डिजिटल इंडिया : आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का केंद्र

punjabkesari.in Wednesday, Jul 02, 2025 - 05:25 AM (IST)

दस साल पहले, हमने एक ऐसे क्षेत्र में पूर्ण विश्वास के साथ ऐसी यात्रा शुरू की थी, जहां पहले कोई नहीं गया था। जहां दशकों तक यह संदेह किया गया कि भारतीय तकनीक का उपयोग कर पाएंगे कि नहीं। हमने उस सोच को बदला और भारतीयों की तकनीक का उपयोग करने की क्षमता पर विश्वास किया। जहां दशकों तक सिर्फ यह सोचा गया कि तकनीक का उपयोग अमीर और गरीब के बीच की खाई को और गहरा करेगा, हमने उस मानसिकता को बदला और तकनीक के माध्यम से उस खाई को खत्म किया। जब नीयत सही होती है, तो नवाचार वंचितों को सशक्त करता है। जब दृष्टिकोण समावेशी होता है, तो तकनीक हाशिए पर खड़े लोगों के जीवन में परिवर्तन लाती है। यही विश्वास डिजिटल इंडिया की नींव बना। एक ऐसा मिशन, जो सभी के लिए पहुंच को लोकतांत्रिक (आसान) बनाने, समावेशी डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने और अवसरों को उपलब्ध कराने के लिए शुरू हुआ।

2014 में, इंटरनैट की पहुंच सीमित थी, डिजिटल साक्षरता कम थी और सरकारी सेवाओं की ऑनलाइन पहुंच बेहद सीमित थी। कई लोगों को संदेह था कि भारत जैसा विशाल और विविध देश वास्तव में डिजिटल बन सकता है या नहीं। आज, इस प्रश्न का उत्तर डाटा और डैशबोर्ड में नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के जीवन के माध्यम से दिया जा चुका है। शासन से लेकर शिक्षा, लेन-देन और निर्माण तक, डिजिटल इंडिया हर जगह है।

डिजिटल डिवाइड को पाटते हुए : 2014 में भारत में लगभग 25 करोड़ इंटरनैट कनैक्शन थे। आज यह संख्या बढ़कर 97 करोड़ से अधिक हो चुकी है। 42 लाख किलोमीटर से अधिक ऑप्टिकल फाइबर केबल, जो पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी का 11 गुना है, अब दूरस्थ गांवों को भी जोड़ रही है। भारत का 5जी रोलआऊट विश्व में सबसे तेज रोलआऊट्स में से एक है, और मात्र 2 वर्षों में 4.81 लाख बेस स्टेशंस स्थापित किए गए हैं। हाई-स्पीड इंटरनैट अब शहरी केंद्रों से लेकर अग्रिम सैन्य चौकियों तक, जैसे गलवान, सियाचिन और लद्दाख पहुंच चुका है। इंडिया स्टैक, जो हमारा डिजिटल बैकबोन है, ने यू.पी.आई. जैसे प्लेटफार्म को सक्षम बनाया है, जो अब सालाना 100 बिलियन से अधिक लेन-देन करता है। विश्व में होने वाले कुल रियल-टाइम डिजिटल ट्रांजैक्शन में से लगभग आधे भारत में होते हैं।

डायरैक्ट बैनिफिट ट्रांसफर (डी.बी.टी.) के माध्यम से 44 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि सीधे नागरिकों को हस्तांतरित की गई है, जिससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हुई और 3.48 लाख करोड़ रुपए की लीकेज रोकी गई है। स्वामित्व जैसी योजनाओं ने 2.4 करोड़ से अधिक प्रॉपर्टी कार्ड्स जारी किए हैं और 6.47 लाख गांवों को मैप किया है, जिससे वर्षों से चली आ रही भूमि संबंधी अनिश्चितता का अंत हुआ है।

सभी के लिए अवसरों का लोकतंत्रीकरण: भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था अब पहले से कहीं अधिक एम.एस.एम.ईका और छोटे उद्यमियों को सशक्त बना रही है। ओ.एन.डी.सी. (ओपन नैटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स) एक क्रांतिकारी प्लेटफॉर्म है जो विक्रेताओं और खरीदारों के विशाल बाजार से सीधा संपर्क स्थापित कर नए अवसरों की खिड़की खोलता है। जी.ई.एम. (गवर्नमैंट ई-मार्केटप्लेस) आम आदमी को सरकार के सभी विभागों को सामान और सेवाएं बेचने की सुविधा देता है। इससे न केवल आम नागरिक को एक विशाल बाजार मिलता है, बल्कि सरकार की बचत भी होती है।

