राजनीतिक पार्टियों का चहेता ‘काला धन’

punjabkesari.in Saturday, Nov 30, 2019 - 12:56 AM (IST)

उचित व्यवहार, पारदर्शिता तथा जवाबदेही एक अच्छे शासन के तीन मंत्र हैं। यह अलग बात है कि ये तीनों मंत्र शासन के हाथ नहीं आने वाले। सबसे खास प्रश्र हमारे मन में यह उपज रहा है कि इन तीन मंत्रों को छूने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार कहां खड़ी है। मैं उसी समय से यह प्रश्र उठा रहा हूं जब से मैंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काले धन के बिना साफ-सुथरी राजनीति लोगों को देने वाले भाषणों को सुना है। क्या इस संबंध में मोदी अपने वायदों पर खरे उतरे हैं। 2017 में चुनावी बांड को शामिल करने के इस मुद्दे का निष्पक्ष तरीके से विश्लेषण करना होगा। जैसा कि सरकारी इकाइयां लोगों की नजरों से बच कर गुप्त तरीके से अपनी क्रियाओं को अंजाम देती हैं।

लोगों तथा प्रशासन के बीच विश्वनीयता का फर्क हमेशा से रहता है। इसके बावजूद भारत संचार क्रांति को देख रहा है। हम जानते हैं कि सूचना में बड़ी शक्ति होती है। हालांकि यह अफसोसजनक बात है कि लोगों को उपलब्ध करवाई जाने वाली सूचना की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं है। शासन की प्रणाली में तीनों मंत्रों की गैर-मौजूदगी के कारण मैं यह मुद्दा उठा रहा हूं। मैं यहां पर विशेष तौर पर  राजनेताओं तथा राजनीतिक पार्टियों के बीच चुनावी वित्त पोषण की बात कर रहा हूं।

मोदी सरकार ने चुनावी बांड्स का परिचय करवाया
एक समय मैं यह सोच कर खुश था कि शासन में पारदर्शिता लाने के लिए मोदी सरकार ने चुनावी बांड्स का परिचय करवाया। चुनावी बांडों को सार्वजनिक तौर पर पेश किया गया और बताया गया कि ये बांड्स राजनीतिक पार्टियों के लिए नकदी दान के स्थान पर एक स्वच्छ और स्वस्थ विकल्प हैं। क्या वास्तव में ऐसा ही था? मगर अनुभव इसके विपरीत थे और प्रतिक्रिया भी इससे अलग थी। इसके फौरन बाद यह महसूस किया गया कि चुनावी बांड्स स्कीम में कुछ गम्भीर खामियां थीं। हालांकि एसोसिएशन ऑफ डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स द्वारा दायर याचिका के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने स्कीम की विश्वसनीयता के बारे में सवाल उठाए।

केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि चुनावी बांड्स राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले दान में पारदर्शिता तथा विश्वसनीयता को यकीनी बनाएंगे मगर मामला इसके विपरीत ही था। ऐसा अनुभव किया गया कि नीतियां बनाने वाले लोगों ने अपने होमवर्क को सही ढंग से नहीं किया या फिर हम यह कहें कि उन्होंने राजनेताओं तथा पार्टियों के लिए कोष के प्रवाह के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में गोपनीयता रखने के लिए कच्चा हिसाब-किताब रखा। उस समय स्कीम की बुनियादी बातों पर भारतीय चुनाव आयोग तथा आर.बी.आई. जैसी सरकारी इकाइयों ने सवाल नहीं उठाए मगर मोदी सरकार के पास कोष जुटाने की योजनाएं थीं। यहां पर वायदे तथा निष्पादन के बीच में एक स्पष्ट फर्क दिखाई दे रहा था।

भारतीय चुनाव आयोग का रुख
भारतीय चुनाव आयोग ने चुनावी बांड्स पर आधिकारिक रुख को पीछे हटने वाला बताया तथा यह मांग की कि इस संबंध में रिप्रैजैंटेशन ऑफ पीपल्ज एक्ट 1951 (आर.पी.ए.) में किए गए संशोधनों को वापस लिया जाए। स्थिति का व्याख्यान करते हुए भारतीय चुनाव आयोग ने निष्कपट रूप से उल्लेख किया कि ऐसी स्थिति में यहां चुनावी बांड्स के माध्यम से प्राप्त किए गए योगदानों को बताया नहीं जाएगा। यह भी सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि राजनीतिक पार्टी ने आर.पी.ए. 1951 के सैक्शन 29-बी के तहत प्रावधानों की अवहेलना कर कोई भी दान प्राप्त किया है। यह एक्ट सरकारी कम्पनियों तथा विदेशी स्रोतों से राजनीतिक पार्टियों को दिए गए दानों पर रोक लगाता है।

