‘राहुल तो बच्चा है जी मगर सच्चा है जी!’

punjabkesari.in Sunday, Jul 22, 2018 - 04:16 AM (IST)

‘उस आदमी में बच्चों की आदतें सब मौजूद हैं, पर हार कर जीतने का हुनर भी खूब है।’ इस शुक्रवार को संसद में मोदी सरकार के खिलाफ आया पहला अविश्वास प्रस्ताव भले ही औंधे मुंह लुढ़क गया हो, पर पूरे दिन चले इस सियासी ड्रामे ने कई तल्ख हकीकतों से भी पर्दा उठा दिया है। राहुल ने भरी संसद में प्रधानमंत्री से जो चंद तल्ख सवाल पूछे उसे आप 2019 के आम चुनावों का आगाज मान सकते हैं और इस बात का खुलासा भी कि विपक्ष किन मुद्दों के साथ चुनावी मैदान में जाने वाला है। 

राफेल डील पर आनन-फानन में फ्रांस सरकार का बयान आ गया कि दोनों सरकारों के बीच कोई गुप्त समझौता है, पर एक विमान की कीमत क्या वाकई 520 करोड़ से बढ़कर 1600 करोड़ हो गई? सत्ता पक्ष की ओर से इस बात का कोई माकूल जवाब नहीं आया। प्रति वर्ष 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने के वायदे पर मोदी घुमा-फिरा कर कोई एक करोड़ रोजगार का गणित बता गए, पर यह हिसाब भी एक वर्ष का था, बाकी के 3 सालों का हिसाब वह गोल कर गए। यह अविश्वास प्रस्ताव भले ही तेलुगु देशम पार्टी की ओर से आया हो, पर राहुल ही ‘सैंटर ऑफ स्टेज’ रहे, उनकी झप्पी सत्ता पक्ष के कंधे का बोझ बन गई और उनकी आंख मारने की अदा भगवा खेमे की आंखों में अब तलक किरचें बन कर चुभ रही है। 

नया राज्य होगा विदर्भ
‘खामोशियों से रात भर रिश्तों के दर्द को तापा है हमने, बुझती राखों से ही उम्मीदों के दीये जलाए हैं हमने।’ क्या जल्द ही विदर्भ के रूप में एक नए राज्य का सपना सच होगा? कयास इस बात के लगाए जा रहे हैं कि नागपुर में तेजी से जिन इमारतों के निर्माण को अंतिम रूप दिया जा रहा है, भविष्य में यह विदर्भ का सैक्रेटेरिएट हो सकता है। इस बात की सुगबुगाहट तेज है कि महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनाव से ऐन पहले केन्द्र सरकार नए विदर्भ राज्य का फरमान जारी कर सकती है। 

सनद रहे कि 1985 तक कांग्रेस में एक विदर्भ कांग्रेस कमेटी हुआ करती थी जिसे बाद में भंग कर दिया गया। पिछले दिनों विदर्भ कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण नेता मसलन वी. अवारी, एम.राव गोहाते, नरेश पुगलिया, अनीस अहमद, ताना जी बनवे, शिवाजी राव मोगे आदि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिले। समझा जाता है कि विदर्भ के इन कांग्रेसी नेताओं ने राहुल से कहा कि विदर्भ के संदर्भ में अभी से इस बात का संज्ञान नहीं लिया गया तो हमारी हालत भी तेलंगाना जैसी हो जाएगी। राहुल ने भी फौरन इस बात का संज्ञान लेते हुए अपने सबसे वफादार अशोक गहलोत को यह जिम्मेदारी सौंपी कि वह जल्द से जल्द एक कमेटी का गठन करें ताकि विदर्भ में कांग्रेस का झंडा बुलंद हो सके। 