कल्पना कीजिए- आप मुद्रा लोन के लिए ऑनलाइन आवेदन करते हैं। आपकी क्रैडिट योग्यता को अकाऊंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क के माध्यम से आंका जाता है। आपको लोन मिलता है, आप अपना व्यवसाय शुरू करते हैं। आप जी.ई.एम. पर पंजीकृत होते हैं, स्कूलों और अस्पतालों को सप्लाई करते हैं और फिर ओ.एन.डी.सी. के माध्यम से इसे और बड़ा बनाते हैं। ओ.एन.डी.सी. ने हाल ही में 20 करोड़ लेन-देन का आंकड़ा पार किया है, जिसमें पिछले 10 करोड़ सिर्फ 6 महीनों में हुए हैं। बनारसी बुनकरों से लेकर नागालैंड के बांस शिल्पियों तक, अब विक्रेता बिना बिचौलियों के पूरे देश में ग्राहक तक पहुंच रहे हैं। जी.ई.एम. ने 50 दिनों में एक लाख करोड़ रुपए का जी.वी.एम. पार किया है, जिसमें 22 लाख विक्रेता शामिल हैं, जिनमें 1.8 लाख से अधिक महिला संचालित एम.एस.एम. ईका हैं, जिन्होंने 46,000 करोड़ रुपए की आपूर्ति की है।

डिजिटल पब्लिक इन्फ्र्रास्ट्रक्चर: भारत का वैश्विक योगदान : भारत का डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (डी.पी.आई.) जैसे आधार, कोविन, डिजिलॉकर, फास्टैग, पी.एम.-वाणी और वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन को अब वैश्विक स्तर पर पढ़ा और अपनाया जा रहा है। कोविन ने दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान को सक्षम किया, जिससे 220 करोड़ क्यू.आर.-सत्यापित सर्टिफिकेट जारी हुए। डिजीलॉकर, जिसके 54 करोड़ उपयोगकत्र्ता हैं, 775 करोड़ से अधिक दस्तावेजों को सुरक्षित और निर्बाध तरीके से होस्ट कर रहा है।
भारत ने अपनी जी20 अध्यक्षता के दौरान ग्लोबल डी.पी.आई. रिपॉजिटरी और $25 मिलियन का सोशल इम्पैक्ट फंड लॉन्च किया, जिससे अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देश समावेशी डिजिटल ईकोसिस्टम अपना सकें।

स्टार्टअप पॉवर और आत्मनिर्भर भारत : भारत अब विश्व के शीर्ष 3 स्टार्टअप ईकोसिस्टम्स में शामिल है, जिसमें 1.8 लाख से अधिक स्टार्टअप हैं। लेकिन यह सिर्फ  एक स्टार्टअप आंदोलन नहीं, एक टैक्नोलॉजी पुनर्जागरण है। भारत में युवाओं के बीच ए.आई. स्किल्स और ए.आई. टैलेंट के मामले में बड़ी प्रगति हो रही है। 1.2 बिलियन डॉलर इंडिया ए.आई. मिशन के तहत भारत ने 34,000 जी.पी.यूस की पहुंच ऐसे मूल्य पर सुनिश्चित की है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे कम है- 1 डॉलर से भी कम प्रति जी.पी.यू.-ऑवर। इससे भारत न केवल सबसे सस्ता इंटरनैट इकोनॉमी, बल्कि सबसे किफायती कम्प्यूटिंग हब बन गया है। भारत ने मानवता-पहले ए.आई. की वकालत की है। नई दिल्ली डैक्लारेशन ऑन ए.आई. जिम्मेदारी के साथ नवाचार को बढ़ावा देता है। देशभर में ए.आई. सैंटर्स ऑफ एक्सीलैंस स्थापित किए जा रहे हैं।

आगे का रास्ता : अगला दशक और भी अधिक परिवर्तनकारी होगा। हम डिजिटल गवर्नैंस से आगे बढ़कर वैश्विक डिजिटल नेतृत्व की ओर बढ़ रहे हैं- इंडिया फस्र्ट से इंडिया फॉर द वल्र्ड तक। डिजिटल इंडिया अब केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं रहा, यह जनआंदोलन बन चुका है। यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का केंद्र है और भारत को दुनिया का विश्वसनीय नवाचार सांझेदार बना रहा है। सभी इनोवेटर्स, एंटरप्रेन्योर्स और ड्रीमर्स से- दुनिया अगली डिजिटल क्रांति के लिए भारत की ओर देख रही है। आइए हम वह बनाएं जो सशक्त बनाता है। आइए हम ऐसे हल निकालें जो वास्तव में मायने रखते हैं। आइए हम उस तकनीक के साथ नेतृत्व करें, जो uUnite, includ और uplift करती है।-नरेंद्र मोदी (माननीय प्रधानमंत्री)


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