‘हमलों या प्रतिबंध’ से खत्म नहीं होगा आतंकवाद

punjabkesari.in Thursday, Mar 07, 2019 - 04:13 AM (IST)

भारत की सामरिक इच्छाशक्ति और दौत्य-संबंधों के जरिए विश्व समुदाय में पाकिस्तान को अलग-थलग करने का जबरदस्त प्रदर्शन रहा। मुमकिन है किसी मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव से प्रतिबंधित कर दिया जाए जैसा कि पहले अन्य आतंकी संगठनों को लेकर किया गया लेकिन क्या पाकिस्तान से दुनिया में आतंक का निर्यात कहीं भी कम हुआ? हम भारत सरकार के बदलते तेवर से खुश हो सकते हैं पर यह समस्या का शाश्वत निदान कतई नहीं है।

इस्लाम के कुछ हित-साधक लोगों द्वारा गलत परिभाषा, धर्म के व्यावहारिक पक्ष में बदलाव न होने देने की उनकी जिद, पाकिस्तानी समाज में अशिक्षा के कारण एक बड़े वर्ग का जड़वत रहना, जम्हूरियत का आवरण लेकिन भ्रष्ट और अय्याश सेना का अपने हित में आतंकवाद को राज्य-नीति की अघोषित रीढ़ बनाना और इसके लिए हर प्रजातांत्रिक संस्थाओं पर शिकंजा कसे रहना क्या किसी सुरक्षा परिषद प्रतिज्ञा-पत्र 1267 के फैसले से या भारत की एक बमबारी में 300 आतंकियों के मारे जाने से खत्म हो सकता है?

दुनिया के 3500 सालों के लिखित इतिहास में शायद पहली बार पाकिस्तान और यहां से परमाणु शक्ति-सम्पन्न सेना द्वारा चलाए जा रहे इस्लामिक आतंकवाद ने इतनी गहरी जड़ें पकड़ रखी हैं कि अब अगर पाकिस्तान की सेना भी चाहे तो इसे खत्म नहीं कर सकती। वैसे वह स्वयं भी अपने अस्तित्व के लिए इसे खत्म करना नहीं चाहेगी, जब तक कि पाकिस्तान का बड़ा समाज इस्लाम के मूल भाव को समझते हुए आतंकवाद के खिलाफ मर-मिटने के भाव में खड़ा न हो जाए।

ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान की राजधानी से मात्र 50 किलोमीटर दूर एबटाबाद में मारे जाने के बाद अति उत्साह में अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि यह अमरीका की अल कायदा को खत्म करने के अभियान में अप्रतिम सफलता है लेकिन अल कायदा इसके बाद ज्यादा खतरनाक अयमान अल जवाहिरी के हाथों चला गया और पहले से ज्यादा हिंसक घटनाओं को पूरे विश्व में अंजाम दिया। अब ओसामा बिन लादेन के बेटे के युवा और खूंखार हाथों में अल कायदा के नेतृत्व के जाने की बात चल रही है।

जमात-उद-दावा का मुखिया हाफिज हर तीसरे दिन जनसभा करता हुआ खुलेआम लोगों को बरगलाता है और फिदायीन हमले के 10 दिन पहले जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया और इस कांड के जन्मदाता मसूद ने पाकिस्तान में अपनी तकरीर में कहा था कि अगर सब कुछ सही रहा तो एक महीने में हिंदुस्तान से कश्मीर को आजाद करा लिया जाएगा।

इच्छाशक्ति का पहला प्रदर्शन
आजाद भारत के इतिहास में पाक-प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ शक्तिशाली इच्छाशक्ति का पहला प्रदर्शन सेना द्वारा 27 फरवरी, 2019 को हुआ। 14 फरवरी के पुलवामा फिदायीन हमले के सभी सबूत इस बार फिर पाकिस्तान को दिए गए। भारत ने एक डोजियर भी पाकिस्तान सरकार को दिया जिसमें सन् 2014 से 2017 तक कश्मीर आतंकी घटनाओं में पकड़े गए 4 आतंकी सरगनाओं के पाकिस्तानी होने, उनके घर के पते भी शामिल थे।

जिस दिन पुलवामा पर फिदायीन हमला किया गया उस दिन इस आप्रेशन से जुड़े सैल के चार सदस्यों का लगातार पाकिस्तान स्थित हैंडलरों, जो जैश के कार्यालय में उपस्थित थे, से बातचीत का ब्यौरा अमरीका की एफ.बी.आई. ने न केवल भारत को सौंपा है बल्कि पाकिस्तान सहित दुनिया के तमाम बड़े देशों को भी। क्या अब भी किसी सबूत की जरूरत है? फिर इस घटना की जिम्मेदारी स्वयं मसूद अजहर और उसके संगठन ने एक वीडियो जारी कर ली है जिसमें उस फिदायीन का बयान भी है। मुम्बई हमले का मुख्य अभियुक्त कसाब पाकिस्तान के किस गांव का रहने वाला था, यह भी तथ्य पूरे विश्व को पिछले दस साल से मालूम है।