वसुंधरा से घबराई शाह सल्तनत
‘पांच सालों से जब खुशनसीबी ने मुंह फेरा हुआ है, अब ढूंढकर सूरज को लाए हैं जब सवेरा हुआ है।’ भाजपा संगठन की रिपोर्ट मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनावों को लेकर बहुत उत्साह पैदा करने वाली नहीं है, चुनांचे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने तय किया है कि मध्य प्रदेश में सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बैंसी को देखते हुए वहां के 75 फीसदी निवर्तमान विधायकों के टिकट काट दिए जाएं और बदले में नए चेहरों को मैदान में उतारा जाए। राजस्थान में भी कमोबेश यही हालत है, पर भगवा शीर्ष नेतृत्व वहां वसुंधरा को छेडऩा नहीं चाहता क्योंकि पहले से ही वसुंधरा के बगावती तेवर हैं और उन्हें ज्यादा छेड़ा गया तो वह अपनी नई पार्टी बनाने की पहल कर सकती हैं। वहां प्रदेश संगठन में भी काफी खींचतान मची है, सो शाह सल्तनत ने तय किया है कि राजस्थान का चुनाव भले ही वसुंधरा के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, पर चुनाव मैनेजमैंट दिल्ली का होगा, जिससे समन्वय बिठाकर वसुंधरा को अपना हर निर्णय लेना होगा। 

अक्षय भारी डिमांड में
बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार एक नए भगवा अवतार में नजर आ सकते हैं। सूत्रों की मानें तो अक्षय कुमार समेत कई अन्य बॉलीवुड सितारे भी भाजपा नेतृत्व के सतत् संपर्क में हैं और उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतारा जा सकता है। सबको उम्मीद थी कि मोदी सरकार इस दफे इस खिलाड़ी कुमार को राज्यसभा में मनोनीत करेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। अब कयास है कि अक्षय को अमृतसर या गुरदासपुर से चुनाव लड़ाया जा सकता है। वहीं दिल्ली भाजपा की डिमांड बताई जा रही है कि अक्षय दिल्ली की चांदनी चौक सीट से या फिर नई दिल्ली से चुनावी मैदान में उतरें। मनोज तिवारी को बिहार के बक्सर भेजे जाने की तैयारी है, यह देखते हुए कि तिवारी के नार्थ ईस्ट दिल्ली सीट से इस दफे ‘आप’ के टिकट पर शत्रुघ्न सिन्हा चुनाव लड़ सकते हैं। क्रिकेटर कपिल देव को भी भाजपा चंडीगढ़ से उतारना चाहती है। ग्लैमर व खेल जगत से जुड़े कई अन्य चेहरों पर भगवा दाव लग सकता है। 

संघ-भाजपा का नव गांधी प्रेम
‘सर्द वायदों के चट्टानों में भी दरारें आ जाएंगी, इक दफा जो ये समंदर मचला, तो कई कश्तियां किनारों में ही डूब जाएंगी।’ गांधी को लेकर भाजपा व संघ का नया-नवेला प्रेम क्या खूब उफान मार रहा है। इससे पहले गांधी स्मृति में विहिप की बैठक को लेकर क्या खूब हंगामा बरपा, गांधी स्मृति में दो दिन तक ताले जड़े रहे। अभी यह विवाद ठंडा भी नहीं पड़ा था कि इस रविवार को फिर उसी गांधी स्मृति को कुरेद दिया गया। 

मौका था गांधी स्मृति में प्रभाश-परम्परा न्यास की गोष्ठी का जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर मुरली मनोहर जोशी को आमंत्रित किया गया और इसकी अध्यक्षता पूर्व गवर्नर टी.एन. चतुर्वेदी ने की। पहला विरोध तो ‘जनसत्ता’ अखबार के पत्रकारों की ओर से आया, इनका कहना था कि उनके प्रिय संपादक रहे प्रभाश जोशी ने जिस बाबरी मस्जिद ध्वंस के विरोध में सबसे ज्यादा अलख जगाया था, उसमें प्रमुख वक्ता के तौर पर जोशी को आमंत्रित करने का क्या औचित्य है? खैर यह गोष्ठी हुई पर बड़े पैमाने पर कुर्सियां खाली रह गईं और भरे मन से कई लोगों ने इस व्याख्यान माला में हिस्सा लिया। 

