ऊन के लिए भेड़ों पर ‘क्रूरता’ रोकनी होगी

punjabkesari.in Wednesday, Oct 16, 2019 - 01:36 AM (IST)

बहुत से लोग सोचते हैं कि ऊन उद्योग चरागाहों में कूदती-फांदती भेड़ों से ऊन लेता है। यह कि किसी भी पशु के साथ दुव्र्यवहार या उसकी हत्या नहीं की जाती है। शांत भेड़ चुपचाप लाइन में खड़ी रहती है और बड़ी इलैक्ट्रिक कैंची वाले पुरुष आकर उसके बाल काटते हैं। यह सच नहीं है। 

इससे पहले कि आप ऊन खरीदें, ऑस्ट्रेलिया में मुख्य ऊन फार्मों के शियरिंग शैड में भेड़ के साथ किए जा रहे व्यवहार के बारे में 2017 में जारी पेटा का वीडियो देखें। अंडरकवर वीडियो में श्रमिकों को हिंसक रूप से भयभीत भेड़ों को घूंसा मारते,उनके सिर और गर्दन पर कूदते तथा खड़े होकर उनके सिर को फर्श पर पटकते, पिटाई करते और बिजली के क्लिपर से उनके सिर को पकड़ते दिखाया गया था। हिंसक शियरिंग प्रक्रिया ने उनके शरीर पर बड़े, खूनी कट छोड़े और श्रमिकों ने बिना किसी एनेस्थीसिया के सुई और धागे से खुले हुए घावों को सिल दिया। 

इससे 3 साल पहले, 2014 में, पेटा ने शीर्ष ऊन निर्यात फार्मों में इसी तरह के दुरुपयोग को उजागर किया था। कई मालिकों और श्रमिकों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कड़ी सजा दी गई। उद्योग ने सुधार का प्रण लिया। ऑस्ट्रेलिया की शियरिंग कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन के सचिव ने कहा कि 2014 का एक फुटेज उद्योग के लिए ‘नींद से जगाने वाला’ था और उन्होंने जानवरों के प्रति क्रूरता पर एक शून्य-सहिष्णुता नीति को लागू करने की कसम खाई थी। कुछ हफ्तों के बाद यह हमेशा की तरह व्यवसाय था और क्रूरता फिर से शुरू हो गई थी। 

शीयरर मानव विकास के सबसे निचले स्तर पर हैं - अनपढ़, अधीर, असंवेदनशील फार्म श्रमिक जिन्हें प्रति भेड़ के हिसाब से भुगतान किया जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे भयभीत जानवरों के संकट और चोट का कारण बनते हैं, उन्हें बस संख्या पूरी करनी होती है और वे अपनी मजदूरी चाहते हैं। अर्जेंटीना, चिली और संयुक्त राज्य अमरीका में इसी तरह की घटनाएं दर्शाई गई हैं और वे समान क्रूरता दिखाते हैं।

दायित्व हम उपभोक्ताओं पर
यदि ऊन के फार्म इसे रोकने नहीं जा रहे हैं, तो इसे रोकने का दायित्व हम उपभोग करने वालों पर है। ऊन मुक्त हो जाएं (हे भगवान, एक्रिलिक के लिए धन्यवाद!)। आप बेहतर परिस्थितियों की मांग करने के लिए दुनिया भर के ऊन के खुदरा विक्रेताओं को लिख सकते हैं। आप सोशल मीडिया के माध्यम से लज्जित करने की एक प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। लेकिन हमें एक और तरीके से देखना चाहिए, जिसने दूसरे क्षेत्र में खूबसूरती से काम किया है और जिस पर मुझे बहुत गर्व है। 

20 साल पहले यूरोप और अमरीका के कालीन आयातकों पर भारत के साथ व्यापार बंद करने का दबाव था क्योंकि हम पर उन्हें बनाने के लिए छोटे बच्चों का इस्तेमाल किए जाने का आरोप था। मैं सरकार में नहीं थी। हमने रगमार्क नामक एक समूह बनाया, वाराणसी और भदोही में गए और एक-एक कालीन निर्माता के पास जाकर वहां से काम पर लगाए गए बच्चों को हटाया। हमने कुछ को बिहार में उनके माता-पिता के पास वापस भेज दिया, जहां से उनका अपहरण करके लाया गया था, हमने दूसरों को हमारे द्वारा स्थापित अनाथालयों और स्कूलों में रखा। जब तक यह कार्य खत्म हुआ, बच्चे उत्पादन प्रणाली से बाहर हो चुके थे। 