इससे और आगे जाते हुए भारतीय चुनाव आयोग ने कहा कि पूरी प्रक्रिया ‘शैल कम्पनियों’’ द्वारा दिए गए दानों को प्रोत्साहित करेगी। इस तरह धन पोषित प्रणाली की पारदर्शिता को यकीनी बनाने के सभी प्रावधान उजागर हो जाएंगे। बांड की विशेषता यह है कि दान देने वाले का नाम गुप्त रखता है। राजनीतिक पार्टी को यह घोषित नहीं करना होता कि उसको कितना धन मिला या फिर उसको कितना धन दिया गया। इसके बारे में 2018 में तत्कालीन दिवंगत वित्त मंत्री अरुण जेतली ने फेसबुक पोस्ट पर तर्क दिया था कि नाम गुप्त रखना जरूरी है। पूर्व के अनुभव दर्शाते हैं कि दान देने वाले को यह स्कीम आकर्षक नहीं लगेगी और वह नकद दान देने के कम वांछनीय विकल्प के पास फिर लौट जाएगा।

बुरा उदाहरण अवांछनीय प्रक्रिया को प्रोत्साहित करेगा
अप्रैल में इस स्कीम को ब्लॉक करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि यदि दान देने वाले की पहचान को जाहिर नहीं किया जाएगा तब काले धन को खत्म करने की आपकी पूरी प्रक्रिया बेकार हो जाएगी। काला धन सफेद हो जाएगा। जहां तक रिजर्व बैंक आफ इंडिया का सवाल है इसके एक उच्चाधिकारी ने जोरदार तरीके से इसका विरोध किया और यह तर्क दिया कि ‘बुरा उदाहरण अवांछनीय प्रक्रिया को प्रोत्साहित करेगा।’
पिछली सर्दियों में जब केन्द्र सरकार से चुनाव आयोग के ‘विचारों’ तथा ‘चिंताओं’ बारे पूछा गया तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। यह पूर्णतया झूठ साबित हुआ जैसा कि भारतीय चुनाव आयोग के संशय में स्पष्ट तौर पर उल्लेखित हुआ था। यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि कम्पनी के डोनेशन कानूनों के संशोधनों के साथ गुमनामी वाले बांड से विदेशी वित्त पोषकों के लिए काले धन के इस्तेमाल में बढ़ौतरी होगी।

मोदी सरकार लम्बे समय से यह तर्क देती आई थी कि सफेद धन को प्रोत्साहित करने के आदेश में दान देने वालों की पहचान को छिपाना जरूरी है। मगर विडम्बना देखिए कि दान देने वाले सरकारी नियंत्रण वाले एस.बी.आई. जैसे बैंकों के अलावा प्रत्येक के लिए अदृश्य हो जाएंगे। सी.बी.आई. तथा ई.डी. अपेक्षित सूचना लेने के लिए इन पर जोर डाल सकती हैं। यह जगजाहिर है कि मार्च 2017 में 222 करोड़ के मूल्य वाले चुनावी बांड्स जारी किए गए थे। भाजपा ने 94.5 प्रतिशत यानी कि 210 करोड़ रुपए के ऐसे बांड्स प्राप्त किए थे। 2018-19 में चुनावी बांड्स के तहत 6000 करोड़ रुपए दान दिए गए, जिसमें से 4500 करोड़ भाजपा के खाते में गए। इस मामले में लोगों का अधिकार कहा जाने वाला सूचना का अधिकार (आर.टी.आई.) कहां खड़ा हो पाता है। यदि हम चुनावी धन के प्रवाहों को निकट से जांचें तो हमें सरकार की नीति के बारे में पता चलेगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चुनावों के दौरान खर्च किया गया बहुत सारा पैसा काले धन की विविधताओं को उत्पन्न करता है।

नोट और वोट एक साथ चलते हैं
हम जानते हैं कि हमारी वर्तमान चुनावी प्रणाली में नोट और वोट एक साथ चलते हैं। बेशक सभी पार्टियों का लालन-पालन काले धन से होता है और काला धन इन सबका चहेता है क्योंकि यह हमारे राजनेताओं को जवाबदेही की प्रक्रिया से मुक्ति दिलवाता है। किसको क्या पड़ी है कि इस प्रक्रिया में गरीबी में डूब रहे आम आदमी को बचाए। मैं आशा करता हूं कि मोदी सरकार चुनावी बांड्स के गुप्त रास्तों पर एक और नजर दौड़ाएगी। उचित व्यवहार, पारदर्शिता तथा जवाबदेही को हमारे चमकदार लोकतंत्र का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, जिसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी हमेशा ही जिक्र करते हैं। यह खेदजनक बात है कि केन्द्र सरकार ने राजनीतिक पार्टियों तथा आम लोगों से चुनावी बांड्स के बारे में राय जानने का विचार ही त्याग दिया। अच्छे प्रशासन के भविष्य के सिस्टम का चिंतन करने के लिए हमारे पास मौका है। - हरि जयसिंह hari.jaisingh@gmail.com


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