पर नायडू नहीं माने
‘रिश्तों के सफर में जरा संभल कर चला करिए, न जाने किस मोड़ पर कौन दगा दे जाएगा। कल तक जो हमसफर था, मंजिल साथ ले जाएगा, रस्ता ये छोड़ जाएगा।’ अविश्वास प्रस्ताव संसद में आने से ठीक एक रोज पहले गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की चिंताओं से सी.पी.एम. नेता मोहम्मद सलीम को रू-ब-रू कराते हुए उनसे यह गुजारिश की कि वह तेलुगु देशम से बात करें कि यह मसला आंध्र के निजी मसलों तक ही सीमित न रहे बल्कि मोदी सरकार की विफलताओं की पोल भी जनता में खोली जाए और इसके लिए जरूरी है कि संयुक्त विपक्ष के मुद्दों को टी.डी.पी. नेता अपने भाषण में जगह दें। 

इस बात को लेकर कम्युनिस्ट नेता मोहम्मद सलीम ने टी.डी.पी. नेता श्रीनिवास से बात की और कहते हैं कि श्रीनिवास ने यह भावना अपने नेता चंद्रबाबू नायडू तक पहुंचा दी, पर नायडू इस बात पर अडिग रहे कि एन.डी.ए. सरकार ने उनके राज्य के साथ जो नाइंसाफी की है यह बात देश को भी जाननी चाहिए और फिर शुक्रवार को जो कुछ हुआ, वह सबके सामने है। 

यू.पी. में शिवसेना के उम्मीदवार
शिवसेना ने संसद में अपने चीफ व्हिप चंद्रकांत खैरे को अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए उनके पद से हटा दिया है, दरअसल खैरे ने अपने नेता उद्धव ठाकरे से बात किए बगैर पार्टी सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने का व्हिप जारी कर दिया। उद्धव और संजय राउत व्हिप की उस भाषा को लेकर भी हैरत में थे जो विशुद्ध हिंदी में लिखी गई थी, नहीं तो आमतौर पर शिवसेना के तमाम पत्राचार व संवाद की भाषा मराठी है। 

उद्धव का मानना है कि सरकार में बने रहकर ही भाजपा को महाराष्ट्र में परास्त किया जा सकता है और भाजपा से ज्यादा पंगा लेना ठीक नहीं क्योंकि बी.एम.सी. में शिवसेना के मेयर को भाजपा के सपोर्ट की जरूरत पड़ती है और मुम्बई में बिना बी.एम.सी. के शिवसेना का अस्तित्व क्या है? लिहाजा भाजपा को सियासी सबक सिखाने के इरादे से शिवसेना अब उत्तर प्रदेश चुनाव पर फोकस कर रही है और इस बात की तैयारी में जुटी है कि यू.पी. में भाजपा के ङ्क्षहदू वोटों में सेंधमारी के लिए अब वहां शिवसेना भी चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगी। 

प्रोफैसर की क्लास से गैर-हाजिर अखिलेश
इन दिनों प्रोफैसर रामगोपाल यादव किंचित परेशान हैं कि अखिलेश अब उनकी हर बात नहीं मानते हैं। लोकसभा में होने वाले अविश्वास मत पर एक चैनल के रिपोर्टर ने प्रोफैसर साहब को छेड़ दिया और उनसे पूछ लिया कि इस पर संसद में उनकी पार्टी का क्या रुख रहने वाला है। बात इतनी सी थी पर जाने क्यों रामगोपाल उस रिपोर्टर पर बेतरह भड़क गए और उन्हें खूब खरी-खोटी सुना दी। दरअसल, प्रोफैसर साहब ने इससे पहले अखिलेश को फोन कर कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव का न तो हमें समर्थन करना चाहिए, न विरोध, इसीलिए हमारे सांसद शुक्रवार को संसद से अनुपस्थित रहेंगे पर अखिलेश नहीं माने। अखिलेश का कहना था कि विपक्षी एकता के सवाल पर यह पहला कदम है, हमारी पार्टी इस एकता से दगा नहीं कर सकती।-त्रिदीब रमण      


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Pardeep

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