पांच राज्यों के नतीजे बताएंगे देश का मूड

punjabkesari.in Tuesday, Oct 30, 2018 - 05:27 AM (IST)

सत्ता के सैमीफाइनल के लिए फील्ड सजनी शुरू हो गई है। 5 राज्यों के चुनावी नतीजे केन्द्र की मोदी सरकार का भविष्य तय करेंगे और यह बताएंगे कि 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए देश की जनता का मूड क्या है और ऊंट किस करवट बैठेगा। 

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम व तेलंगाना विधानसभा चुनावों के नतीजे 11 दिसम्बर को आएंगे और इन नतीजों पर राजनीतिक पर्यवेक्षकों के साथ-साथ पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। इस समय राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकारें हैं। तेलंगाना में टी.आर.एस. और मिजोरम में कांग्रेस की सरकार है। देश को कांग्रेस मुक्त करने का सपना संजोए बैठी भाजपा के लिए मिजोरम में कांग्रेस से सत्ता छीनना और भाजपा शासित तीनों राज्यों में सत्ता को बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती है। 

इन पांचों राज्यों में कुल मिलाकर 83 लोकसभा सीटें हैं जिनमें से इस समय 60 सीटें भाजपा के खाते में हैं। पांचों राज्यों के ये चुनाव मोदी सरकार के लिए एसिड टैस्ट से कम नहीं हैं। विभिन्न मीडिया एजैंसियों के चुनावी सर्वेक्षणों ने भाजपा की नींद अभी से उड़ा रखी है। चुनावी वार रूम में बैठे भाजपा के रणनीतिकार भी अपने माथे से पसीना पोंछने को मजबूर हो गए हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस जीत हासिल करती है तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए जहां कांग्रेस को संजीवनी मिलेगी, वहीं मोदी सरकार की उलटी गिनती भी शुरू हो जाएगी। लेकिन अगर भाजपा इन राज्यों में अपनी सत्ता बचाने में कामयाब हो जाती है तो 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए वह फिर से ऊर्जा हासिल कर लेगी। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा के लिए ऐसा करिश्मा कर पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा है। 

पिछले एक साल के दौरान देश में जो उपचुनाव हुए हैं वहां भाजपा को कई सीटें गंवानी पड़ी हैं और गुजरात में भी बड़ी मुश्किल से भाजपा अपनी सत्ता बचाने में सफल हुई है। अगर हम इन पांचों राज्यों के चुनावी समीकरणों की तरफ  नजर दौड़ाएं तो मध्य प्रदेश में 231 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 230 सीटों पर ही चुनाव होने हैं और एक सदस्य को यहां नामित किया जाता है। इस समय राज्य में भाजपा के पास 166, कांग्रेस के पास 57, बसपा के पास 4 और अन्य के पास 3 सीटें हैं। मध्य प्रदेश में मुकाबला इस बार भी कांग्रेस बनाम भाजपा के बीच ही होगा। बाकी दलों का अस्तित्व व प्रभाव यहां न के बराबर है। 

राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं जिनमें से इस समय भाजपा के पास 163, कांग्रेस के पास 21, बसपा के पास 4, एन.पी.पी. के पास 4, निर्दलीय के पास 7 और एन.यू.जैड.पी. के पास 2 सीटें हैं। यहां भी मुकाबला मुख्य रूप से कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होना तय है। राजस्थान के मतदाता हर 5 साल बाद सरकार बदलते आए हैं, लिहाजा कांग्रेस को इस बार राजस्थान से सर्वाधिक उम्मीदें हैं और भाजपा नेताओं के चेहरे पर परेशानी की लकीरें स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही हैं। छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं। वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ में भाजपा को 49, कांग्रेस को 39, बसपा को एक और अन्य को भी एक ही सीट मिली थी। यहां पर भी चुनावी रण में भाजपा और कांग्रेस ही फिर से आमने-सामने हुंकार भर रही हैं। 

पूर्वोत्तर के मिजोरम में कुल 40 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से इस समय कांग्रेस के पास 34, एम.एन.एफ. के पास 5 और एम.पी.सी. के पास एक सीट है। भाजपा को अभी तक इस राज्य में अपना खाता खुलने का इंतजार है। रही बात तेलंगाना की तो यहां कुल 119 विधानसभा सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां टी.आर.एस. ने 90 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस के हिस्से 13, ओवैसी की पार्टी ए.आई.एम.आई.एम. को 7, भाजपा को 5, टी.डी.पी. को 3 और सी.पी.आई.एम. को एक सीट मिली थी। इस बार भी यहां अधिकतर सीटों पर बहुकोणीय मुकाबले की संभावना है।

