सभी धर्मों के प्रति खुलेपन से होगा एक आदर्श समाज का निर्माण

punjabkesari.in Monday, Jan 29, 2024 - 07:08 AM (IST)

22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह ने भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना को चिह्नित किया, जो राजनीति, धर्म और पहचान को जोड़ती है। प्रतिष्ठा समारोह के अगले दिन 5,00,000 से अधिक लोगों ने रामलला की पूजा की और भीड़ को प्रबंधित करने के लिए लगभग 8,000 सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया था। भक्तों के लिए यह सपना सच होने जैसा था। राम मंदिर का भव्य उद्घाटन समारोह 3 हैक्टेयर के विशाल विस्तार में हुआ, जिसकी अनुमानित लागत 217 मिलियन अमरीकी डॉलर थी। नागर शैली में डिजाइन किए गए इस मंदिर में 46 दरवाजे हैं, जिनमें से 42 सोने से सजे हुए हैं। गहरे पत्थर से बनाई गई 1.3 मीटर की राम लला की मूर्ति को प्राण-प्रतिष्ठा समारोह प्राप्त हुआ, जो मूर्ति को जीवन देने का प्रतीक है। 

यह समारोह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था; इसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ थे। बिजनैस दिग्गजों, खेल से जुड़े लोगों और बॉलीवुड हस्तियों सहित सितारों से सजी अतिथि सूची के साथ, भाजपा का लक्ष्य अपना आधार मजबूत करना था। चुनावी मौसम से पहले का रणनीतिक समय चुनावी लाभ के लिए इस घटना का लाभ उठाने के इरादे को इंगित करता है। इस सब के बीच, राम राज्य का विचार एक बार फिर चर्चाओं में सामने आया है-एक आदर्श राज्य की कल्पना की गई है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसकी स्थापना भगवान राम के अयोध्या लौटने और उनके शासन की स्थापना के बाद हुई थी। 

महात्मा गांधी के लिए, राम राज्य एक शाब्दिक राज्य नहीं था बल्कि न्याय, समानता और सच्चाई पर आधारित एक आदर्श समाज का प्रतीक था। उन्होंने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जहां हर किसी को, पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, समान अधिकार और अवसर प्राप्त हों। एक ऐसा राम राज्य जिसमें मार्गदर्शक सिद्धांत अहिंसा हो। गांधी जी का मानना था कि यह स्वप्नलोक बाहरी ताकत से नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर नैतिक जागृति और आत्म-अनुशासन के माध्यम से आएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राम मंदिर का इतिहास विवादों में घिरा हुआ है, जो 19वीं शताब्दी का है। कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जिसका समापन 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हुआ, जिसने विवादित भूमि को सरकार द्वारा प्रशासित एक ट्रस्ट को सौंप दिया। 

चुनावी विचारों से परे, राम मंदिर भाजपा की दीर्घकालिक सांस्कृतिक परियोजना में महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन कि ‘राम भारत की आस्था हैं, राम भारत के विचार हैं’ एक नए सांस्कृतिक आख्यान को आकार देने में मंदिर की भूमिका को रेखांकित करता है। भाजपा का लक्ष्य मंदिर को नए भारत के प्रतीक के रूप में पेश करके राजनीतिक मानदंडों को फिर से परिभाषित करना है। राम मंदिर धार्मिक उत्साह और राजनीतिक रणनीति के प्रतीक के रूप में खड़ा है, जो इतिहास और राजनीति की सीमाओं को पार करते हुए एक जटिल कहानी का प्रतीक है। 

चुनावों, सांस्कृतिक पहचान और भारत के विचार पर इसका प्रभाव चल रही बहस का विषय बना हुआ है। चूंकि मंदिर भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य का केंद्र बिंदू बन गया है, इसकी विरासत और प्रभाव आने वाले वर्षों में राष्ट्र के पथ को आकार देगा। इस्लामाबाद स्थित भौतिक विज्ञानी और लेखक परवेज हूडभोय ‘द डॉन’ में लिखते हैं ‘‘फिर भी, मेरे लिए, जो कि भारत में कभी-कभार ही आता है, धर्मनिरपेक्षता का तेजी से पीछे हटना एक आश्चर्य है। 20  साल पहले, बेंगलुरु में जवाहरलाल नेहरू इंस्टीच्यूट फॉर एडवांस्ड रिसर्च का दौरा करते समय, मैं आधारशिला पर लिखे नेहरू के शब्दों से चकित हो गया था  मैंने भी विज्ञान के मंदिर में पूजा की है।’’ लेकिन मैं ‘पूजा’ और ‘मंदिर’ को आधुनिक विज्ञान या नेहरू से जुड़े वैज्ञानिक स्वभाव के साथ मेल नहीं खाता। 

मेरे मेजबान समझाने के लिए दौड़ पड़े। उन्होंने कहा, विज्ञान का तीर्थ, वास्तव में प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों के लिए एक रूपक संकेत था। वे गर्व से दावा करते थे कि नेहरू नास्तिक थे और कभी मंदिर नहीं गए। बाद में, मैंने पाया कि वह वास्तव में मंदिरों के साथ-साथ मस्जिदों में भी गए थे। इसके अलावा, जैसा कि उनकी जेल डायरी ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में धर्म के बारे में उनका दृष्टिकोण काफी सूक्ष्म है। हुडभोय का धर्मनिरपेक्षता में गिरावट का अवलोकन राम मंदिर के निर्माण और राम राज्य के विचार को लेकर चल रही बहस से मेल खाता है। यह इस बात पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है कि कैसे धर्म, विज्ञान और राजनीति धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों में योगदान करते हैं या उन्हें चुनौती देते हैं जो भारतीय लोकाचार का मूलभूत पहलू रहे हैं। 

जैसा कि गांधी जी ने एक बार कहा था, ‘‘मेरा हिंदू धर्म मुझे सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाता है। इसमें राम राज्य का रहस्य निहित है,’’ धार्मिक सहिष्णुता और समावेशिता की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया। इस आदर्श समाज का निर्माण किसी मंदिर से नहीं बल्कि हमारे दिलों के भीतर और सभी धर्मों के प्रति खुलेपन से शुरू होता है। यह सामूहिक परिवर्तन का आह्वान है, जहां रामराज्य की यात्रा सभी धर्मों को अपनाने से शुरू होती है।-हरि जयसिंह
 


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