राजनीतिक हथकंडा बनकर रह गए हैं साहित्य पुरस्कार

punjabkesari.in Wednesday, Apr 26, 2017 - 11:00 PM (IST)

यश भारती पुरस्कार क्या दलीय और व्यक्तिगत इच्छापूर्ति का माध्यम नहीं बन गया है? क्या दलीय हित और व्यक्तिगत हित साधने के लिए यश भारती पुरस्कार को राजनीतिक हथकंडा नहीं बनाया गया? क्या वैसे लोगों को यश भारती पुरस्कार नहीं दिए गए जो चरणपादुका संस्कृति में विश्वास रखते रहे हैं? क्या वैसे लोगों को यश भारती पुरस्कार नहीं दिए गए जिनकी निष्ठा सत्ताधारी पार्टी के प्रति गहरी रही थी? क्या यह सच नहीं है कि दलीय राजनीति से अलग रहने वाले लोगों को यश भारती पुरस्कार से दूर रखा गया? क्या यह सही नहीं है कि राष्ट्रवाद के सहचर साहित्यकारों को कभी भी यश भारती पुरस्कार के लायक नहीं समझा गया है?

क्या यह सही नहीं है कि अमिताभ बच्चन के परिवार के 4-4 सदस्यों को यश भारती पुरस्कार दिया गया? क्या अमिताभ बच्चन का बेटा अभिषेक बच्चन और बहू ऐश्वर्य बच्चन भी यश भारती पुरस्कार के अधिकार रखते थे? अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्य बच्चन ने उत्तर प्रदेश के विकास, उन्नति और सम्मान अर्जित कराने में कौन से योगदान दिए हैं? क्या यह सही नहीं है कि यश भारती पुरस्कार बांटने की जिम्मेदारी रखने वाले सरकारी अधिकारी अपनी पत्नियों और परिवार वालों को यह पुरस्कार दिलाते हैं? क्या यह सही नहीं है कि यश भारती पुरस्कार लेने वाले एक उम्रदराज तथाकथित साहित्यकार ने मंच पर अखिलेश यादव के पैर छुए थे? 

क्या यह सही नहीं है कि इन्हीं आरोपों के कारण मायावती ने अपनी सरकार के दौरान यश भारती पुरस्कार को बंद कर दिया था। सिर्फ  यश भारती पुरस्कारों की ही बात नहीं है बल्कि सभी सरकारी पुरस्कारों को सत्ताधारी पार्टी हथकंडा बना कर अपनी इच्छा को मूर्त रूप देती है। पुरस्कारों को दलीय राजनीति से मुक्त रखा जाना चाहिए। यश भारती पुरस्कार को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़े कदम उठाए हैं। उन्होंने यश भारती पुरस्कार की समीक्षा कराए जाने की घोषणा की है।  योगी आदित्यनाथ ने साफ  तौर पर कहा है कि यश भारती पुरस्कार कैसे और किस प्रकार से दिए गए हैं, इसकी जांच कराई जाएगी। योगी आदित्यनाथ सरकार ने यश भारती पुरस्कार बंद करने की भी आवश्यकता जताई है। 

यश भारती पुरस्कार की आवश्यकता पर विचार कर योगी आदित्यनाथ ने अच्छा काम किया है। अगर सही में यश भारती पुरस्कार प्राप्त किए गए साहित्यकारों, कलाकारों और संस्कृति कर्मियों की जांच हो जाए तो यह ज्ञात हो जाएगा कि यह पुरस्कार सत्ताधारी पार्टी का सिर्फ  एक हथकंडा मात्र रहा है। अब समीक्षा होनी तय है। समीक्षा होगी तो फिर इस पुरस्कार से जुड़ी कई कहानियां सामने आएंगी। तब उस समय की सत्ता के साथ ही साथ साहित्यकार,संस्कृतिकर्मी और कलाकार भी अपने खोल से बाहर आएंगे। इनके क्रूर जातिवादी, पैसा वादी और गिद्ध सैकुलर वादी चेहरे बेनकाब होंगे। 

यश भारती पुरस्कार मुलायम सिंह यादव की कुनबा परस्त नीति की उपज था। मुलायम सिंह यादव ने अपने लोगों को सम्मानित करने और उन्हें लाभार्थी बनाने के लिए यश भारती पुरस्कार की शुरूआत कराई थी। यश भारती पुरस्कार देश के नामी-गिरामी पुरस्कारों में शामिल हो गया। वैसे तो यह पुरस्कार सिर्फ  उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले लोगों को दिया जाता है। इसमें पुरस्कार के साथ ही साथ 11 लाख की नकद राशि दी जाती है। सिर्फ  इतना ही नहीं बल्कि यश भारती पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति को जीवन भर 50 हजार रुपए प्रति माह पैंशन मिलती है। पैंशन के साथ ही साथ अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं। जब इतनी बड़ी रकम मिलती है, 50 हजार रुपए प्रति माह पैंशन मिलती है तो फिर इसको प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा भी चलती होगी? 

इस पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार और संस्कृतिकर्मी कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं और सत्ताधारी पार्टी से नजदीकियां बढ़ाते हैं, सत्ताधारी पार्टी के कार्यकत्र्ता की तरह काम भी करते हैं। चमचागिरी और चरणवंदना इनकी संस्कृति होती है। एक तस्वीर की कहानी भी यहां उल्लेखनीय है, वह तस्वीर देश भर में चॢचत हुई थी, साहित्यकारों के सम्मान मेें खलनायक की भूमिका निभाई थी। यश भारती पुरस्कार से सम्मानित उम्रदराज साहित्यकार ने अपने से काफी छोटे अखिलेश यादव की मंच पर चरणवंदना की थी। इस तस्वीर के सामने आने के साथ ही यह स्थापित हुआ था कि यश भारती पुरस्कार चरणवंदना संस्कृति वालों को ही दिया जाता है। 

यश भारती ही नहीं बल्कि देश के अन्य पुरस्कारों की समीक्षा हो तो साफ पता चल जाएगा कि किस प्रकार से पुरस्कारों की राजनीति चलती है। देश में अधिकतर समय तक कांग्रेस का शासन रहा है। पश्चिम बंगाल में 30 सालों तक कम्युनिस्टों का शासन रहा है। बिहार और यू.पी. में जातिवादी शासन लम्बे समय तक रहा है। इसलिए ऐसी सत्ता के दौरान तथाकथित सैकुलर टाइप के साहित्यकारों, पत्रकारों, संस्कृति कर्मियों की पूरी फौज खड़ी हुई है। अब यू.पी. में योगी सरकार आने के बाद चमचों और चरणवंदना संस्कृति के साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकर्मियों और संस्कृतिकर्मियों की दुकानदारी बंद होगी। यश भारती पुरस्कार को बंद तो नहीं किया जाना चाहिए पर चयन नीति बदलनी चाहिए और वैसे साहित्यकारों, पत्रकारों,, कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों के चयन होने चाहिएं जो समाज सुधार और समाज चेतना की अलख जगाते रहे हैं। 
 


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