अवतरित होकर भी राजनीति में अवसरवादी धड़ेबंदी में धर्म की अलख जगा इससे निजात दिला सकता है क्या? यह बीमारी सभी दलों में व्यापक रूप से स्थापित है बनिस्बत उनके जो मूल संगठन विचारधारा की सोच पर पहरा देने का दम तो भरते हैं लेकिन दिन-ब-दिन व्यक्तिगत केंद्रित महत्वाकांक्षी रोग के कारण जाने-अनजाने वह भी इसका शिकार बनते जा रहे हैं जिससे मौकापरस्त व राजनीतिकत्र्ता,कुटिल चालों व बनावटी छलकपट से सच्चे संगठनकत्र्ताओं को गुमनामी के अंधेरों में धकेलने में अक्सर कामयाब हो जाते हैं। 

क्योंकि मजबूत मौकापरस्त धड़ेबंदी के कारण अपना अभेद्य किला बनाने व उसके संरक्षण के लिए कवच व ढाल के कारण इस जटिल चक्रव्यूह को तोडऩे की क्षमता सीधे-सीधे समॢपत संगठनकत्र्र्ता मेंहोती नहीं, न ही उनका कोई धड़ा होता है जो उनको संरक्षण दे सके क्योंकि विशुद्ध रूप से वह संगठन धर्म करता होता है? यह बीमारी धड़ेबंदी के कारण ज्यादातर दलों के सिस्टम में विकराल रूप धारण करती जा रही है? राष्ट्र निर्माण में बाधक जातिगत धड़ेबंदी चुनावों ने चाहे मोदी सरकार की बाइज्जत वापसी तो कर दी है लेकिन मोदी के विजन व उसके उद्देश्य व निष्पक्ष मूलमंत्र सबका साथ,  सबका  विकास,  सबका  विश्वास व सबका प्रयास को हकीकत में बहुत गहरी चोट पहुंचाई है। वह सच्ची लगन से सबको साथ लेकर विकास की डगर पर तो अग्रसर रहे लेकिन जातियों में बंटे समाज को अथक प्रयास के बावजूद भी राष्ट्र व सांस्कृतिक भाव में उस तीव्रता से पिरोने में कामकाज नहीं हुए जिसका सपना जितनी तीव्र तीक्ष्णता से उन्होंने संजोया था। 

कुछ ऐसे महत्वाकांक्षी कारण हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार के बढ़ते वर्चस्व को ब्रेक लगाकर खुद के पंख खोलकर खेलने का मन बना लिया हो? भाजपा की यू.पी. में यह स्थिति धड़ेबंदी के कारण तो नहीं? या समाज में बदलाव लाने की चेष्टा के कारण भारत के निरंतर बढ़ते कद से ऊबकर नए प्रयोग को आमादा हो गया राष्ट्रीय सरोकार सामाजिक पहचान खोने के डर से विपक्षी अनर्गल प्रचार के कारण बौना हो गया? धर्म को बचाने के लिए चाहे सामाजिक हो, संगठनात्मकहो धड़ेबंदी जरूरी है लेकिन राष्ट्र धर्म को दरकिनार कर घटिया राजनीतिक सोच से खुद व समाज का वर्चस्व बढ़ाने का अहंकार जानलेवा साबित होता है। काश मेरा अंदेशा गलत साबित हो? 

पंजाब में कुछ राजनीतिक दल इन चुनावों में अनुकूल विशेष परिस्थितियों के बावजूद यथासंभव स्थान पाने से वंचित रहे? क्या उच्च स्तरीय प्रचार रणनीति की विशेष सीटों तक ध्यानाकर्षक रुचि के कारण दूसरी जीत सकने वाली फंसी हुई सीटों को खमियाजा भुगतना पड़ा? क्या नतीजन अनुकूल उपजी विशेष परिस्थितियों को भुनाने में पार्टियां कामयाब नहीं रहीं? कुछ टिकटधारियों की जमीनी परिस्थितियों की हकीकत का सच्चा आकलन शायद भविष्य में भूल-चूक से बचने हेतु विश्लेषण के विषय रहे? शायद कुछ सीटों पर उम्मीदवारों के संगठन कार्यकत्र्ताओं से मधुर जुड़ाव के अभाव ने विजयश्री से उनको कोसों दूर कर दिया? समस्त खामियों को नजरअंदाज कर दलों के कार्यकत्र्ताओं ने जी जान लगा दी लेकिन जिनको संगठन धर्म से ज्यादा खुद का धड़ा पसंद था, ने कार्यकत्र्ताओं की उम्मीदों पर गहरा वज्रपात कर ऐसे हालात पैदा कर दिए। 

भगवान श्रीकृष्ण ने तो महाभारत में धर्म की रक्षा हेतु पांडवों के धड़े के साथ खड़े होने की हिम्मत दिखाई लेकिन क्या कोई इस कलयुग में नि:स्वार्थ भाव से कटिबद्ध हो अलग अलग दलों के संगठनकत्र्ता का शोषण रोकने हेतु अधर्मी धड़ों के अभेद्य वर्चस्व को तोडऩे की हिम्मत दिखा पाएंगे? धड़े वर्चस्वता के चलते टिकट तो दिला सकते हैं लेकिन जीत किसी व्यक्ति विशेष की मकबूलियत के बलबूते तभी संभव है जब आप खुद कार्यकत्र्ताओं व आमजन से स्नेहपूर्ण स्वभाव के विशिष्ट गुण से युक्त हों? प्यार धड़े से नहीं धर्म से होना चाहिए जो सदा सजीव है..विश्लेषक होने के नाते मेरा मानना है कि लोकतांत्रिक विधि से संगठन धर्म मर्यादित धड़े को उसी भाव से अधर्मी धड़ों का यथार्थ संगठित होकर आपने दलों के हाईकमान के संज्ञान में लाकर सच्चे संगठन धर्म का पालन करना चाहिए?- डी.पी. चंदन


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