धर्म के पर्दे के पीछे छिपे लुटेरे
punjabkesari.in Saturday, Nov 23, 2024 - 06:40 AM (IST)
अब आर.एस.एस.,भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित संघ परिवार के सभी संगठनों ने यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ को अपनाकर यह साबित कर दिया है कि वे इस देश की धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और संघीय धारा को मिटा कर धर्म आधारित गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करना चाहते हैं। इस नारे पर मुहर लगाकर आर.एस.एस. ने भी स्पष्ट कर दिया है कि ‘पूरा समाज एक परिवार की तरह है’ वाला उनका नारा झूठे प्रचार तक ही सीमित है।
वास्तविकता यह है कि वे गैर-हिंदू समुदाय को इस परिवार का हिस्सा नहीं मानते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि संघ और भाजपा नेता सत्ता से चिपके रहने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं क्योंकि ‘सबका साथ-सब का विकास’ का नारा, जो 2014 के चुनावों में प्रचारित किया गया था उसे अब खत्म कर दिया गया है। यह नेता सभी लोगों को एक समान मानने का झूठा दावा करते हैं।
मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ हर तरह के अत्याचार, झूठे प्रचार और हत्या जैसे जघन्य अपराध अब एक आम घटना बन गए हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के बारे में ‘लव जेहाद’, ‘धर्मांतरण’ और ङ्क्षहदू त्यौहारों के दौरान ङ्क्षहसा की झूठी कहानियां गढ़ी जाती हैं। जिस तरह से ‘संघ’ ने अपने 100 साल के गहन प्रचार से हिंदू धर्म से जुड़े लोगों के एक वर्ग को सांप्रदायिक रंग में रंग दिया है, उसके प्रभाव में वे बिना किसी डर के दूसरे धर्म के लोगों का नरसंहार भी कर सकते हैं। जिस तरह से दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के कार्यकत्र्ता अवैध मस्जिदों के निर्माण को लेकर हंगामा कर रहे हैं, वह भी बेहद चिंताजनक है। आर.एस.एस. द्वारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे सांप्रदायिक और विभाजनकारी नारे ऐसे समय में लगाए जा रहे हैं जब हिंदू समाज का एक बड़ा वर्ग ‘हिंदू धर्म’ की महान मानवीय विरासत की रक्षा करते हुए संघ की सांप्रदायिक विचारधारा के पूरी तरह से खिलाफ है। वह जानता है कि ‘धर्म’ कभी भी न्यायपूर्ण संघर्ष का आधार नहीं हो सकता।
दलित, आदिवासी और पिछड़ा समुदाय, जिन्हें शासकों के हाथों तथाकथित ‘चंद’ उच्च जाति के तत्वों द्वारा सदियों से हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है, अब अपने आत्म-सम्मान और समानता की बहाली के प्रति जागरूक हैं। मौलिक अधिकार और संघर्ष शुरू कर रहे हैं । इन वर्गों को मनुवादी व्यवस्था में गुलाम बनाए रखने के लिए ही उपरोक्त नारे का आविष्कार किया गया है। सच्ची पुकार यह है कि यदि हम अत्याचारी दल से नहीं लड़ेंगे तो मर जाएंगे। लेकिन यहां तो उत्पीड़कों को जालिम का डर दिखाकर शांत रहने को कहा जा रहा है। आर.एस.एस. अपने सनातनी दर्शन के तहत हिंदू समाज को जो नारा देता है, वह सामाजिक उत्पीडऩ को चुपचाप सहने और मुंह न खोलने का संदेश है। यहां तक कि सबसे आधुनिक ‘सिख धर्म’ में भी ‘महापुरुषों’, ‘संतों’, ‘ब्रह्म ज्ञानियोंं’ जैसे नामों की कोई कमी नहीं रही, जो लोगों को सिख गुरुओं और भकित लहर के महान विचारकों द्वारा रचित गुरबाणी के सच्चे उपासक बननेे के बजाय और अधिक अंध विश्वासी और कर्मकांडी बनाने में लगे हुए हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं के विपरीत इन बहरुपियों द्वारा चमत्कारों, मूर्ति एवं व्यक्तिगत पूजा का खुलेआम प्रचार किया जाता है।
यही चरित्र ईसाई धर्म से संबंधित ‘पादरियों’ का भी है, जो भोले-भाले गरीब ईसाइयों से ‘प्रार्थना’ के माध्यम से सभी सांसारिक कष्टों और पीड़ाओं से छुटकारा दिलाने का झूठ बोलकर हर तरह की मौज-मस्ती करते हैं। यदि प्रार्थना से सभी कष्टों का निवारण संभव होता, तो ईसाई बहुल आबादी वाले विकसित पश्चिमी देशों में आधुनिक अस्पताल खोलने की क्या आवश्यकता थी? हर क्षेत्र में नई वैज्ञानिक खोजों के दौर में जागरूकता की कमी के कारण आज भी बड़ी संख्या में लोग अंधविश्वास में फंसे हुए हैं। अंधविश्वासों का यह जाल मेहनतकश जनता के लिए शत्रु शक्तियों द्वारा बिछाया गया जाल है।
‘स्वयं-भू धार्मिक गुरु’ लोगों को वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत विचारधारा को पढऩे, समझने और व्यवहार में लाने से दूर रखना चाहते हैं, क्योंकि उनका व्यवसाय आम लोगों की इसी अज्ञानता पर आधारित है। जब हमने बड़ी मेहनत से पुराने विचारों और रीति-रिवाजों को त्याग दिया है, तो ये ‘स्वयंभू धार्मिक गुरु’ उसी शक्ति से हमें फिर से उसी बीमारी में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं। अप्राकृतिक घटनाएं यानी चमत्कार किसी भी तर्कसंगत और वैज्ञानिक सोच वाले व्यक्ति द्वारा स्वीकार नहीं किए जा सकते हैं। इसके विपरीत मनुष्य जन्म से ही शारीरिक क्रियाकलाप करता है और प्रकृति द्वारा बनाए गए नियम निरंतर सक्रिय रहते हैं और वैज्ञानिक पद्धति से निरंतर सामाजिक विकास के लक्ष्य निर्धारित करते हैं।
मोदी सरकार और आर.एस.एस. द्वारा संचालित संगठन अपने लेखन और प्रचार के अन्य माध्यमों, विशेष रूप से इलैक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया तथा पुराने मिथकों के माध्यम से विशेष विशेषणों के साथ ‘राजशाही’सरकारों (जो हमेशा जन-विरोधी हैं) की निंदा करते रहे हैं । आर.एस.एस. कभी भी आर्थिक समानता वाला समाज नहीं बनाना चाहता, जहां मनुष्य को उसके श्रम का पूरा मूल्य मिले, वह अपने प्रतिगामी ‘सनातनी दर्शन’ के प्रचार के माध्यम से अल्पसंख्यकों के खिलाफ झूठी कहानी बनाकर समाज का ध्रुवीकरण करना चाहता है। जरूरत सभी धर्मों, जातियों और राष्ट्रीयताओं के मेहनतकश लोगों को दूसरे धर्म के अपने साथी अनुयायियों के खिलाफ लडऩे के लिए एकजुट करने की नहीं है, बल्कि धर्म के पर्दे के नीचे छिपे लुटेरे शासकों और राक्षसी दुश्मनों के खिलाफ संघर्ष छेडऩे की है ताकि वे विभाजित हो जाएं।-मंगत राम पासला