पाकिस्तानी नेताओं का कश्मीर को लेकर जुनून

punjabkesari.in Friday, Apr 15, 2022 - 05:14 AM (IST)

पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार भारत के प्रति कितनी मैत्रीपूर्ण होगी? यह कहना कठिन है क्योंकि अपने जन्म के बाद से ही पाकिस्तान के नई दिल्ली के साथ संबंध कभी भी अच्छे नहीं रहे। इसका मुख्य कारण पारस्परिक लाभ के लिए भारत के साथ आर्थिक संबंधों में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय पाकिस्तानी नेताओं की कश्मीर के लिए सनक है। 

अपने उद्घाटनी भाषण में शहबाज शरीफ ने कश्मीर का मुद्दा उठाया और आरोप लगाया कि घाटी में लोग खून के आंसू रो रहे हैं। खून के आंसू? स्वाभाविक तौर पर नया प्रधानमंत्री अपने ही सपनों की दुनिया में रह रहा है जो उनका तथा उनके देश का कोई भला नहीं करेगा। इस संदर्भ में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर ‘गंभीर तथा कूटनीतिक प्रयास’ नहीं करने का आरोप लगाते हुए हमला किया जब भारत ने 2019 में अपने संविधान से धारा 370 समाप्त कर दी। 

शहबाज शरीफ इस हद तक कह गए कि कश्मीरियों का खून कश्मीर की सड़कों पर बह रहा है तथा घाटी खून से लाल है। उनकी टिप्पणियां अत्यंत मूर्खतापूर्ण तथा हैरान करने वाली हैं। ये टिप्पणियां घाटी में जमीनी हकीकतों को प्रतिबंधित नहीं करतीं। कश्मीर बारे बोलने की बजाय मुझे आशा थी कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अपने देश की आर्थिक स्थितियों पर कड़ी नजर डालेंगे। यह कोई रहस्य नहीं कि इस्लामाबाद एक अत्यंत गंभीर आर्थिक तथा वित्तीय संकट का सामना कर रहा है जो तुरन्त ध्यान देने की मांग करता है लेकिन परवाह किसे? 

यह अफसोस की बात है कि पाकिस्तानी नेतृत्व की गुणवत्ता हैरानीजनक रूप से घटिया है। जो स्थिति है पाकिस्तानियों की एक पूरी पीढ़ी भारत विरोधी उन्माद के चलते  अपनी रोजी-रोटी कमा रही है। लोगों को सही जानकारी नहीं दी गई जो कट्टरवादियों के लाभ में जाता है। ऐसी स्थिति में इस्लामाबाद कैसे नई दिल्ली के साथ अच्छे संबंध बना सकता है?अफसोस है कि पाकिस्तान के साथ अविश्वास तथा संदेह के माहौल में शांति कायम नहीं की जा सकती। पाकिस्तानी नेताओं में इरादों तथा उद्देश्यों को लेकर वास्तविकता होनी चाहिए। देश के सत्ताधारी क्षत्रपों में यह चीज कतई नहीं है। 

यह बढ़ा-चढ़ा कर कही गई बात नहीं है कि कट्टरवाद को प्रोत्साहित करने के लिए पाकिस्तान में जो कुछ भी किया जा रहा है काफी परेशान करने वाला है। मेरा मानना है कि धार्मिक आतंकवाद तथा इस्लामिक कट्टरवाद की ताकतों को और अधिक बढ़ावा देना दीर्घकाल में उसके अपने लिए ही घातक साबित होगा। इस्लामाबाद के सामने आज मुख्य चुनौती अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने की है। इतनी ही महत्वपूर्ण है अनपढ़ता तथा अल्प विकास के खिलाफ लड़ाई। 

इस्लामिक बम बनाने की बातें करना आतंकवाद के पक्ष में संतुलन बनाएगा लेकिन यह लोगों को जीवन की आधारभूत जरूरतें उपलब्ध नहीं करवा सकता जैसे कि भोजन, पानी, आवास तथा कपड़े। इसके साथ ही युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार पैदा करने होंगे। इस्लामाबाद में यह एहसास करने की जरूरत है कि कट्टरवाद एक जानलेवा खेल है। जब सत्ता पाने के लिए इसे बेलगाम छोड़ दिया जाता है तो यह भयानक मोड़ ले लेता है। दूसरी ओर भू-राजनीतिक हकीकतों की अधिक सकारात्मक समझ इस्लामाबाद के कुलीन वर्ग को तर्कपूर्ण चीजों में मदद कर सकती है। 

आज पाकिस्तान ‘नो-विन’ स्थिति में है। यह ऐसा ही बना रहेगा जब तक कि यह अपने निकटतम पड़ोसी भारत के साथ आक्रामकता तथा शत्रुतापूर्ण व्यवहार को नहीं बदलता। मैं आशा करता हूं कि शहबाज शरीफ मेरी बातों पर गौर करेंगे तथा भारत के साथ दुश्मनी के खतरनाक रास्ते को नहीं अपनाएंगे। नए प्रधानमंत्री घाटी में बदलती स्थिति को समझे बिना कश्मीर की बात करते हैं। कश्मीर बारे सच्चाई उतनी साधारण नहीं है जितनी कि पाकिस्तान सोचता है। अतीत में वे आत्मनिर्णय के अधिकार तथा जनमत संग्रह की बात करते थे। 

समय बदल गया है। अब हम कश्मीर को धार्मिक कट्टरवाद के मायनों में नहीं देख सकते। जो भी हो यह पूछा जा सकता है कि किसने उन्हें कश्मीरियों बारे बोलने का अधिकार दिया? क्या ऐसी सोच को इस तथ्य से बल मिला है कि घाटी में रहने वाले अधिकांश लोग उनके धर्म के हैं? यदि ऐसा है तो क्या वे भारत में बाकी मुसलमानों के बारे में बोलने का भी दावा करेंगे? यह पूछा जा सकता है कि कैसे बेलगाम बोलना पाकिस्तानियों की मदद कर सकता है? क्या वे एक अन्य विभाजन चाहते हैं या एक अन्य साम्प्रदायिक सर्वनाश अथवा खून-खराबा। निश्चित तौर पर उपमहाद्वीप में शांति तथा सामंजस्य के समाधान का यह भारत का विचार नहीं है। 

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। इसलिए यह कभी भी साम्प्रदायिक तथा धार्मिक कारणों से किसी देश का आगे विभाजन तथा उप-विभाजन का हिस्सा नहीं बनेगा। जो भी हो उप-महाद्वीप को विभाजन के सदमे से बाहर आना होगा। आधारभूत तथ्य जिसे पाकिस्तानी नेताओं को हमेशा अपने दिमाग में रखना होगा, वह यह कि किन्हीं भी परिस्थितियों में कभी भी भारतीय अधिकारी एक ऐसे फार्मूले को स्वीकार नहीं करेंगे जो भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आधारशिला तथा इस महान देश के उदार सभ्यतागत मूल्यों को कमजोर करता हो।-हरि जयसिंह
 


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