अब जरा तस्वीर का दूसरा पहलू देखें। जहां एक ओर प्रधानमंत्री इमरान खान पाकिस्तान की मजलिस-ए-सूरा (संसद) में शांति के प्रतीक के रूप में भारतीय पायलट अभिनन्दन को रिहा करने का ऐलान कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर उनकी सेना के आला अधिकारी खैबर पख्तूनख्वा के तमाम जिलों में खतरनाक कबायलियों के साथ जगह-जगह जिरगा (महा-पंचायत) कर उन्हें भारत के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार कर रहे थे और आतंकी संगठन अल बद्र के तीन हथियारबंद प्रतिनिधि प्रांत के दीर जिले के मुख्य चौराहे पर अपने संगठन में भर्ती की प्रक्रिया का ऐलान कर रहे थे। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने 28 फरवरी, 2019 के संस्करण में इसका खुलासा किया और भारतीय खुफिया विभाग के पास भी इसके प्रमाण हैं।

कश्मीर में आतंकवाद
उपलब्ध वीडियो में ब्रिगेडियर वकार जफर रजा के इस प्रयास के पीछे सेना की मंशा है कि कश्मीर में आतंकवाद को एक नए आयाम पर ले जाया जाए और यही कारण है कि आपस में लगातार लड़ते रहे इन कबायलियों के 2 साल पहले जब्त किए हथियार सेना ने उन्हें वापस दे दिए हैं। उधर अल बद्र के इन तीनों में से एक प्रतिनिधि इलाके के युवाओं को इस संगठन में भर्ती होकर पाकिस्तानी सेना के हाथ मजबूत करने की अपील कर रहा था। इसी इलाके के बालाकोट जैश ट्रेनिंग कैम्प पर भारतीय एयरफोर्स ने बमबारी की थी।

अल बद्र की जम्मू-कश्मीर में प्रभावी सक्रियता रही है और भारतीय खुफिया एजैंसियों के अनुसार जैश-ए-मोहम्मद और इसके सरगना मसूद अजहर के खिलाफ वैश्विक दबाव को देखते हुए पाकिस्तानी सेना ने अब अल बद्र को व्यापक और शक्तिशाली बनाने का दौर शुरू किया है।

अब सेना कबायलियों का इस्तेमाल भारत में और खासकर कश्मीर में व्यापक हमले के लिए करना चाहती है। दरअसल ऐसे करीब एक दर्जन संगठन समय -समय पर नाम बदल कर भारतीय सीमा पर सक्रिय हैं और इन सबका आर्थिक स्रोत भी मुख्यत: एक ही होता है। अगर एक को प्रतिबंधित किया गया तो पाक सेना दूसरे को सतह पर रातों-रात ला देती है। यही कारण है कि आतंकवाद खत्म करने का जो तरीका भारत या दुनिया के तमाम मुल्क सोच रहे हैं उससे खत्म होना तो दूर, बढ़ता जाएगा।

भ्रष्टाचार में डूबी सेना
आज पाकिस्तान में सेना करीब तीन दर्जन से ज्यादा औपचारिक वाणिज्यिक व्यवसायों में लिप्त है और अनौपचारिक रूप से जमीन बेच कर बड़े अधिकारी पैसे कमाने में लगे हैं। पूरी सेना भष्टाचार, शराबखोरी और अय्याशी का पर्याय बनी हुई है। जेहादी संगठनों को पालना उनके अपने अस्तित्व और चुनी हुई सरकार पर नियंत्रण के लिए जरूरी है। पाकिस्तानी समाज को अशिक्षित, अतार्किक और विकास-शून्यता की स्थिति में रखना उनकी नीति है ताकि धर्म के नाम पर एक विकृत मानसिकता बनी रहे। एक अय्याश लेकिन सत्ता पर प्रभावी सेना लचर झूठ ही बोल सकती है।

राक्षस रक्तबीज को वरदान था कि उसकी पृथ्वी पर गिरी हर बूंद से एक नया रक्तबीज पैदा होगा। देवी काली द्वारा रक्तबीज का सिर काटने के बाद खप्पर में उसका रक्त लेकर पी जाना ही निदान था। इस्लामिक आतंकी संगठनों को पाक सेना का वरदान है। दशकों से अय्याशी और भ्रष्टाचार में डूबी इस सेना का पुरुषत्व खत्म हो चुका है और बाकी बचा है आतंकियों के सहारे आम जनता को ही नहीं, राजनीतिक आकाओं को भी डर के साए में रख कर अपना अस्तित्व बचाना।-एन.के. सिंह 


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