देश को ठोस ‘रक्षा रणनीति’ की जरूरत

punjabkesari.in Friday, Aug 09, 2019 - 03:26 AM (IST)

कारगिल युद्ध के 20 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली में करवाए गए एक राष्ट्र स्तरीय सैमीनार के दौरान सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि गत 20 वर्षों में युद्ध का चरित्र बदला है और सेना में परिवर्तन आया है। भविष्य के युद्ध और भी घातक हो सकते हैं इसलिए हमें प्रत्येक स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। 

रणनीति का महत्व व प्रभाव
देश के विभाजन के तुरंत बाद देश की रक्षा से जुड़ी आंतरिक समस्याओं से निपटने के लिए समयानुसार सेना द्वारा कार्रवाई तो की जाती रही, जैसे कि जब 1947-48 में पाकिस्तानी कबायलियों ने कश्मीर घाटी में घुसपैठ करके तबाही मचानी शुरू कर दी तो भारतीय सेना को बड़ी तेजी से संगठित करके दुश्मन को खदेडऩे का काम सौंपा गया मगर किसी राष्ट्रीय नीति के तहत नहीं। 

गुटनिरपेक्षता वाले सिद्धांत के अन्तर्गत रहते पं. नेहरू ने कभी सोचा भी नहीं था कि चीन जैसा पड़ोसी मित्र भी हम पर हमला कर सकता है। इसके अतिरिक्त अफसरशाही द्वारा सेनावाद वाली खौफ पैदा करने वाली गलतफहमियों से प्रभावित होकर उस समय के शासकों ने सेना के दर्जे को पीछे धकेल दिया और सशस्त्र सेना की जरूरतों को अनदेखा करना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय देश को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय नीति के अभाव के कारण ही कारगिल, डोकलाम, पुलवामा तथा बालाकोट सहित कई असुखद घटनाओं का सामना करना पड़ा और पाकिस्तान की ओर से जारी छद्म युद्ध का सामना आज भी बहादुर सेना कर रही है। 1985 में तत्कालीन रक्षा मंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने संसद में बयान दिया था कि सेना का नेतृत्व करने वाले निर्देश तो हैं मगर एक वृहद राष्ट्रीय रक्षा नीति वाला कोई भी दस्तावेज नहीं है। 

वर्तमान स्थिति
अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में डिफैंस प्लानिं  ग कमेटी (डी.पी.सी.) का गठन किया जा रहा है जो नैशनल डिफैंस की व्याख्या करने के साथ-साथ व्यापक रक्षा क्षेत्र बारे पुनर्विचार करके एक राष्ट्रीय रक्षा नीति के अंतर्गत राष्ट्रीय सैन्य युद्ध नीति का मसौदा तैयार करके सरकार को सौंपेगी। 

बनावट तथा भूमिका : डी.पी.सी. प्रमुख एन.एस.ए. होगा तथा उसके सदस्य तीनों सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख, जिनमें से बारी-बारी अनुसार चेयरमैन चीफ ऑफ स्टाफ (सी.ओ.एस.) शामिल होगा। इनके साथ रक्षा, विदेशी मामलों तथा वित्त मंत्रालय (खर्चे) के सचिव सदस्य होंगे। चीफ ऑफ इंटेग्रेटिड डिफैंस स्टाफ (सी.आई.डी.एस.) को सदस्य सचिव के तौर पर नामांकित किया गया है और उनका वर्तमान कार्यालय डी.पी.सी. का मुख्यालय होगा। डी.पी.सी. की 4 उप समितियां होंगी। पहली नीति तथा युद्ध कला से संबंधित, दूसरी योजना तथा विकास क्षमता विषय पर कार्य करेगी, तीसरी रक्षा बिन्दुओं पर कूटनीति तय करने बारे अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी तथा चौथी रक्षा उत्पादन बारे कार्य करेगी। इन सभी उप समितियों की सिफारिशों के आधार पर डी.पी.सी. एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके रक्षा मंत्री को सौंपेगी तथा कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सी.सी.एस.) से स्वीकृति लेगी। 

समीक्षा तथा सुझाव
डी.पी.सी. का मुख्य उद्देश्य विदेशी खतरों की प्राथमिकता तय करके मजबूत रणनीति तैयार करना है मगर इस कार्य को पूर्ण करने हेतु समयबद्ध नहीं किया गया। देश की रक्षा से जुड़े अनेकों मसलों से निपटने के लिए पुख्ता दस्तावेज तैयार करना चुनौतीपूर्ण है जिसके लिए दूरअंदेशी वाली सोच जरूरी है। देश के सामने आंतरिक खतरों, जैसे कि जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों के कुछ हिस्सों में जारी आतंकवाद में अक्सर सेना का इस्तेमाल किया जाता है। प्रश्र उत्पन्न होता है कि क्या इस बारे समिति को कोई कार्य सौंपा गया है? यह स्पष्ट नहीं। क्या समिति भारत की परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने बारे भी कोई पुनर्विचार करेगी? 

नि:संदेह एक वृहद राष्ट्रीय रक्षानीति की जरूरत तो कई दशकों से महसूस की जा रही थी। इस सिलसिले में कुछ उच्च स्तरीय संस्थाएं भी गठित की गईं, जैसे कि नैशनल सिक्योरिटी कौंसिल (एन.एस.सी.) तथा नैशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी बोर्ड (एन.एस.ए.बी.)। अब डी.पी.सी. गठित करने के बाद इनकी भूमिका क्या होगी? अफसोस की बात तो यह भी है कि कुछ वर्ष पूर्व सरकार के आदेशों अनुसार सेना के आधुनिकीकरण को लेकर 15 वर्षीय योजना तैयार की गई थी, जिसकी स्वीकृति अभी तक सरकार ने नहीं दी। हथियारों, उपकरणों, जहाजों, पनडुब्बियों आदि की कमी का असर युद्धक तैयारी पर पड़ता है। 

राष्ट्रीय रणनीति बनाने में एक गैर-सैन्य अधिकारी पूर्ण रूप में अपना योगदान नहीं डाल सकता। भविष्य के युद्ध का घेरा बड़ा होगा और यह धरती, आकाश तथा समुद्र में सांझे तौर पर लड़ा जाएगा, जिसमें साइबर युद्ध की सबसे बड़ी भूमिका होगी। यह देश हित में होगा यदि तीनों सशस्त्र सेनाओं तथा सूचना प्रणाली का एकीकरण करके उन्हें एक सांझे मंच पर लाया जाए। यह तभी सम्भव हो सकता है यदि सी.डी.एस. की नियुक्ति करके उसका दर्जा ऊपर नहीं तो कम से कम एन.एस. के बराबर का होना चाहिए।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.) 
 


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