बस यही है केन्द्र सरकार की ‘महत्वपूर्ण उपलब्धि’

punjabkesari.in Monday, Oct 08, 2018 - 04:15 AM (IST)

इस सरकार का कार्यकाल समाप्ति की ओर है, और मैं इस बात पर विचार कर रहा था कि इस सरकार ने क्या कार्य किया है और एक राष्ट्र के तौर पर उसका हमारे लिए क्या मतलब है। हम इस बात पर तब विचार कर रहे हैं जब एक हफ्ता पहले बाजार में लगातार मंदी रही है और इसने सरकार तथा इसकी आर्थिक नीतियों में कोई भरोसा नहीं जताया है। रुपया अपने निम्नतम स्तर पर है। पैट्रोल की कीमत इतिहास में सबसे अधिक है और इस बात का कोई भरोसा नहीं है कि मई तक यह और अधिक नहीं बढ़ेगा। 

पिछले कई महीनों से बाजार ने जो कुछ हासिल किया था वो तीन दिन में खत्म हो गया। एक गुजराती होने के नाते जिसने इस देश और इसकी तरक्की में 20 साल से निवेश किया है, मैं व्यक्तिगत तौर पर यह देख और महसूस कर सकता हूं कि बाजार को कितना नुक्सान पहुंचा है। अन्य निवेशक भी इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था ने पिछले पांच साल में इतनी बढ़ौतरी दर्ज नहीं की है, जितना विकास इस सरकार के सत्ता में आने से पहले पिछले 10 साल में हुआ था। अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ गई है। 

हम कहते हैं कि हम दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं परंतु ऐसा इसलिए सम्भव हुआ कि चीन की अर्थव्यवस्था में हमारी अर्थव्यवस्था के मुकाबले ज्यादा मंदी आई है: गैर विवादित तथ्य यह है कि अर्थव्यवस्था के विकास की दर धीमी हुई है। सकारात्मक स्तर पर सरकार यह दावा कर सकती है कि इसने अपने कार्यकाल में महंगाई को नियंत्रण में रखा। सरकार यह भी दावा कर सकती है कि उसने काले धन के खिलाफ कड़े कदम उठाए, चाहे हम इस बात से सहमत हों या नहीं कि सरकार के इस कदम से कोई परिणाम मिला या नहीं। अर्थव्यवस्था के स्तर पर यही पृष्ठभूमि है। इस बात की सम्भावना बहुत कम है कि जब सरकार 2019 के चुनावों के लिए प्रचार की तैयारी करेगी तो वह अपनी आर्थिक उपलब्धियों को गिना पाएगी। 

दूसरी तरफ बेरोजगारी और विकास के मामले में परस्पर विरोधी दावे किए जा रहे हैं। हालांकि भारत में इस संबंध में स्पष्ट तौर पर कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं परंतु जिन लोगों की पहुंच स्वतंत्र आंकड़ों तक है उनका कहना है कि नौकरियों की स्थिति और खासतौर पर स्थायी नौकरियों की स्थिति किसी भी स्थिति में अच्छी नहीं है तथा पहले से बेहतर तो बिल्कुल नहीं। सरकार ने प्रधानमंत्री के माध्यम से कुछ दावे किए हैं लेकिन आंकड़े इन दावों की पुष्टि नहीं करते। यदि हम बहुसंख्यक किसान समूहों, पाटीदारों, जाटों तथा मराठों के आंदोलनों पर नजर डालें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सरकार इतनी नौकरियों का प्रबंध नहीं कर सकी है जिससे लोगों को कृषि से आधुनिक अर्थव्यवस्था की तरफ शिफ्ट किया जा सके। 

दूसरी तरफ विदेश नीति के मामले में, अपने प्रभाव से क्षेत्र में हम चीन से पीछे आ गए हैं। चीन ने अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति के माध्यम से हमारे रणनीतिक क्षेत्र श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान तथा पाकिस्तान में अतिक्रमण कर लिया है। आज हम अपने पड़ोस में हिंद महासागर क्षेत्र तथा दक्षिण एशिया में पहले के मुकाबले कम प्रभावशाली हो गए हैं। कोई भी विशेषज्ञ इस बात से इंकार नहीं करेगा। मेरा मानना है कि इन सब बातों में सरकार से बड़ी ताकतों का रोल है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी सरकार चीन की ताकत का विरोध कर पाती क्योंकि चीन हमसे ज्यादा शक्तिशाली है। मैं नहीं समझता कि कोई भी सरकार नौकरियों की स्थिति अथवा पैट्रोल की कीमतों अथवा रुपए के मामले में कोई खास परिवर्तन ला सकती थी। इस बात की एक सीमा होती है कि सरकार, कोई भी सरकार, क्या कर सकती है। 

हालांकि मेरा यह मानना है कि इस सरकार ने विशेष तौर पर एक ऐसा कार्य किया है जो अब से पहले किसी भी सरकार ने नहीं किया था। सरकार ने राजनीति और चर्चा में यह बात शामिल कर दी है कि सिर्फ एक पक्ष ही सही है। सिर्फ एक विशेष दृष्टिकोण ही राष्ट्रीय हित में है तथा इस दृष्टिकोण से असहज महसूस करना अथवा इसका विरोध करने का मतलब है गद्दार और राष्ट्र विरोधी होना। यह तथ्यों का नहीं बल्कि लहजे का बदलाव है। भारत में हम जिस तरह से चर्चा और तर्क करते हैं उसमें 2014 के बाद एक नाटकीय बदलाव आया है। इस सरकार ने उस स्पेस को परिभाषित किया है जिसे यह राष्ट्रीय हित के तौर पर देखती है, फिर चाहे वह काला धन हो या आतंकवाद अथवा शरणार्थियों या अल्पसंख्यकों के अधिकारों का मामला। 

वर्तमान में अपने दृष्टिकोण को रखना आसान नहीं है, यदि यह इस परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता। यदि आप सैन्य शक्ति तथा उस मशीनरी पर भारी भरकम राशि खर्च करने पर असहज महसूस करते हैं जिसका कभी इस्तेमाल नहीं होगा, तो आप राष्ट्रवादी नहीं माने जाएंगे।  यदि आप सोचते हैं कि राष्ट्रगान और तिरंगे झंडे का अपना एक स्थान है परंतु वह स्थान हर जगह नहीं है तो इसका मतलब यह माना जाएगा कि आप अपने देश से घृणा करते हैं। 

यदि आप अपने पड़ोसियों से शांति चाहते हैं तो आप गद्दार हैं। मुझे यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि यह बदलाव हुआ है। हममें से जिन लोगों ने इसे अपनी आंखों के सामने होते देखा है उनके लिए यह बिल्कुल स्पष्ट है। हम अपने ही कई लोगों को दुश्मन के तौर पर देखने लगे हैं। यह एक ऐसा बदलाव है जो हमारे साथ बना रहेगा, चाहे 2019 और उसके बाद सत्ता में कोई भी आए। हमने उस घिनौनेपन और बुराई को हवा दी है जो अब से पहले बोतल में बंद था। इस सरकार ने इसे खोल दिया है और मेरा मानना है कि यह इस सरकार की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है।-आकार पटेल


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Pardeep

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