घाटी में संकट के लिए खुद पी.डी.पी. जिम्मेदार

punjabkesari.in Wednesday, Jul 20, 2016 - 12:45 AM (IST)

(डा. बलराम सैनी): कश्मीर घाटी में हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर युवा आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद अशांति का जो माहौल बना है, उसके लिए सत्तारूढ़ पी.डी.पी. सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। पिछले डेढ़ वर्ष के पी.डी.पी.-भाजपा शासनकाल पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि पी.डी.पी. के कुछेक मंत्रियों ने अलगाववादियों के तुष्टीकरण और अपनी सहयोगी भाजपा को जम्मू संभाग एवं राष्ट्रीय स्तर पर नीचा दिखाने के लिए साम्प्रदायिक अलगाव को बढ़ावा देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। इन नेताओं ने माता वैष्णो देवी हैलीकॉप्टर टैक्स, आपशम्भू मंदिर तोड़-फोड़ एवं ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी बिल जैसे संवेदनशील मामलों में आग में घी डालने का काम किया और आज यही आग खुद उनके घरों को झुलसाने में लगी है। 

 
चाहे वर्ष 2008 का अमरनाथ भूमि आंदोलन रहा हो या वर्ष 2010 में कश्मीर घाटी में तुफैल मट्टू की मौत के बाद चला पत्थरबाजी का दौर, तमाम घटनाक्रमों में पी.डी.पी. अध्यक्ष एवं वर्तमान मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की भूमिका बेहद उत्तेजक रही। 
 
वर्ष 2015 में जब भाजपा के साथ मिलकर पी.डी.पी. ने सरकार बनाई तो यह उम्मीद की जा रही थी कि अलगाववाद एवं धार्मिकता से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर पी.डी.पी. के रुख में आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिलेगा, क्योंकि अब वह अस्थिर राजनीतिक हालात का फायदा उठाने वाले विपक्ष में नहीं, बल्कि इन हालात को सामान्य करने के लिए जिम्मेदार सरकार का हिस्सा है लेकिन लगता है कि पी.डी.पी. अपनी नई भूमिका में ढल नहीं पा रही। 
 
भाजपा को बैकफुट पर लाने के लिए वित्तमंत्री डा. हसीब द्राबू ने पहले माता वैष्णो देवी, पवित्र अमरनाथ गुफा और मचैल में चंडी माता के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की हैलीकॉप्टर सेवा पर सॢवस टैक्स लगाया, फिर अमरनाथ यात्रा के दौरान लगने वाले नि:शुल्क भंडारों की खाद्य सामग्री पर सेल्स एवं टोल टैक्स थोप दिए। ‘पंजाब केसरी’ द्वारा यह समाचार प्रमुखता से प्रकाशित करने के बाद उप-मुख्यमंत्री डा. निर्मल सिंह के हस्तक्षेप पर भंडारा सामग्री से तो टैक्स हटा लिए गए लेकिन चौतरफा आलोचनाओं के बावजूद वित्तमंत्री ने हैलीकॉप्टर सेवा से टैक्स नहीं उठाया। नि:स्संदेह, जम्मू संभाग और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को काफी फजीहत का सामना करना पड़ा। सवाल यह भी उठता है कि जब कोई हिन्दू हज यात्रा पर दी जाने वाली सरकारी सबसिडी पर आपत्ति नहीं जताता और सरकार भी इसे निरंतर बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ती तो हिन्दू धर्मस्थलों की यात्राओं के प्रति सरकार का व्यावसायिक नजरिया क्यों है। 
 
राज्य विधानसभा के पिछले बजट सत्र के दौरान जम्मू के अप्पर रूपनगर स्थित प्राचीन आपशम्भू मंदिर में शरारती तत्वों ने तोड़-फोड़ कर दी। पी.डी.पी. मंत्रियों ने इस मुद्दे पर भी अपनी सहयोगी भाजपा को शर्मसार करने का मौका नहीं जाने दिया। 
 
