कर्नाटक कांग्रेस में बढ़ रहा आंतरिक राजनीतिक संकट
punjabkesari.in Monday, Jul 07, 2025 - 05:41 AM (IST)

कर्नाटक कांग्रेस की राजनीति में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। कांग्रेस पार्टी के भीतर एक आंतरिक राजनीतिक संकट विकसित हो रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच सत्ता संघर्ष चल रहा है। क्या कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन होगा?
शिवकुमार के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की जगह लेने की बढ़ती अटकलों ने अनिश्चितता का माहौल बना दिया है। सत्तारूढ़ कांग्रेस असहमति, आंतरिक संघर्ष, अनुशासन की कमी और अपने सदस्यों के बीच सत्ता संघर्ष से जूझ रही है, जिससे यह मामला और पेचीदा हो गया है।
अफवाहें जोर पकड़ रही हैं, मुख्य रूप से इसलिए, क्योंकि जी. परमेश्वर जैसे वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से पार्टी के भीतर महत्वपूर्ण असंतोष को स्वीकार किया है। जबकि सिद्धारमैया कुछ नुकसान नियंत्रण करने का प्रयास कर रहे हैं, शिवकुमार खेमा खुले तौर पर नेतृत्व परिवर्तन की पैरवी कर रहा है। उनका दावा है कि यह अगले 3 महीनों के भीतर हो सकता है।
अगले 3 महीने की समय सीमा का कारण दिलचस्प है। अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि सत्ता संघर्ष अब सामने आ गया है। इसके अलावा, कांग्रेस विधायक इकबाल हुसैन ने दावा किया है कि लगभग 100 विधायक नेतृत्व परिवर्तन के पक्ष में हैं, जो शीर्ष पर बदलाव का समर्थन करते हैं। डी.के. ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई जारी की है लेकिन बदलाव की संभावना बनी हुई है। 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता में लौटी। चर्चा थी कि दोनों नेता शीर्ष पद के दावेदार हैं। हाईकमान ने अढ़ाई साल का रोटेशनल फॉर्मूला पेश किया। इसके मुताबिक, सिद्धारमैया इस साल नवंबर तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर अढ़ाई साल पूरे कर लेंगे। वह अपने नेतृत्व के 25 साल भी पूरे करेंगे। सिद्धारमैया को प्रशासन में उनके व्यापक अनुभव और ओ.बी.सी. समुदाय से उनके मजबूत समर्थन के लिए जाना जाता है।
साल के अंत में बिहार चुनाव नजदीक आने के साथ, कांग्रेस नेतृत्व एक महत्वपूर्ण ओ.बी.सी. नेता सिद्धारमैया को परेशान न करके स्थिरता बनाए रखने के लिए उत्सुक है। उनका प्रशासन मुफ्त में सामान देने, मुसलमानों को खुश करने और हिंदू समुदाय को विभाजित करने के लिए जाना जाता है। दूसरी ओर, शिवकुमार को ‘मिस्टर-फिक्सिट’ के रूप में जाना जाता है। डी.के. को ‘गो-टू’ मैन के रूप में जाना जाता है और कांग्रेस नेतृत्व ने अन्य कांग्रेस शासित राज्यों में भी असंतुष्टों से निपटने में उनका इस्तेमाल किया है।
उन्हें उनके कुशल नेतृत्व और संगठनात्मक कौशल के साथ-साथ उनके वित्तीय संसाधनों और आंतरिक असंतोष को प्रबंधित करने की क्षमता के लिए महत्व दिया जाता है। दोनों नेताओं का कांग्रेस में अपना योगदान है। संकट के समय पार्टी को उनकी जरूरत है। डी.के. के अलावा, अन्य उम्मीदवार भी इस पद के लिए होड़ में हैं। ङ्क्षलगायत समुदाय के मंत्री एम.बी. पाटिल भी शीर्ष पद के लिए इच्छुक हैं। शिवकुमार वोक्कालिंगा समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि कुरुबा समुदाय से सिद्धारमैया एक महत्वपूर्ण ओ.बी.सी. व्यक्ति हैं। असंतुष्ट गतिविधि से चिंतित मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में कैबिनेट की बैठक में अपने मंत्रियों को पार्टी के आंतरिक मामलों के बारे में गोपनीयता बनाए रखने की चेतावनी दी, साथ ही कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी है। शिवकुमार ने सार्वजनिक रूप से कहा, ‘‘पार्टी और हाईकमान जो चाहेगा वही होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पास क्या विकल्प है? मुझे उनके साथ खड़ा होना है और उनका समर्थन करना है।’’ हालांकि, उनका खेमा ‘डी.के. को सीएम बनाना’ का नारा लगाता रहता है। इस बीच, सत्ता में वापसी के अवसर पर नजर गड़ाए भाजपा मध्यावधि चुनाव की भविष्यवाणी कर रही है और कह रही है कि कांग्रेस सरकार जल्द ही गिर सकती है।
सिद्धारमैया ने नेतृत्व परिवर्तन के किसी भी सुझाव को खारिज कर दिया है और कांग्रेस आलाकमान ने भी ऐसी किसी संभावना से इंकार किया है। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला द्वारा विधायकों और नेताओं के साथ बैठकों के बाद नेतृत्व परिवर्तन के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाने की बात कहने के एक दिन बाद, मुख्यमंत्री ने पुष्टि की, ‘‘कर्नाटक में मुख्यमंत्री में कोई बदलाव नहीं होगा।’’ फिलहाल, सिद्धारमैया को भरोसा है कि वह पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। उनकी कड़ी घोषणा और चेतावनी का उद्देश्य न केवल असहमति को शांत करना है, बल्कि जनता, पार्टी कार्यकत्र्ताओं और कांग्रेस नेतृत्व को स्थिरता का संदेश देना भी है। सिद्धारमैया को बदलना कांग्रेस नेतृत्व के लिए आसान नहीं है क्योंकि वह पार्टी में फूट डाल सकते हैं।
कर्नाटक में स्थिति को संभालने में कांग्रेस नेतृत्व सावधानी बरत रहा है। अगर सोनिया गांधी या राहुल गांधी ने डी.के. को रोटेशनल मुख्यमंत्री की भूमिका का वादा किया होता, तो अब उन्हें मना करना मुश्किल होता। हाईकमान को मुख्यमंत्री मुद्दे को सुलझाने के लिए चुनाव के बाद किए गए वादों को पूरा करना चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो कर्नाटक को राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मुख्यमंत्री पद के प्रमुख उम्मीदवार शिवकुमार ने 2023 में सिद्धारमैया के अधीन उपमुख्यमंत्री के रूप में काम करने पर सहमति व्यक्त की। उन्हें शांत करने के लिए उन्हें पार्टी की राज्य इकाई का प्रमुख भी बनाया गया। अनुशासनहीनता, गुटबाजी और विद्रोह कर्नाटक में लगातार चुनौतियां रही हैं और कांग्रेस पार्टी ने लगातार स्वीकार्य समाधान की मांग की है। समस्या विभिन्न जातियों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न पदों के लिए बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की है, जो प्राथमिक मुद्दा है। विभिन्न जाति समूहों के शीर्ष पर कई प्रभावशाली नेताओं के होने के कारण, हाई कमान को बार-बार उत्पन्न होने वाले राजनीतिक संकटों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में दुविधा का सामना करना पड़ता है।-कल्याणी शंकर