लोगों को अपने दुखों का समाधान खुद ही ढूंढना होगा

punjabkesari.in Sunday, Aug 15, 2021 - 06:48 AM (IST)

आजादी के 75 सालों के दौरान देश की सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालने के लिए कई तरीके खोज रखे हैं। अपने कार्यकाल के पहले चार वर्षों में मंत्रियों तथा दूसरे सहयोगियों को सरकारी खजाने तथा संसाधनों को लूटने की खुली छूट दे दी जाती है। आमतौर पर प्रत्येक विभाग में शुरू किए जाने वाले प्रोजैक्टों पर खर्च किए जाने वाले पैसों में से ज्यादा रकम पहले ही संबंधित मंत्री के लिए आरक्षित निकाल ली जाती है। 

निचले स्तर पर पोजीशनों के अनुसार अपना-अपना हिस्सा लेकर बाकी की बची हुई राशि संबंधित योजना के ऊपर खर्च कर काम पूरा किया जाता है। उद्योग, बिजली, वन, सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, आवाजाही तथा रेत इत्यादि कोई भी सरकारी विभाग भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं दिखाई देता।  किसी भी सरकारी परियोजना के स्तर की यदि जांच-पड़ताल की जाए तो वह कभी भी उस स्तर की नहीं मिलती जिस स्तर का काम करने का वायदा किया जाता है। मतलब यह है कि टैंडर भरा जाता है। सरकारी गोदामों में चोरियां तथा भ्रष्टाचार, नशा तस्करों से लेन-देन, ज्यादा कमाई करने वाली सीटों पर मर्जी के अधिकारी लगाकर मंत्री साहिब द्वारा उनसे अपना हिस्सा लेना एक कानूनी प्रक्रिया बन गई है। 

सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिन में कुछ बागियों की ओर से अपनी ही सरकार के मंत्रियों के ऊपर भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद के दोष लगाकर हल्ला-गुल्ला मचाया जाता है। सरकार के ऊपर लोगों से किए गए वायदों को पूरा न करने का दोष लगाकर लोगों की हमदर्दी बटोरने का काम किया जाता है। जिस सरकार का ये लोग पूरे समय तक उसका अंग हुआ करते हैं उसी सरकार का नेतृत्व कर रही टीम में तबदीली करने के लिए बागी विधायक या पार्टी नेता अपना दल बनाकर दबाव बढ़ाते हैं। चाय पार्टियां तथा खाने की दावतों और ग्रुप मीटिंगों का सिलसिला किसी लोक सेवा के मुद्दे पर बहस करना नहीं बल्कि अपनी राजनीतिक कीमत बढ़ाने तथा कोई पद हासिल करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है ताकि सरकार के कार्यकाल के दौरान यदि भ्रष्टाचार के माध्यम से धन एकत्रित करने में यदि कोई कमी रह गई है तो उसकी भरपाई की जा सके। 

इस तरह की राजनीतिक मौकाप्रस्त खेल की खबरों को टी.वी. तथा समाचार पत्रों में तेजी से प्रसारित तथा प्रकाशित करने की पूरी योजनाएं बनाई जाती हैं। आम लोगों का ध्यान ऐसी कपटी चालों की ओर खींचने के लिए विशेषज्ञों की सहायता भी ली जाती है। ज्यादातर लोग जो सरकार के पहले वर्षों के दौरान सरकार की लोकविरोधी नीतियों की मार झेल रहे होते हैं वे इस ड्रामेबाजी में विभिन्न धारणाओं को बनाने में उलझ कर रह जाते हैं। कई लोग तो ऐसी उथल-पुथल में अच्छे दिनों की उम्मीद भी कर बैठते हैं और कुछ लोग ऐसे हैं जो इस राजनीतिक खेल का मजाक उड़ाते हुए इससे पहली सरकार की प्रशंसा के गीत गाने लग पड़ते हैं। इस तरह ही सरकारों के दुख झेलने वाले लोग अंग्रेजी हुकूमत की बरकतों को याद करने लग जाते हैं। 

चिंता का विषय यह है कि 75 वर्षों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले लोगों का बहुमत अभी तक इस चालाकी को पूरी तरह से समझने में असमर्थ है। राजनीतिक पाॢटयां एक जैसी ही आॢथक तथा राजनीतिक नीतियां बनाती हैं। राज सत्ता पर एक ही श्रेणी के वफादार सांसदों तथा सदस्यों का कब्जा रहता है। समस्त नौकरशाही इसी राजसत्ता को मजबूत करने के लिए अपने हितों को बढ़ावा देने के लिए अपना किरदार निभाती है। यदि बागियों का सारा प्रयोजन सफल भी हो जाए तब भी जन साधारण के कल्याण हेतु लोकहितों वाली आर्थिक नीति को नौकरशाही कौन-से बाजार से प्राप्त करेगी। 

आजादी प्राप्ति के बाद केंद्र तथा राज्य सरकारों ने राजनीतिक दल तथा राजनीतिक नेताओं के परिवर्तन के बावजूद कई समस्त आर्थिक नीतियों का दायरा नहीं बदला और न ही नई सरकारों ने भ्रष्टाचार तथा लोगों की अनदेखी नीतियों की कोई निष्पक्ष जांच करवाई। डा. मनमोहन सिंह तथा नरेन्द्र मोदी के विचारों में भिन्नता के बावजूद देश के अंदर लागू की जा रही नव उदारवादी नीतियों के मुद्दे के बारे में थोड़ा-सा भी मतभेद नहीं है। चुनावों के नजदीक पहुंच कर सरकारें लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दों से हटाने की नौटंकी करती हैं। 

राजनीतिक पार्टियों की हाईकमान भी चुनाव जीतने के नजरिए से रातों-रात नए मुख्यमंत्री तथा नए पार्टी अध्यक्षों तथा उनकी सहयोगी टीमों को तय करती है। रात को सो रहा कोई भी मंत्री या पार्टी प्रधान सूरज उदय होने से पहले ही पिछली सीट पर बिठा दिया जाता है। ऐसा भेदभाव इन पाॢटयों के अंदर लोकतांत्रिक व्यवस्था की हकीकत को बयां करता है जिसका गुणगान करने से यह कभी नहीं थकती। 

पिछले दिनों पंजाब की कांग्रेस पार्टी में हुए बदलाव, नए नेताओं की ताजपोशी तथा दूसरे लोगों की छुट्टी से लोगों से किए गए वायदों की पूर्ति मात्र से पंजाब के दुखों के मारे लोगों का भला नहीं हो सकता। राजनीतिक प्रतिबद्धता के बिना चंद लोगों या राजनीतिक दलों में बदलाव से श्रमिक लोगों का कल्याण नहीं हो सकता। इस सारे घटनाक्रम को देखते हुए लोगों को अपने दुखों का समाधान खुद ही ढूंढना होगा तथा सभी रंगों के किरदारों के असली किरदार को समझते हुए उनसे पीछा छुड़ाना होगा।-मंगत राम पासला


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