धर्म परिवर्तन : ईश्वर और आस्था को लेकर टकराव

punjabkesari.in Wednesday, Nov 13, 2024 - 06:56 AM (IST)

धर्म आज वोट खींचने का एक बड़ा साधन बनता जा रहा है क्योंकि हमारे राजनीतिक अन्नदाता धर्म परिवर्तन के मुद्दे को भुना रहे हैं और यह इस बात को रेखांकित करता है कि आज राजनीतिक चर्चा धार्मिक भावनाओं को भड़काने, घृणा फैलाने और धार्मिक आधार पर सांप्रदायिक मतभेद को बढ़ाने तक सीमित रह गई है। गत वर्षों में धर्म परिवर्तन के मुद्दे का सर्वाधिक इस्तेमाल किया गया और यह सर्वाधिक विस्फोटक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा बना है। इस मुद्दे के चलते एक चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई क्योंकि हमारे नेतागण इसका इस्तेमाल करते हैं। इस संबंध में हमारे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि यदि भाजपा महाराष्ट्र में सत्ता में आती है तो वह जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध कठोर कानून लाएगी।  

राजस्थान, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे 5 राज्यों ने पहले ही धर्म परिवर्तन विरोधी कानून पारित किए हैं। झारखंड ने भी ऐसा ही कानून पारित करने की मंशा जताई है। किसे दोष दें? हमारे नेता राजनीतिक निर्वाण के लिए विभाजनकारी प्रवृत्तियां पैदा कर रहे हैं, जिसके चलते सांप्रदायिक मतभेद बढ़ रहा है। कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया है किवह हिन्दू बहुसंख्यकवाद सांप्रदायिक राजनीति कर रही है और इसके लिए वह चुनावी दृष्टि से हाशिए पर खड़े मुसलमानों का इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है और इस तरह लव जिहाद जैसे भावनात्मक मुद्दों पर सांप्रदायिक हिंसा को संरक्षण दे रही है। हिन्दुत्व ब्रिगेड अपने विरोधियों को मुस्लिम पार्टी और टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्य बता रही है, जो आतंकवादियों को संरक्षण देते हैं और पाकिस्तान के एजैंडा पर काम कर रहे हैं और पाकिस्तान की पार्टियां हैं। धर्म परिवर्तन निरंतर जारी है। विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में प्रलोभन, नकदी, अंतर-धर्म विवाह आदि के माध्यम से अनुसूचित जातियों/जनजातियों का। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन संशोधन विधेयक 2024 पारित करने के बाद चर्चों पर छापे मारे और उसके सदस्यों पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया। झारखंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पूरे क्षेत्र को ईसाइयत मुक्त करने का लक्ष्य रखा है और हाल ही में 53 परिवारों का पुन: हिन्दू धर्म में परिवर्तन कराया। हिन्दू जागरण मंच का आरोप है कि भोपाल और केरल से आए ईसाई पादरी अशिक्षित आदिवासियों को रोजगार और धर्म का प्रलोभन देते हैं। उनकी शर्त यह है कि वे उसकी चंगाई सभा में ईसाई धर्म को स्वीकार करें। अनेक चर्चों को अपने अमरीका स्थित मुख्यालय से भारी धनराशि प्राप्त होती है और उन्होंने तमिलनाडु में सैंकड़ों हिन्दुओं को ईसाई बना दिया है। उल्लेखनीय है कि ईसाई धर्म को अपनाने वालों में 77 प्रतिशत हिन्दू हैं और उनमें से 63 प्रतिशत महिलाएं हैं। विश्व हिन्दू परिषद के एक नेता का कहना है कि प्रत्येक वर्ष 12 लाख हिन्दू या तो मुस्लिम बन जाते हैं या ईसाई और मध्य प्रदेश, राजस्थान, छततीसगढ, झारखंड, गुजरात और ओडिशा में घर वापसी आंदोलन चलाया जा रहा है।  

वर्ष 1967-68 में ओडिशा और मध्य प्रदेश द्वारा बनाए गए धर्म परिर्वतनरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा था कि धोखाधड़ी और जबरन धर्म परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा और बहुत ही खतरनाक है, जो अंतत: राष्ट्र की सुरक्षा, धर्म की स्वतंत्रता और नागरिकों की चेतना को प्रभावित कर सकता है। प्रत्येक नेता का एक ही इरादा है कि अपने वोट बैंक को भावनात्मक रूप से उकसाए रखे, ताकि उनके मंसूबे पूरे हो सकें। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि इससे देश को नुकसान हो रहा है। क्या इससे पंथ के आधार पर लोगों में और अधिक मतभेद और इससे देश में धर्म के आधार पर खाई और चौड़ी नहीं होगी? इस तरह से ये नेता एक दानव पैदा कर रहे हैं। 

दूसरी ओर विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने भी सशस्त्र युवाओं के समूह बनाए हैं, जिन्हें रक्षा सेना कहा जाता है और वे ईसाई धर्म में परिवर्तन को रोकने के लिए कार्य करते हैं। भारत का दुर्भाग्य यह है कि यहां पर हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई कट्टरवाद बढ़ रहा है और इसका कारण राजनीतिक और बौद्धिक दोगलापन है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जो व्यक्ति लोगों में और समुदायों में घृणा फैलाते हैं उन्हें कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए, चाहे वह हिन्दू मसीहा हो या मुस्लिम मुल्ला। हमारा नैतिक आक्रोश चयनात्मक नहीं, अपितु न्यायसंगत, समान और सम्माननीय होना चाहिए। हमारे नेतागण यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि वे इसके लिए दोषी हैं और न ही वे इस मूल मुद्दे का निराकरण करना चाहते हैं। इसलिए वे हिन्दू पुजारियों, ईसाई मिशनरियों या मुस्लिम मुल्लाओं द्वारा दिए गए धन को स्वीकार लेते हैं।   


रोचक तथ्य यह है कि भूटान, संयुक्त अरब अमीरात और अल्जीरिया में भी धर्म परिवर्तन रोधी कानून है। संयुक्त अरब अमीरात में इस्लाम से किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कराना अवैध है और इस्लाम धर्म को छोडऩा अपराध है जिसके लिए मृत्यु दंड का प्रावधान है। अल्जीरिया में इसके लिए 5 वर्ष और भूटान में 3 वर्ष की सजा का प्रावधान है। हमारे नेताओं, पार्टी और उनसे जुड़े संगठनों को यह बात समझनी होगी कि उनके कार्यों से हो रहा नुकसान स्थायी है। कुल मिलाकर हमारे राजनेताओं को यह बात समझनी होगी कि राष्ट्र दिलों और दिमागों का मिलन है और उसके बाद यह एक भौगोलिक इकाई है। हमारे नेताओं को धर्म परिवर्तन के नफे-नुकसान का विश्लेषण करना और धर्म का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए करने से बचना चाहिए।-पूनम आई. कौशिश         
 


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