धर्म की आड़ में अपना अधर्मी धंधा करते हैं स्वयंभू धर्मगुरु
punjabkesari.in Monday, Jul 22, 2024 - 05:44 AM (IST)
हाल ही में हाथरस (यू.पी.) में एक धार्मिक आयोजन के दौरान हुई दर्दनाक घटना ने पूरे देश का माहौल गमगीन कर दिया है। मनोकामना पूरी होने की आशा में ‘नारायण हरि उर्फ साकार विश्व हरि भोले बाबा’ का प्रवचन सुनने आए लाखों श्रद्धालुओं में भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। पहले भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें हजारों लोगों ने अपनी कीमती जान गंवाई है। कौन नहीं जानता कि ऐसी घटनाओं से आवश्यक सबक लेने और उन्हें रोकने या नियंत्रित करने के लिए प्रभावी उपाय करने के बजाय, इस बार भी इन अप्रत्याशित मौतों को किसी अदृश्य शक्ति या प्रबंधकों और प्रशासन की लापरवाही का परिणाम कह कर खारिज कर दिया जाएगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य में ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए आवश्यक प्रतिबंध लागू करने और सुझाए गए निवारक उपायों के सरकार के दावे अंतत: पहले की तरह ही निरर्थक साबित होंगे। इस भयानक घटना के इन पहलुओं के अलावा, हमें समाज में विभिन्न धर्मों के स्वयं-भू ‘धार्मिक गुरुओं’ के बढ़ते प्रभाव और उनकी प्रवचन शैली से उत्पन्न होने वाले नकारात्मक परिणामों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। यह भारत की खूबसूरती है कि यहां अलग-अलग समय में अस्तित्व में आए अनेक धर्मों के संस्थापकों ने उस युग में समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों, पिछड़ी मान्यताओं और अनावश्यक रीति-रिवाजों और उनके विरोध में रुचि रखने वाले लोगों को जागरूक किया।
भारत का वर्तमान संविधान प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने या न मानने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। सिख गुरुओं ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में दर्ज बाणी को ‘शबद गुरु’ का दर्जा दिया है, ताकि संगत गुरु की बाणी के सार को समझे और शारीरिक रूप से अयोग्य बनने की बजाय उसके अनुसार जीवन की सही प्रथाओं का पालन करे। गुरु दिशा निर्धारित कर सकता है इसी प्रकार अन्य धर्मों में भी ‘स्वयंभू’ धर्म गुरुओं के अंधभक्त न बनने से सावधान रहने को कहा गया है। जब भी समाज के किसी हिस्से में शासक वर्ग या अन्य दमनकारी समूह अपनी मनमानी के कारण आम लोगों को परेशान करते हैं, तो कुशाग्र बुद्धि और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले कुछ ‘महापुरुष’ जोखिम उठाकर अत्याचार का विरोध करते हैं। लेकिन यह भी सच है कि हर धर्म में स्वार्थी तत्व और शासक वर्ग के लोग आम लोगों की आस्था का अनुचित फायदा उठाते हैं और रात में खुद को धर्म का दूत बताकर धर्म के नाम पर अपनी ‘दुकानें’ चमकाने लगते हैं। भगवान की कृपा से करोड़ों लोगों की वास्तविक कमाई में चढ़ावे के रूप में एकत्रित धन के कारण ऐसे स्वयंभू धर्मगुरु अरबपति बनते हैं।
ऐसे कई ‘बुरे आदमी’ हत्या, बलात्कार, धोखाधड़ी और कई अन्य प्रकार के आपराधिक मामलों में पकड़े जा रहे हैं और लंबी जेल की सजा काट रहे हैं और कई अन्य अदालतों में आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं। इन अपराधियों को उनके वास्तविक अंजाम तक पहुंचाने के लिए वे उनका इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए करते हैं। धार्मिक संस्थाएं अपने अनुयायियों एवं भक्तों की श्रम शक्ति एवं आर्थिक अंशदान (योगदान) का समर्थन करती हैं वे जरूरतमंदों की कई जरूरतें पूरी करती हैं और बहुमूल्य सामाजिक सेवाएं भी प्रदान करती हैं। लोगों के कष्टों और अज्ञानता का फायदा उठाकर वे धर्म की आड़ में अपना अधर्मी धंधा जारी रखते हैं। यदि वे पीड़ित लोगों का हाथ पकड़ते हैं और उत्पीड़तों के खिलाफ लोगों में भावना और साहस फैलाते हैं, तो वे एक ‘पंथ’ या ‘धर्म’ स्थापित करने का प्रयास करते हैं। हर युग में ऐसी परिस्थितियों में पीड़ित लोगों के कष्टों को दूर करने के लिए ऐसे नवोदित धर्मों का मार्ग प्रशस्त होता रहा है। विभिन्न धर्मों के उद्भव ने नि:संदेह सामाजिक विकास में बहुत योगदान दिया है।
समाज के विद्वान और शिक्षित लोगों, पत्रकारों, लेखकों, सामाजिक संगठनों और प्रबुद्ध जनता का यह परम कत्र्तव्य है कि वे लोगों के अमूल्य जीवन से खिलवाड़ करने वाले झूठ के इन केंद्रों के संचालकों के खिलाफ आवाज उठाएं। ऐसे राजनीतिक दल, जो जनहितों के संरक्षक होने का दावा करते हैं, उन्हें समाज में इस तरह की अंधविश्वासी घटनाओं से आम लोगों को जागरूक और मुक्त करने में भी अपनी उचित भूमिका निभानी चाहिए।-मंगत राम पासला