संसद में सबसे बड़ा लाभार्थी सत्ता में बैठी सरकार है
punjabkesari.in Friday, Jul 19, 2024 - 05:27 AM (IST)
प्रश्न : जब संसद नहीं चलती या बाधित होती है, तो सबसे बड़ा लाभार्थी कौन होता है?
उत्तर : सत्ता में बैठी सरकार।
तर्क बिल्कुल सीधा है। (द्ब) सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है (द्बद्ब) संसद जनता के प्रति जवाबदेह है (द्बद्बद्ब) इसलिए जब संसद काम नहीं करती, तो सरकार किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होती! संसद के आगामी सत्र के लिए निर्धारित कुल समय 190 घंटे है। इस समय को सरकार और विपक्ष के बीच इस प्रकार विभाजित किया गया है। प्रश्नकाल के लिए लगभग आधे प्रश्न और शून्यकाल के लिए आधे नोटिस विपक्षी सांसदों द्वारा दायर किए जाते हैं। इस प्रकार विपक्ष के सदस्यों के पास प्रश्न उठाने और सार्वजनिक महत्व के मामले उठाने के लिए 31 घंटे होते हैं। इसकी तुलना में, केंद्र सरकार को सरकारी कामकाज और अन्य मुद्दों के लिए कुल 190 घंटों में से 135 घंटे मिलते हैं जो कुल समय का 70 प्रतिशत है। सरकार को उपलब्ध घंटों में कटौती करने की एक वैध आवश्यकता है। विपक्ष को कुछ और समय आबंटित किया जाना चाहिए।
प्रत्येक सदन में हर सप्ताह 4 घंटे का समय आरक्षित किया जाना चाहिए, ताकि तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों पर चर्चा की जा सके। इसके अतिरिक्त, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के लिए भी 2 घंटे आरक्षित किए जाने चाहिएं (यहां सांसद तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामले को संबंधित मंत्री के ध्यान में लाता है, जिसे उत्तर देने का दायित्व सौंपा जाता है)। इससे विपक्ष को राष्ट्रीय सार्वजनिक महत्व के मुद्दों को उठाने के लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों में हर सप्ताह 6 घंटे का अतिरिक्त समय मिलेगा। इसका मतलब होगा कि सरकारी कामकाज के लिए लगभग 117 घंटे और विपक्ष के लिए 49 घंटे। यह एक बहुत ही निष्पक्ष प्रणाली है। हाल के वर्षों में, विपक्ष की पर्याप्त सुनवाई के बिना कई महत्वपूर्ण विधायी निर्णय लिए गए हैं। उदाहरण के लिए, कृषि कानूनों के पारित होने के दौरान, लोकसभा में केवल एक विपक्षी सदस्य को बोलने की अनुमति दी गई थी। अंतत:, इन कानूनों को निरस्त करना पड़ा।
उल्लेखनीय है कि 17वीं लोकसभा में कुल 221 विधेयक पारित किए गए। इनमें से एक तिहाई से अधिक विधेयक 60 मिनट से भी कम समय की चर्चा के साथ जल्दबाजी में पारित किए गए। समितियों द्वारा 6 में से केवल 1 विधेयक की ही जांच की गई। यहां तक कि जो विधेयक समितियों के पास पहुंचे, उन्हें भी लापरवाही से निपटाया गया। भारतीय न्याय संहिता, 2023, जिसमें 356 संशोधनों के साथ आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव का प्रस्ताव है, भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य विधेयक पर केवल 13 बैठकों में चर्चा की गई। इसकी तुलना में, आपराधिक प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक, 2006, जिसमें 41 संशोधन थे, की गृह मामलों की समिति द्वारा 11 बैठकों में जांच की गई। हाल ही में विपक्ष की न्यूनतम भागीदारी वाला एक और मुद्दा संसद सुरक्षा उल्लंघन पर ‘चर्चा’ (एस.आई.सी.) था।
2001 में, जब संसद पर हमला हुआ, तो संसद के दोनों सदनों ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को शामिल करते हुए एक व्यापक चर्चा की। इस समावेशी संवाद ने सुरक्षा ङ्क्षचताओं को सहयोगात्मक और पारदर्शी तरीके से संबोधित करने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। हालांकि, इसके विपरीत, 2023 में, जब संसद की सुरक्षा भंग हुई, तो इस विषय पर चर्चा की मांग करने पर 146 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया। करों के अनंतिम संग्रह विधेयक पर केवल 6 सदस्यों ने बहस की और इसे केवल 30 मिनट में पारित कर दिया गया।
इसी तरह, दूरसंचार विधेयक में केवल 8 सदस्यों की भागीदारी देखी गई और इसे एक घंटे के भीतर पारित कर दिया गया। कई अन्य विधेयकों का भी यही हश्र हुआ जिनमें जन विश्वास विधेयक, डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक, दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक आदि शामिल हैं। सितंबर 2020 और अगस्त 2021 के बीच, सांसदों द्वारा लोकसभा में अल्पकालिक चर्चा के लिए 113 नोटिस दायर किए गए। केवल 2 स्वीकार किए गए। तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों पर बहस के लिए नोटिस की अनुमति नहीं देना संसद में विपक्ष की आवाज को दबाने का सबसे घातक तरीका है। पीठासीन अधिकारियों को अपनी बुद्धि से इस पर ध्यान देना चाहिए। संसद में सरकार और विपक्ष के बीच समय के पुन:आबंटन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यह केवल एक प्रक्रियागत समायोजन नहीं है, बल्कि जवाबदेही और प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए एक बुनियादी आवश्यकता है। (अतिरिक्त शोध : चाहत मंगतानी, धीमंत जैन)-डेरेक ओ ब्रायन (संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)