इसके बाद राजस्व, राहत एवं पुनर्वास मंत्री सईद बशारत अहमद बुखारी भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर एवं जम्मू संभाग में बैकफुट पर लाने के लिए विधानसभा में ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट में संशोधन के लिए विधेयक ले आए। राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में भाजपा मंत्रियों ने अनजानेपन अथवा आपसी विश्वास के चलते इस विधेयक के मसौदे को पास कर दिया था, जब इसे सदन में पेश किया गया तो ‘पंजाब केसरी’ द्वारा इस विधेयक की खामियां उजागर किए जाने के बाद सकते में आई भाजपा बीच-बचाव के रास्ते ढूंढने लगी। ऊधमपुर विधायक एवं पूर्व वित्त राज्यमंत्री पवन गुप्ता ने तो इस विधेयक का खुलकर विरोध किया लेकिन भाजपा मंत्रियों एवं विधायकों ने इसे सदन की चयन समिति को भेजे जाने की अनुशंसा कर दी। 
 
अब चयन समिति को भेजे जाने के बाद यह विवादित विधेयक पी.डी.पी. नेतृत्व के पास तुरुप का वह पत्ता है जिसे ‘उचित समय’ आने पर कभी भी भाजपा से संबंध विच्छेद करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। 
 
टाइम-पास नीति ने बिगाड़े हालात  
कश्मीर घाटी में आतंकी बुरहान वानी की मौत के कारण अचानक से हालात खराब नहीं हुए हैं, बल्कि बुरहान की मौत तो बहाना मात्र है। दरअसल, यह कश्मीर को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों की टाइम-पास नीति का परिणाम है। विशेषकर पिछले डेढ़-दो वर्ष के दौरान देशभर में हुईं सियासी गतिविधियों ने कश्मीरी युवाओं के गुस्से एवं हौसले को खूब हवा दी। 
 
नई दिल्ली के जे.एन.यू. प्रकरण के बाद 7 कश्मीरी युवाओं को यह महसूस होने लगा कि वे अकेले नहीं हैं, बल्कि देश के दिल दिल्ली में भी ‘कश्मीर की आजादी’ का समर्थन करने वाले मौजूद हैं। ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, वामपंथी नेताओं और राष्ट्रीय मीडिया के दिग्गजों समेत देश के बुद्धिजीवियों का बड़ा वर्ग उनके समर्थन में खड़ा है। फिर राज्य की पी.डी.पी.-भाजपा सरकार ने भी अलगाववादियों के तुष्टीकरण के लिए कई कदम उठा दिए। 
 
नैशनल कांफ्रैंस के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तो अपने ट्वीट के जरिए युवा वर्ग का ‘मार्गदर्शन’ करते ही रहे हैं। विशेषकर आतंकी बुरहान वानी को ‘हीरो’ करार देते हुए उमर ने कहा कि वह अपने जीवनकाल में इतने युवाओं को आतंकवादी के तौर पर भर्ती नहीं कर पाया, जितने कब्र से कर पाएगा। उमर अब्दुल्ला बेशक जिम्मेदार नेता हैं लेकिन इस समय विपक्ष में हैं लेकिन जिस पी.डी.पी. पर राज्य की कानून-व्यवस्था को सामान्य करने की जिम्मेदारी है, उसके बारामूला-कुपवाड़ा सांसद एवं पूर्व उप-मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने तो बुरहान वानी एवं सुरक्षा बलों के बीच हुई मुठभेड़ पर ही सवाल उठा दिए। 
 
आम कश्मीरी के केंद्र अथवा भारत के प्रति गुस्से का सबसे बड़ा कारण यह है कि केन्द्रीय नेताओं, वार्ताकारों अथवा बुद्धिजीवियों ने श्रीनगर को ही कश्मीर मान लिया है, जबकि कश्मीर की सच्चाई तो उन गांवों में बसती है जिनकी किसी केंद्रीय नेता अथवा बुद्धिजीवी ने सुध तक नहीं ली। कश्मीर समस्या पर बातचीत के लिए भी कोई आया तो आम कश्मीरी से बात करने के बजाय कुछ ‘ठेकेदारों’ से बात करके और श्रीनगर, गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम में सैर-सपाटा करके चला गया। बहरहाल, जब तक केंद्र अपनी टाइम-पास नीति को बदलकर कश्मीर को गंभीरता से नहीं लेता, कोई समाधान होने वाला नहीं है। 
 

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