इमरान-शहबाज की नूराकुश्ती में पाक विवेकहीनता का रंगमंच बन कर रह गया

punjabkesari.in Friday, Apr 22, 2022 - 05:23 AM (IST)

पिछले कुछ हफ्तों के दौरान पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में अपदस्थ प्रधानमंत्री इमरान खान और नवनियुक्त प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके समर्थकों के बीच एक ऊंची आवृत्ति के विवाद का बोलबाला रहा है। बदतमीजी का एक स्पर्श देते हुए, इमरान ने पद से हटाए जाने के हफ्तों पहले अपनी जान को खतरा होने की बात कही थी। उन्होंने एक ‘पत्र’ तैयार किया जिसमें कथित तौर पर अमरीका की ‘साजिश’ का विवरण था, जो उन्हें वाशिंगटन के लिए ‘अस्वीकार्य’ होने के कारण बाहर करने के लिए थी। 

इमरान के लिए अब करो या मरो की स्थिति है। उन्हें शक्तिशाली सेना द्वारा प्रधानमंत्री के रूप में ‘चयनित’ किया गया था। लेकिन वह यह सोचकर भ्रमित हो गए कि वह सेना को वीटो कर सकते हैं और उसके क्षेत्र के मामलों में हस्तक्षेप करके जनरलों को अपनी मूर्खता से नाराज कर दिया। जैसे आई.एस.आई. प्रमुख लैफ्टिनैंट जनरल फैज हमीद के स्थानांतरण को रोकने की कोशिश करना, लेकिन सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने ऐसा नहीं होने दिया। 

पाकिस्तान में सेना प्रमुख आई.एस.आई. प्रमुख का चयन करता है और उस समय के प्रधानमंत्री केवल चयन को मंजूरी देते हैं। लेकिन इमरान ने वह कर दिखाया जो अकल्पनीय था। सबसे पहले उन्होंने बाजवा द्वारा चुने गए हमीद के उत्तराधिकारी की नियुक्ति में देरी की। फिर उन्होंने नए पदाधिकारी, लैफ्टिनैंट जनरल नदीम अंजुम का साक्षात्कार लेने पर जोर दिया। उन्होंने 20 दिनों तक जोर लगाया और फिर बिना चूं-चां के रास्ते पर आ गए। इस सार्वजनिक विवाद ने इमरान की किस्मत को लगभग सील कर दिया। 

जिस तरह से इमरान ने सऊदी अरब के साथ ‘पाक’ भूमि के भाग्य का मार्गदर्शन करने वाले वाशिंगटन के साथ संबंधों को नुक्सान पहुंचाया, उससे पाकिस्तानी सेना के अधिकारी भी नाखुश हैं, क्योंकि पाकिस्तानी 1947 में ब्रिटिश भारत से अलग होकर बनी अपनी मातृभूमि का वर्णन करना पसंद करते हैं। उस क्षति की भरपाई करना आसान नहीं होगा, खासकर जब तक इमरान मतपत्र की आगामी लड़ाई पर नजर रखते हुए अमरीका पर अपने हमलों में अडिग रहते हैं। बेशक इमरान और शहबाज के बीच कोई शारीरिक कुश्ती मैच नहीं हुआ, लेकिन उनके समर्थकों ने निराश नहीं किया। इस्लामाबाद के एक पांच सितारा होटल में आयोजित इफ्तार के दौरान इमरान की पार्टी, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पी.टी.आई.) और शहबाज के समर्थक (उनकी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज और सत्तारूढ़ गठबंधन में अन्य दलों से) मारपीट करने लगे। 

नैशनल असैंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के वक्त इमरान को छोड़ चुके सांसदों को अब पिटाई की धमकियां मिल रही हैं। अविश्वास प्रस्ताव से कुछ दिन पहले इमरान ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को चेतावनी दी थी कि अगर वह सत्ता से बाहर हो गए तो और अधिक ‘खतरनाक’ होंगे। लगभग अंतिम क्षण तक वह गरज रहे थे कि चाहे जो भी हो, नहीं छोड़ेंगे। वह अभी भी नई व्यवस्था को ‘पहचानने’ से इंकार करते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वियों को ‘चोर’ और ‘लुटेरे’ कहना जारी रखे हुए हैं। 

सेना, गैर-पी.टी.आई. दलों के साथ-साथ अमरीकी प्रशासन ने भी साजिश के सिद्धांत को गलत बताया है, लेकिन पूर्व क्रिकेटर से नेता बने इमरान को लगता है कि उनकी कहानी उन्हें फिर से सत्ता में ले आएगी। इस्लामवादियों की बदौलत पाकिस्तान के मानस में अमरीका विरोधी भावना समा गई है। पड़ोसी देश अफगानिस्तान में तालिबान के प्रदर्शन के बाद से यह उग्र हो गई है। यह विश्वास कि अमरीका ने उनकी कीमत पर भारत को गले लगाया है, ने पाकिस्तानियों को सबसे ज्यादा आहत किया है। इमरान अपने देश की इस प्राकृतिक दोष-रेखा का जमकर दोहन कर रहे हैं।

रिपोर्टों से पता चलता है कि उन्हें आम लोगों का बड़ा समर्थन मिल रहा है और उनकी रैलियों में अच्छी भीड़ इकट्ठी होती है। इतनी कि वह अपने समर्थकों के बीच बनाए गए ‘विक्टिम कार्ड’ की अपनी बनाई हुई गति को धीमा नहीं करने जा रहे। उनकी आक्रामक आवृत्ति ने पहले ही प्रभाव पैदा कर दिया है। शहबाज शरीफ ने खुद को इमरान की तुलना में भारत के मामले में एक अधिक तेज बाज के रूप में दिखाने के लिए उन्मत्त प्रयास करना शुरू कर दिया है और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर नीति की आलोचना इमरान की तुलना में अधिक तीखेपन से कर रहे हैं। वह कश्मीर के ‘मूल मुद्दे’ को हल करने की मांग के साथ भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंधों की अपनी इच्छा को छुपा रहे हैं।

शहबाज की हुकूमत कब तक चलेगी, यह देखना मुश्किल है। सार्वजनिक तौर पर सहयोगी दलों की खींचतान और दबाव उनकी सरकार के लिए आने वाले कठिन समय का संकेत है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि उनके 2 मुख्य सहारे, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पी.पी.पी.) के आसिफ अली जरदारी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जे.यू.आई.) के फजलुर्रहमान, शहबाज के जहाज को चलाने में कैसे कामयाब होते हैं। 

शहबाज शरीफ और वास्तव में उनका पूरा परिवार कथित भ्रष्टाचार और मनी लॉङ्क्षड्रग के मामलों का सामना कर रहा है। ये आरोप ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ का परिणाम हो सकते हैं, लेकिन जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उनके बड़े भाई नवाज शरीफ इलाज के लिए (चार महीने के लिए) अदालत द्वारा उन्हें देश छोडऩे की अनुमति दिए जाने के बाद से लंदन में आराम फरमा रहे हैं। वह अपने निर्वासन को समाप्त करने के लिए तैयार हैं, क्योंकि अब उनके भाई देश के खेवनहार हैं। लेकिन यह राजनीतिक परिदृश्य को और अधिक जीवंत बना सकता है क्योंकि इमरान शरीफ बंधुओं के हमलों को रोकने के लिए और अधिक जुझारू हो गए हैं, जिसमें पाकिस्तान विवेकहीनता का एक रंगमंच बन गया है।


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