क्या कांग्रेस के लिए ‘शोक संदेश’ लिखा जाए

punjabkesari.in Wednesday, Feb 19, 2020 - 04:49 AM (IST)

दिल्ली चुनावों में 135 वर्षीय सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के घटिया प्रदर्शन के बारे में कई लोग सवाल उठा रहे हैं क्योंकि 2014 के बाद इसको एक के बाद एक झटका लगा है। हालांकि कहीं-कहीं पर इसने अच्छा प्रदर्शन भी किया है। अभी यह प्रश्र पैदा होता है कि इतने लम्बे इतिहास वाली कांग्रेस का अस्तित्व रह पाएगा क्या? क्या सच में कांग्रेस का नाश हो जाएगा या यह बच पाएगी। 

अपने लम्बे इतिहास के दौरान पार्टी ने कई कहानियां लिखीं और कई बार इसने बुरा समय देखा। इतना होने के बावजूद यह सशक्त होकर सत्ता में लौटी। पार्टी की ढलान 1967 में तब देखी गई जब इसने कई राज्यों को खो दिया। 1969 के दोफाड़ के बाद इंदिरा गांधी 1971 के मध्यवर्ती चुनाव में सफल होकर उभरी। 1977 में इंदिरा गांधी की हार के बाद पार्टी को भुला दिया गया। मगर 1980 में इसका फिर से सूर्योदय हुआ जोकि 1989 तक कायम रहा। वी.पी. सिंह के 1989 को राजीव गांधी को चुनौती देने के बाद पार्टी के अस्तित्व के बारे में शंकाएं थीं। हालांकि 1991 में कांग्रेस फिर से सत्ता में लौटी मगर वह अपनी सत्ता को बनाए रखने में नाकामयाब रही। 1998 में पार्टी में कलह के बीच सोनिया गांधी ने इसकी बागडोर सम्भाली। तब यह कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी का नाश हो जाएगा। 

जब किसी ने कांग्रेस की सफलता की आशा भी नहीं की थी तब सोनिया गांधी ने यू.पी.ए. का गठन किया तथा 2004 में पार्टी सत्ता पर काबिज हुई। यू.पी.ए. शासन के 10 वर्षों के बाद पार्टी 2014 में मात्र 44 सीटें लेकर शर्मसार हुई तथा 2019 में लोकसभा चुनावों में इसने 52 सीटें जीतीं। एक बार फिर कांग्रेस के अस्तित्व पर बादल मंडराए। कोई दो राय नहीं कि इस समय पार्टी सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पार्टी अपना अस्तित्व बचाने तथा नेतृत्व संकट से जूझ रही है। 

कांग्रेस ने हमेशा से ही राज्यों में अच्छी कारगुजारी की जहां पर क्षेत्रीय सशक्त नेताओं ने चुनावों की बागडोर सम्भाली। महाराष्ट्र तथा हरियाणा में यह तथ्य देखा गया। यह कहा गया कि पार्टी के लिए अब प्रासंगिक रहना काफी हो गया है। केन्द्र में शासन करने के साथ-साथ 60 तथा 70 के दशक में कांग्रेस के पास राज्यों में भी बहुमत था। अब यह किसी कोने में धकेल दी गई है और मात्र 5 राज्यों में शासन कर रही है। जब मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई तब कइयों ने सोचा कि कांग्रेस आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ेगी। मगर इसके विपरित कांग्रेस का ग्राफ गिरता गया। पार्टी लोगों का मन टटोलने में नाकाम रही। पिछले वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की जीत कांग्रेस के लिए एक नखलिस्तान से कम नहीं थी। राज्यों में पार्टी धीरे-धीरे ढलान पर आई चाहे वह पश्चिम बंगाल हो, तमिलनाडु, यू.पी., बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना या फिर अब दिल्ली हो। आज कांग्रेस की चारों ओर से भत्र्सना हो रही है और लोग इस पर तंज कस रहे हैं क्योंकि यह अभी भी गांधी परिवार से जुड़े रहने को कृतसंकल्प है। 

भाजपा ने यह कसम खाई है कि वह कांग्रेस मुक्त भारत बनाकर छोड़ेगी, मगर लोकतंत्र में सत्ताधारी पार्टी के लिए विपक्ष होना बुरी बात नहीं और ऐसा ही अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था। हमारे संविधान निर्माताओं ने एक पार्टी के शासन की कल्पना नहीं की थी। कई राजनीतिक पंडित यह मत देते हैं कि भाजपा के लिए कांग्रेस का एक राष्ट्रीय विकल्प होने के तौर पर गिरना एक राजनीतिक शून्य स्थान प्रकट करता है। हालांकि बुरी हार के बावजूद कांग्रेस 19.6 प्रतिशत राष्ट्रीय मत हासिल करने में कामयाब रही। 2019 में इसने 117 मिलियन लोगों का मत हासिल किया। इसे अपना आधार बनाना होगा। 

कांग्रेस मात्र एक परिवार पर ही निर्भर
कांग्रेस का गिरना इसकी अपनी गलती है क्योंकि यह मात्र एक परिवार पर निर्भर करती है। यह अभी भी उच्चकमान के आदेशों वाली संस्कृति को मानती है और जमीनी स्तर पर कार्यकत्र्ताओं से संबंध बनाने में असफल है। इसके पास संगठित ढांचे, संचार योग्यताओं की कमी है। मतदाताओं की इच्छाओं पर यह खरा नहीं उतरती और अभी भी अपनी पुरानी शानो-शौकत के बल पर जिंदा है और यह सब इसके गिरने के कारण हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा कांग्रेस के विकल्प के तौर पर उभरी है, जबकि कुछ राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस का स्थान ले चुकी हैं क्योंकि पार्टी गांधियों के साथ चिपकी हुई है। यह गांधी परिवार पर है कि वह नेतृत्व के स्थान को भरे तथा पार्टी को फिर से राजनीतिक पटल पर मजबूत करे। पार्टी को एक सही फार्मूला ढूंढना होगा। 

कांग्रेस के लिए शोक संदेश लिखना अभी जल्दबाजी होगी। ग्रैंड ओल्ड पार्टी एक पुराने वट वृक्ष की तरह है तथा इसकी जड़ें अभी भी कई राज्यों में हैं। पार्टी को एक करिश्माई नेता तथा मत बटोरने वाले नेता की तलाश है। यू.के. के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने लेबर पार्टी का फिर से आविष्कार किया तथा इसे नई लेबर पार्टी के नाम से बुलाया गया? अब समय आ गया है कि कांग्रेस नींद से जागे और अपने आपको फिर से संगठित करे। अपनी विचारधारा का व्याख्यान करे तथा राज्य इकाइयों को मजबूत करे। कांग्रेस को अब क्षेत्रवाद की चुनौती से सामना करना होगा तथा अपने खोए हुए स्थान को फिर से हासिल करना होगा। एक समय यह एक छाते वाली पार्टी थी जिसने सभी विचारधाराओं तथा विचारों को अपने में समेटा था। कांग्रेस पार्टी खंडित होने के बावजूद दाएं-बाएं तथा केन्द्र में अपने आपको स्थापित कर चुकी थी। इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं कि यह फिर से अपने इतिहास को दोहरा न सके।-कल्याणी शंकर 
 


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