अगर हम मोदी सरकार की कारगुजारी और मतदाताओं के मूड को देखें तो एक बात साफ  हो जाती है कि भाजपा के लिए इस बार चुनावी डगर आसान नहीं है। आंकड़ों की बाजीगरी में भले ही मोदी सरकार खुद को अव्वल साबित करने की कोशिश करे और अपनी पीठ थपथपाए लेकिन लगातार बढ़ती महंगाई, रसोई गैस, पैट्रोल व डीजल के आए दिन बढ़ते दामों, रोजगार के घटते अवसरों,  नोटबंदी व जी.एस.टी. की मार से उबरने में नाकाम रहे व्यापारी तबके की नाराजगी, किसानों की आत्महत्याओं के बढ़ते आंकड़ों ने एक तरह से मोदी सरकार व भाजपा को बैकफुट पर ला खड़ा किया है। राफेल डील के मुद्दे पर भी लगातार आक्रामक हो रही कांग्रेस ने भाजपा को डिफैंसिव होने पर मजबूर कर दिया है। 

पिछले लोकसभा चुनावों में मोदी जी व भाजपा नेताओं ने देश की जनता को अच्छे दिन लाने का वायदा किया था लेकिन यह नारा और यह वायदा महज चुनावी जुमला ही साबित हुआ। विदेशों से काला धन भी वापस नहीं आया और न ही भाजपा नेताओं ने अपने वायदे के अनुरूप देश के हर आम आदमी के बैंक खाते में 15 लाख रुपए की राशि जमा करवाने का अपना वायदा निभाया। दिलचस्प बात यह भी है कि अभी तक  सरकार को भी यह पता नहीं है कि आखिर विदेशों में कितना काला धन जमा है और वह कब तक देश में लाया जाएगा।  प्रधानमंत्री मोदी जी ने कालेधन, भ्रष्टाचार पर चोट करने के उद्देश्य से नोटबंदी जैसा बड़ा फैसला लिया था जो एक क्रांतिकारी कदम बताया गया लेकिन न तो कालाधन खत्म हुआ और न ही भ्रष्टाचार में कमी देखने को मिली। 2014 में कांग्रेस की नाकामियों को गिनाकर और कई सारे वायदे कर के ही मोदी सरकार सत्ता में आई थी। 

आतंकवादी और विघटनकारी ताकतों को सबक सिखाने का भी मोदी सरकार ने देश की जनता से वायदा किया था लेकिन न तो  कश्मीर में आतंकवादी घुसपैठ थमी और न ही शहादतों का सिलसिला रुक पाया। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी मोदी सरकार बिल्कुल नाकाम साबित हुई है। भारतीय करंसी का इतना अवमूल्यन इतिहास में कभी नहीं हुआ जितना मोदी सरकार के कार्यकाल में हुआ और डॉलर  75 रुपए के आसपास पहुंच गया। हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वायदा निभाना तो दूर रहा, पिछले साल देश की 7 बड़ी आई.टी. कम्पनियों ने 76000 लोगों की छंटनी की । यानी विभिन्न मोर्चों पर मोदी सरकार की विफलताओं ने आम आदमी के भाजपा के प्रति मोह को भंग किया है। भाजपा के पास ले-देकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का कार्ड ही शेष बचा है, जिसे वह हर चुनाव में खेलती आ रही है। 

हमारे देश में 1984 के बाद 2014 का चुनाव पहला मौका था जब देश की जनता ने किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत दिया और देश की आजादी के बाद पहला मौका था जब किसी गैर-कांग्रेसी दल को लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। ऐसा जनता की उम्मीदों के चलते हुआ। लोगों को उम्मीद थी कि मोदी सरकार के कार्यकाल में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी होगा, कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के साथ-साथ पाकिस्तान को करारा सबक भी मिलेगा, महंगाई के दुष्चक्र से उन्हें निजात भी मिलेगी और देश की अर्थव्यवस्था स्वॢणम दौर से गुजरेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। निश्चित रूप से देश की जनता इन बातों से खिन्न है।  अगर इन चुनावों के नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं गए तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा का मिशन रिपीट का सपना जुमला ही बनकर रह जाएगा। विपक्ष के लिए भी इन पांचों राज्यों के चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं। साख दोनों तरफ  दाव पर लगी है।-राजेन्द्र राणा


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Pardeep

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