कालीन निर्यातकों ने एक प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर किए जिस पर वे आज तक कायम हैं कि वे फिर कभी उनका उपयोग नहीं करेंगे। फिर उन्हें हमसे रगमार्क का लेबल खरीदने की अनुमति दी गई और जर्मनी ने लेबल को बढ़ावा देने का बीड़ा उठाया जिसका मतलब था बालश्रम मुक्त। जल्द ही पाकिस्तान और नेपाल ने भी यह लेबल अपनाया। इस लेबल हेतु भुगतान विदेशी आयातकों द्वारा किया गया था-उस समय प्रति लेबल 1 रुपए और यह बच्चों की देखभाल और उनकी स्कूली शिक्षा के लिए जाता था। रगमार्क ने एक नैतिक समस्या को हल किया और उद्योग एक इच्छुक सहयोगकत्र्ता था। 

हमें ऐसे ही किसी लेबल के साथ इस समस्या का हल करने की आवश्यकता है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ऊन के सबसे बड़े निर्यातक हैं। अकेले ऑस्ट्रेलिया में वैश्विक ऊन उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा उत्पन्न होता है। भारत ऑस्ट्रेलिया से ऊन के शीर्ष आयातकों में से एक है। 60 प्रतिशत चीन द्वारा आयात किया जाता है (और वे क्रूरता के बारे में कोई परवाह नहीं कर सकते)। वे सबसे खराब ऊन खरीदते हैं। फिर 20 प्रतिशत के साथ इटली आता है। वे अरमानी जैसे बड़े फैशन डिजाइनरों के लिए खरीदते हैं। हम 15 से 18 प्रतिशत के साथ तीसरे सबसे बड़े आयातक हैं और हर साल 17 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं। 2018 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 152 मिलियन डॉलर मूल्य (41.47 मिलियन किलोग्राम) की ऊन का निर्यात किया। 

हम कालीन ऊन, चिकना ऊन, सुगंधित ऊन, कतरनी ऊन, टैनरी ऊन, भेड़ के बच्चे का ऊन, मेरिनो ऊन और ऊन अपशिष्ट का आयात करते है। हम इस ऊन का उपयोग कालीन, हैंडलूम कपड़े, यार्न, हौजरी और निटवेयर-काॢडगन्स, पुलोवर, मोजे, दस्ताने, मफलर और सूट मैटीरियल बनाने के लिए करते हैं। कालीन निर्माता न्यूजीलैंड की ऊन के साथ घरेलू ऊन का मिश्रण करते हैं। हम तैयार उत्पादों का निर्यात करते हैं। 2014 में हमारे कच्चे ऊन का आयात 96.13 मिलियन किलोग्राम था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8 प्रतिशत अधिक था। 2014 में हमने 356 मिलियन डॉलर मूल्य का आयात किया और 1.05 बिलियन डॉलर का निर्यात किया। 2019 में यह 1.14 बिलियन है। 

लेबल विकसित करने की जरूरत
भारत के ऊन उद्योगपतियों को एक ऐसा लेबल विकसित करने की आवश्यकता है जो इसे नैतिकतापूर्ण ऊन कहे। पेटागोनिया जैसी कम्पनियों ने पहले से ही आम बाजार से ऊन का उपयोग करना बंद कर दिया है और इसे केवल उन ऊन फार्मों से खरीदती है जहां नैतिकतापूर्ण व्यवहार किए जाते हों। हमारी कम्पनियों को उन फार्मों से ऊन खरीदने से इंकार करना चाहिए जिनमें बाल काटने का क्रूर व्यवहार, मुलेसिंग नामक एक घृणित व्यवहार मौजूद है। इसमें भेड़ों को अपने शरीर पर अधिक से अधिक ऊन बढ़ाने के लिए पाला जाता है- कुछ चल भी नहीं सकती हैं क्योंकि भेड़ के बाल तैलीय होते हैं और गुदा के आसपास का क्षेत्र गर्म होता है, और मल तथा मूत्र से भरा होता है, कभी-कभी ब्लोफ्लाई त्वचा पर अपने अंडे दे देती हैं और लारवा भेड़ के टिशु पर पलते हैं। यह निश्चित रूप से भेड़ को बीमार बनाता है और बालों की गुणवत्ता खराब होती है। 

