प्रदूषण सरकार फैलाए, सजा जनता पाए

punjabkesari.in Saturday, Nov 23, 2024 - 05:35 AM (IST)

यह बात सिद्ध हो चुकी है कि लगभग 20 लाख लोग हर साल प्रदूषण के कारण मौत की नींद सो जाते हैं। दिल्ली यानी एन.सी.आर. में 22 लाख बच्चों के फेफड़े वायु प्रदूषण से खराब हो रहे हैं। 7 करोड़ लोगों की आयु प्रति वर्ष 7 साल कम हो रही है। जो बीमारियां बुढ़ापे में हुआ करती थीं, अब जवानी में होने लगी हैं। इसका अमीरी-गरीबी से बस इतना लेना-देना है कि पैसे वाला अपनी सुरक्षा के लिए किले बनवा सकता है लेकिन उसे भी खुले में निकलकर सांस तो लेनी ही पड़ती है। उसे भी बीमार होना ही है।

कथा वायु प्रदूषण की : वह दृश्य सामने आना स्वाभाविक है जो कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाऊन में देखने को मिला था। दूर तक नजर डालो तो सब कुछ साफ दिखे, आकाश ताकना हो या पृथ्वी को निहारना, सब एकदम साफ और स्पष्ट। यहां तक कि नदियों से जहरीली झाग लुप्त हो गई, जल की निर्मल धारा बह रही थी। लोग कहने लगे थे कि खिड़की या छत से जो नजारा सामने होता था वैसा पहले कभी देखा जाना संभव न होने से पता ही नहीं था कि प्रकृति हम पर कितनी कृपालु है। दिल्ली एन.सी.आर. में वायु प्रदूषण का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। ऐसे दिन नसीब थे कि सुबह-शाम की सैर, दिन में भरपूर मेहनत के बाद भी तरोताजा और खुशमिजाज तबीयत, परिवार के साथ बैठकर आंगन हो या बरामदा, सुख-दुख बतियाने का मजा और बड़ी से बड़ी समस्या का हल चुटकियों में निकालने की तरकीबें तुरंत दिमाग में आने लगती थीं।

इस क्षेत्र के लोगों को याद होगा कि 90 के दशक में इसे टॉक्सिक हेल यानी विषाक्त नर्क कहा जाने लगा था। इसकी आहट 80 के दशक से सुनाई देने लगी थी। उस समय के पुरोधाओं यानी विशेषज्ञों और जनता के प्रतिनिधियों ने सरकार को सचेत करने का काम किया कि अगर फौरी कार्रवाई नहीं हुई तो भविष्य में होने वाली दिख रही बर्बादी को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। इस खबरदारी का असर यह हुआ कि 90 के दशक में वायु कानून, पर्यावरण अधिनियम, केंद्र तथा राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अस्तित्व में आ गए। परंतु हालात गंभीर हो रहे थे और तब उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि वायु प्रदूषण रोकने का प्लान बना कर दे।  इधर-उधर से आंकड़े जुटाकर और अपनी गप्प मारने की कला का प्रदर्शन करते हुए योजना बनाई। अमल करना इसलिए संभव नहीं था क्योंकि उसमें जनता का सहयोग लेने की कोई बात ही नहीं थी। शेखचिल्ली जैसे वायदों को निभाया ही नहीं जा सकता था। सरकार जो भी करे, जनता पर भारी पड़े।

जो किया उसका परिणाम : कह सकते हैं कि पहला चरण बुरी तरह असफल हुआ। उसके बाद सन् 2010 से सरकारी तीरंदाजों ने ऐसी प्लानिंग की और जिसके अंतर्गत दावा किया कि अरे दिल्ली और एन.सी.आर. में रहने वाले लोगो, हमने सन् 2025 तक और उसके बाद का भी प्लान बना लिया है। हर हाल में आपके जीवन में वायु विष घुलने नहीं दिया जाएगा। वाहन टैक्नोलॉजी से लेकर प्रदूषण की श्रेणियां बना दीं और उन्हें नीला, गुलाबी, संतरी और लाल रंग देकर निशानदेही कर दी। अब क्योंकि सरकार अपने चेहरे की धूल साफ करने के बजाय आइने को पोंछती रही थी इसलिए अक्तूबर, 2016 में इतनी धुएंबाजी का सामना करना पड़ा कि जनता त्राहि-त्राहि कर उठी। इससे निपटने के लिए बचकाने उपाय किए गए जैसे गाडिय़ां नंबर प्लेट के हिसाब से एक दिन इधर और एक दिन उधर से चलेंगी। पार्किंग फीस बढ़ा दी जबकि पार्किंग स्लॉट ही नहीं थे। प्रदूषण की नाकेबंदी करने के लिए 8 हॉटस्पॉट भी बना दिए। भूल गए कि कुदरत के निजाम में दखलंदाजी करने का क्या परिणाम हो सकता है।

नवंबर का महीना सन् 2017 से ऐसा बदनाम हुआ कि इसके आते ही पूरी आबादी को सिहरन और ठिठुरन होने लगती है। अब सरकार बहादुर को कुछ तो हरकतें करनी ही थीं इसलिए जनवरी, 2017 से ग्रैप लागू करने की घोषणा कर दी। इसे भी एक, दो, तीन , चार क्रमांक दिए। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल या एन.जी.टी. का इतना बड़ा हौवा बना कर खड़ा कर दिया कि मानो जैसे उसकी कार्रवाई से विषैली हवा का दम निकल जाएगा, लोगों की सांसें उखडऩा बंद हो जाएंगी, आंखों में जलन और नाक तथा गले में धूल-मिट्टी घुसने का एहसास नहीं होगा। निर्माण कार्य बंद होने से जिनकी रोजी-रोटी बंद हुई, समय पर ट्रांसपोर्ट और अन्य सुविधाओं के न मिलने से और काम में देरी होने से व्यापार और उद्योग का कितना नुकसान हुआ, कोई सुनवाई नहीं। 

एन.जी.टी. के सिपाही गश्त पर रहते हैं और जरा सी चूक हुई या मुट्ठी गर्म नहीं हुई तो लाखों का जुर्माना भरना ही है वर्ना आदेश का पालन न करने पर सरकारी ताला जड़ा जा सकता है जो तब ही खुल सकता है जब अदालत से ऑर्डर लाएं या जोर-जुल्म से लगाया गया जुर्माना भरें।  

एक सलाह : एक सलाह है कि अगर अभी से एन.सी.आर. की बाऊंड्री को ऊंचे और स्वच्छ वायु देने वाले पेड़ों से ढांपकर एक वन प्रदेश बनाने की नीति बने तो कारगर हो सकती है। वाहनों की संख्या नियंत्रित करना और धुआं उगलती बसों को बदलना होगा। वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत जैसे हाइड्रो पॉवर, सोलर एनर्जी, विंड  मिल संयंत्र एमरजैंसी की तरह स्थापित करने होंगे। 
प्रत्येक उद्योग के लिए शर्त कि उसके यहां प्रदूषण रोकने के यंत्र लगाना अनिवार्य है। बिजली का उत्पादन थर्मल पॉवर प्लांट से करना बंद कर गैर-पारंपरिक स्रोतों से करना होगा।-पूरन चंद सरीन
 


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