स्वच्छ भारत अभियान 2.0 असल उद्देश्य से भटका

punjabkesari.in Monday, Oct 04, 2021 - 03:10 AM (IST)

भारत ने स्वच्छ भारत अभियान का पार्ट-2 लांच किया है तथा प्रधानमंत्री ने कहा है कि इसका उद्देश्य भारत के शहरों को कचरामुक्त बनाना है। इस कार्यक्रम की घोषणा करते हुए उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि ‘स्वच्छता के दूसरे चरण के हिस्से के तौर पर शहरों में कचरे के पहाड़ों को संसाधित तथा पूरी तरह से हटाया जाएगा। कचरे का एक ऐसा ही पहाड़ दिल्ली में बड़े लम्बे समय से है, वह भी हटाए जाने की प्रतीक्षा में है।’ 

कचरे तथा गंदगी पर यह ध्यान स्वच्छ भारत को स्वच्छता के लिए पहले चलाए गए दो अन्य कार्यक्रमों से अलग करता है। 1999 में वाजपेयी सरकार ने शौचालय उपलब्ध करवाने के लक्ष्य के साथ पूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया। 2012 में इस कार्यक्रम को निर्मल भारत अभियान का नाम दिया गया और फिर 2014 में इसे फिर स्वच्छ भारत अभियान नाम दिया गया। जब प्रधानमंत्री द्वारा इसकी घोषणा की गई तो उन्होंने प्रतिभागियों को एक शपथ दिलाई जिसके पाठ्यक्रम में शौचालयों का जिक्र नहीं था और यह गंदगी तथा कचरे पर केन्द्रित था। 

2 अक्तूबर 2019 को भारत के सभी गांवों को खुले में शौच से 100 प्रतिशत मुक्त घोषित कर दिया गया। मगर इसके बाद वाले महीने में राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एन.एस.ओ.) द्वारा जारी  ‘भारत में पेयजल, स्वच्छता, सफाई तथा आवास की स्थितियां’ नामक सर्वेक्षण में पाया गया कि 28.7 प्रतिशत ग्रामीण घरों की शौचालय तक पहुंच नहीं थी। अन्य 3.5 प्रतिशत घरों की इन तक पहुंच थी मगर वे इनका इस्तेमाल नहीं करते थे। 

इसी स्थान को खुले में शौच से मुक्त तभी घोषित किया जाता है जब इसके निवासियों की शौचालय तक पहुंच हो, चाहे वह सार्वजनिक हो। मार्च 2018 में 100 प्रतिशत खुले में शौच से मुक्त घोषित किए गए कई राज्यों को 6 महीने बाद करवाए गए एक सर्वेक्षण में इस लक्ष्य को नहीं पाने वाले पाया गया। एन.एस.ओ. ने बताया कि गुजरात में 75.8 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 78 प्रतिशत तथा राजस्थान में 65.8 प्रतिशत ग्रामीण घरों की किसी भी तरह के शौचालयों तक पहुंच थी, चाहे निजी हों, सामुदायिक अथवा भुगतान वाले, यद्यपि सरकार द्वारा इन तीनों राज्यों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था। मध्य प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया जबकि इसके केवल 71 प्रतिशत जबकि ग्रामीण तमिलनाडु में 62.8 प्रतिशत घरों की शौचालय तक पहुंच थी। 

आई.जैड.ए. इंस्टीच्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स द्वारा पहले 2014 में और फिर 2018 में करवाए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि बड़ी संख्या में लोगों की किसी न किसी तरह के शौचालय तक पहुंच थी लेकिन फिर भी 2014 तथा 2018 के बीच 23 प्रतिशत लगातार खुले में शौच के लिए जाते रहे। अध्ययन में पाया गया कि सर्वेक्षण वाले राज्यों बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में कम से कम 43 प्रतिशत ग्रामीण लोग खुले में शौच जाना जारी रखे  हुए थे। निर्मित किए गए शौचालयों के सामने मुद्दों में से एक है वहां पानी की व्यवस्था न होना जिससे वे इस्तेमाल करने योग्य नहीं रह जाते। 2016-17 में स्वच्छ भारत को लगभग 14000 करोड़ रुपए प्राप्त हुए लेकिन ग्रामीण जल ढांचे को मात्र 6000 करोड़ रुपए मिले। 