इस पर उद्योग जो करता है वह और भी बुरा है। वे बिना एनेस्थीसिया के नितम्ब से त्वचा को काट देते हैं। यदि कोई पागल व्यक्ति आपकी गुदा के चारों ओर की त्वचा व मांस के बड़े हिस्से को काटने की कोशिश करे तो आप कैसा महसूस करेंगे? फ्लाईस्ट्राइक, जैसा कि इस समस्या को कहा जाता है, से आसानी से बेहतर प्रबंधन और त्वचा कीटनाशकों के उपयोग से बचा जा सकता है। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई ऊन किसान लागत को कम रखने के लिए बहुत कम मजदूरों को रखते हैं इसलिए भेड़ की आमतौर पर उपेक्षा की जाती है। 

उद्योग यह कहकर मुलेसिंग का बचाव करता है कि जहां इससे भेड़ों को थोड़ा दर्द होता है, यह उन्हें मक्खियों द्वारा खाए जाने से बचाता है। यह सच नहीं है। फ्लाईस्ट्राइक में केवल फार्म वाली भेड़ें प्रभावित होती हैं, जंगली भेड़ें नहीं होती हैं और इसका कारण यह है कि उनकी त्वचा बढ़ती रहती है ताकि शरीर पर अधिक ऊन उग सके। बढ़ी हुई गर्मी और सिलवटें ब्लोफ्लाइज को आकर्षित करती हैं। जब दुनिया ने मुलेस की हुई ऊन का बहिष्कार करने की धमकी दी, तो ऑस्ट्रेलिया ने 2004 में प्रण लिया कि वे 2010 तक इस पर प्रतिबंध लगा देंगे। यह 2019 है और उन्होंने अभी भी ऐसा नहीं किया है। कई कपड़ा कम्पनियों ने इस प्रक्रिया से गुजरने वाली भेड़ से निकलने वाली ऊन का उपयोग नहीं करने का प्रण लिया है। 

कई अन्य भयानक चीजें हैं जो भेड़ों के साथ होती हैं। उदाहरण के लिए, शरलिया भेड़ को एक निश्चित प्रकार की ऊन का उत्पादन करने के लिए विकृत किया गया है तथापि, इसी आनुवांशिक विकृति ने उन्हें अंधा और चलने में असमर्थ बना दिया है। बीमारी और व्यक्तिगत उपेक्षा के कारण बड़े ऊन के फार्मों में हर साल लाखों भेड़ें मर जाती हैं, जब स्वतंत्र रूप से घूमने वाले जानवरों को एक-साथ ठूंस कर रखा जाता है। पर्याप्त स्वास्थ्य और बीमारियों के लिए पशु चिकित्सा देखभाल न के बराबर है। और, उनके ‘उत्पादक’ जीवन के अंत में, वे भीड़-भाड़ वाले जहाजों में मध्य पूर्व में वध करने के लिए भेज दी जाती हैं। 

अगर हम अपने लेबल को मुलेसिंग-रोधी और खराब तरीके से बाल उतारने, बंध्यीकरण, पूंछ काटने, तथा कान छेदने के विरोध तक ही सीमित रखते हैं तो भी यह काफी दूरगामी होगा। यदि हमारा भारतीय ऊन उद्योग ऑस्ट्रेलिया में किसी पशु कल्याण संगठन को बीच-बीच में जांच करने और फिर नैतिक ऊन लेबल देने के लिए काम पर रखेगा, तो यह दुनिया को बदल सकता है। नैतिक ऊन को एक वास्तविकता बनाने का समय आ गया है।-मेनका गांधी


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