‘स्पाइवेयर’ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा

punjabkesari.in Sunday, Apr 09, 2023 - 03:34 AM (IST)

फाइनैंशियल टाइम्स-लंदन (एफ.टी.) में दिनांक 31 मार्च 2023 को एक समाचार रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार नए स्पाईवेयर के लिए बाजार का रुख किए हुए है। पेगासस का निर्माण और बिक्री करने वाली कम्पनी एन.एस.ओ. को अमरीका ने काली सूची में डाला हुआ है। जिससे एफ.टी. रिपोर्ट उन सरकारों के लिए   समस्या समझती है जो जासूसी उपकरण को तैनात करने का इरादा रखती है। 

रिपोर्ट ने आगे सुझाव दिया है कि भारत सरकार 120 मिलियन डालर या करीब 1000 करोड़ रुपए एनालाग टैक्नोलॉजी पर खर्च करने को तैयार है। इस अनुमानित खरीद के लिए करीब एक दर्जन स्पाईवेयर विक्रेताओं द्वारा अपनी बोली लगाने की उम्मीद है। जिन कम्पनियों पर नजर रखी जा रही है उनमें से एक इंटैलैक्सा जो हाल ही में ग्रीस में एक ‘सनुपिंग स्कैंडल’  में फंसी रही है। ये समाचार रिपोर्ट अगर सही है तो ये स्पष्ट रूप से प्रकट करती है कि निगरानी उद्योग नागरिकों के अधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक नया खतरा है। इसे विनियमित करने के लिए हर देश के पास मजबूत कानूनी ढांचा नहीं है। किसी नागरिक के निजी मामलों में कोई निगरानी या घुसपैठ निजता के मौलिक अधिकार, मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है। 

इसलिए इस तरह की किसी भी घुसपैठ को वैधता, आवश्यकता और अनुपातिकता की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। पुट्टास्वामी मामले के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का एक आंतरिक हिस्सा है जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है। इसने राज्य निगरानी पर भी निरीक्षण तंत्र की जरूरत पर ध्यान दिया, यह इंगित करते हुए कि ऐसी निगरानी कानूनी रूप से वैध होनी चाहिए और इसका एक ‘वैध उद्देश्य’ होना चाहिए। 

पहली आवश्यकता मांग करती है कि सही निगरानी संसद द्वारा विधिवत बनाए गए उचित कानून के तहत की जानी चाहिए। सभी खुफिया और कानून प्रवर्तन एजैंसियों को निगरानी करने की अनुमति दी गई है। उनके पास एक स्पष्ट, प्रकाशित कानून के आधार पर भूमिकाएं, शक्तियां और जिम्मेदारियां भी होनी चाहिएं जिनके उपयोग और प्रभावों का अनुमान लगाया जा सकता है।
दूसरी कड़ी के लिए एक वैध उद्देश्य की उपस्थिति की जरूरत होती है जोकि सर्वेक्षण किए गए व्यक्ति के अधिकारों पर प्रभाव को ओवरराइड करेगी। ये उद्देश्य अस्पष्ट या अपरिभाषित नहीं हो सकता है। ये समयबद्ध होना चाहिए और इसकी वैधता की पूरी तरह से समीक्षा की जानी चाहिए। क्या वर्तमान निगरानी ढांचा इन जरूरतों पर खरा उतरता है। 

भारतीय टैलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) सरकार को ‘संदेश या संदेशों की एक श्रेणी’ को इंटरसैप्ट  करने की अनुमति देता है। यह कैसे किया जाता है। ये भारतीय टैलीग्राफ नियम 1951 के नियम 419-ए में प्रदान किया गया है। पी.यू.सी.एल. बनाम यूनियन आफ इंडिया ए.आई.आर. 1997 एस.सी. 568 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद टैलीग्राफ नियमों में 419-ए नियम जोड़ा गया था। नियम 419-ए के तहत निगरानी की जरूरत है। आर.ई.टी.यू.सी.ए.एल. में न्यायालय ने कहा कि टैलीफोन पर बातचीत निजता के अधिकार के दायरे में आएगी। न्यायालय ने माना कि इस तरह की निजता केवल स्थापित प्रक्रियाओं के माध्यम से भंग की जा सकती है। 

विशेष रूप से पी.यू.सी.एल. में सरकार ने कहा कि उसके पास अपनी अवरोधन शक्तियों को नियंत्रित करने वाले नियम बनाने की शक्ति थी लेकिन चूंकि ऐसा कोई भी नियम नहीं बनाया गया था इसलिए न्यायालय ने कुछ दिशानिर्देश दिए जो इस बात के लिए शिक्षाप्रद है कि न्यायालय ने निगरानी की कल्पना कितनी बारीकी से की है। इसलिए कभी भी पेगासस जैसी स्थिति की कल्पना नहीं की थी जहां इस तरह के स्पाईवेयर को प्राधिकरण और परिभाषित वैध उद्देश्य के बिना इस्तेमाल किया जा सकता है। 

पी.यू.सी.एल. बनाम यूनियन आफ इंडिया पर फिर से भी विचार करने की जरूरत है क्योंकि यह माना जाता है कि न्यायिक समीक्षा अनावश्यक थी। सबसे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं ही निगरानी की वैधता का पता लगाने के लिए न्यायिक मानकों को विकसित किया है। के.एस. पुट्टास्वामी बनाम यूनियन आफ इंडिया (2017) 10 एस.सी.सी.1 में अपने फैसले को देखते हुए अदालत ने कहा कि किसी भी निगरानी के लिए आनुपातिक और न्यायिक निरीक्षण होना चाहिए। यह पी.यू.सी.एल. में जो हुआ था उसके सीधे विपरीत है। दूसरा पी.यू.सी.एल. का निर्णय फोन टैपिंग तक सीमित था। नागरिकों और सरकार के बीच शक्ति असंतुलन तेज हो गया है। निजता के अधिकार की रक्षा के लिए पहला कदम हमारी खुफिया एजैंसियों में सुधार करना है किसी अन्य बड़े लोकतंत्र के खुफिया और निगरानी ढांचे में इतना कानून ब्लैक होल नहीं है। 

हमारी खुफिया एजैंसियां जैसे आई.बी. और रॉ किसी भी कानून या संसदीय निरीक्षण के दायरे से बाहर हैं। इसी वजह से मैंने 2011 और फिर 2021 में फिर से लोकसभा में इंटैलीजैंस सॢवस (पावर एंड रैगुलेशन) बिल पेश किया था। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ ऐसी एजैंसियों के बेहतर नियंत्रण और निरीक्षण के लिए न्याधिकरणों और समितियों की स्थापना का प्रावधान है। जैसा कि जिनेवा कंवैंशन का वर्णन है कि नागरिकों के अधिकार दाव पर होने पर कानूनों को कभी चुप नहीं रहना चाहिए।-मनीष तिवारी
 


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