जल स्रोत मंत्रालय ने अनुमान लगाया कि एक घर को प्रतिदिन कुल 40 लीटर पानी की जरूरत होती है जिसमें से 15 से 20 लीटर स्वच्छता के लिए होता है। मगर अच्छी तरह से आपूर्ति प्राप्त एक ग्रामीण घर को भी एक दिन में 8 से 10 लीटर पानी प्राप्त हुआ और उसका इस्तेमाल खाना पकाने, पीने तथा धोने के लिए हुआ और स्वच्छता अंतिम प्राथमिकता थी और बहुत से गांवों की पाइपलाइन द्वारा पहुंचाए जाने वाले पानी तक बिल्कुल पहुंच नहीं थी। ध्यान स्वच्छता पर क्यों होना चाहिए तथा गंदगी अथवा कचरे पर क्यों नहीं? इसलिए क्योंकि स्वच्छता का अभाव बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

2019-20 के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में कुछ हैरानीजनक आंकड़ों का खुलासा किया गया। 4 प्रमुख मानक, जो बच्चों के पोषण के स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं, में राज्यों द्वारा 2015-16 के स्तर की तुलना में 2019-20 में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई। गुजरात, महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में रक्ताल्पता से पीड़ित (एनीमिक) तथा कद के मुकाबले कम वजन वाले बच्चों की हिस्सेदारी 15 वर्ष पूर्व 2005-06 में दर्ज स्तरों से उल्लेखनीय तौर पर अधिक थी। यह प्रगति की एक ऐसी वापसी का संकेत है जिस पर विजय पाना कठिन है। यहां  तक कि केरल जैसे राज्यों में, जो इन संकेतकों में लगातार अग्रणी बने हुए हैं, 2019-20 में दर्ज किए गए स्तर (2015-16) के आंकड़ों से कमजोर थे। 

सर्वेक्षण में  22 राज्यों तथा केंद्र शासित क्षेत्रों का डाटा सामने रखा गया तथा 10 प्रमुख राज्यों का विश्लेषण किया गया। सभी 10 राज्यों में 2015-16 की तुलना में 2019-20 में बच्चों में एनीमिया अधिक था। गुजरात, हिमाचल, महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल में 2005-06 की तुलना में 2019-20 में कद के मुकाबले कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत अधिक था। जिन 10 राज्यों का विषलेषण किया गया उनमें से 7 में 2015-16 की तुलना में 2019-20 में कम भार वाले बच्चों (उम्र के लिहाज से कम वजन) का प्रतिशत अधिक था। 2015-16 की तुलना में 10 में से 6 राज्यों में उम्र के मुकाबले कम कद वाले बच्चों की संख्या अधिक थी। अध्ययन में यह भी पाया गया कि आंध्रप्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा पश्चिम बंगाल सहित आधे राज्यों में दस्त के मामलों में वृद्धि हुई। बिहार में यह 2015-16 में 10.4 प्रतिशत से बढ़ कर 2019-20 में 13.7 प्रतिशत हो गई। 

2021 में कार्यक्रम को फिर से नया नाम स्वच्छ भारत 2.0 दिया गया जो शहरों पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ 2016 तक जारी रहेगा। मगर प्रारंभिक अभियान इसके असल उद्देश्य (बच्चों का स्वास्थ्य), जो 2 अक्तूबर 2019 को जारी की गई थी पर बहुत कम ध्यान केन्द्रित करने के साथ उद्देश्य से पलटने को दर्शाता है। और अब हम अभियान के दूसरे भाग की ओर बढ़ गए हैं, एक बार फिर विजुअल तथा सौंदर्यात्मक पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ, अर्थात स्वच्छता तथा सफाई की बजाय गंदगी और कचरा।-आकार पटेल


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