एन.आर.सी. : सरकार ने असम से ‘सबक’ नहीं सीखा

punjabkesari.in Thursday, Sep 05, 2019 - 12:38 AM (IST)

असम में 3.12 करोड़ की आबादी में से लगभग 19 लाख लोग राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एन.आर.सी. की सूची से बाहर हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अनेक सालों से चल रही इस कवायद में लगभग 1600 करोड़ रुपए के खर्चे के बाद नतीजा टायं-टायं फिस्स ही रहा। एन.आर.सी. के नतीजों से सत्तारूढ़ दल भाजपा, विपक्षी कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों समेत सभी पक्ष नाखुश हैं। असम में किए गए एन.आर.सी. के ‘ट्रायल रन’ की असफलता से सबक सीखने की बजाय इसे दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और हरियाणा जैसे राज्यों में लागू करने की बयानबाजी शुरू हो गई है। 

आंकड़े मेल नहीं खाते
संसद और विधानसभा में मंत्रियों ने बयानों से असम में घुसपैठ के संकट की भयावह तस्वीर बताई थी, जो अब एन.आर.सी. के आंकड़ों से मेल नहीं खाती है। कांग्रेसी नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने वर्ष 1992 में 30 लाख, कम्युनिस्ट नेता और तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने वर्ष 1997 में 40 लाख, कांग्रेसी नेता और केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने वर्ष  2004 में 50 लाख और वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह ने असम में 40 लाख घुसपैठियों की मौजूदगी का दावा किया था। 

असम में एन.आर.सी. रजिस्टर बनाने की शुरूआत 2013 से हुई, जिसकी 2017 की प्राथमिक रिपोर्ट में लगभग 1.39 करोड़ लोगों को बाहर रख दिया गया था। पिछले साल जुलाई 2018 की ड्राफ्ट एन.आर.सी. में विदेशियों की संख्या घटकर लगभग 41 लाख हो गई। असम के मंत्री और भाजपा नेता हेमंत बिस्व सरमा के अनुसार, सही पुनरीक्षण होने पर 19 लाख में से सिर्फ 9 लाख लोग ही एन.आर.सी. से बाहर यानी विदेशी माने जाएंगे। 

असम में घुसपैठियों की संख्या का गुब्बारा फटने के बाद अब देश भर में शरणाॢथयों और घुसपैठियों के आंकड़ों पर भी सवालिया निशान लगने लगे हैं। केन्द्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने देश में घुसपैठियों की संख्या 2 करोड़ बताई थी लेकिन अनेक नेता भारत में 4 करोड़ विदेशी घुसपैठियों का दावा करते हैं। असम में एन.आर.सी. की अंतिम लिस्ट से राजनेताओं के साथ खुफिया एजैंसियों के दावों पर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं। राजनेताओं की उदासीनता और अफसरशाही के निकम्मेपन की वजह से आधार और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को समन्वित तौर पर लागू नहीं किया गया, जिससे वित्तीय बोझ के साथ प्रशासनिक अराजकता भी बढ़ रही है। 

एन.आर.सी. को लागू करने की प्रक्रिया में विवाद की वजह से संख्या में कई गुना का हेर-फेर हो रहा है। असम के मंत्री हेमंत बिस्व सरमा के अनुसार एन.आर.सी. प्रक्रिया के दौरान शरणार्थी सर्टीफिकेट को मान्यता नहीं दिए जाने की वजह से लाखों ङ्क्षहदू बेवजह एन.आर.सी. से बाहर हो गए, परन्तु उन दस्तावेजों की सत्यता और सत्यापन पर स्थानीय नेताओं द्वारा सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं। आसू और असम पब्लिक वक्र्स (ए.पी.डब्ल्यू.) संगठन के नेताओं के अनुसार 10 दस्तावेजों की बजाय 15 दस्तावेजों को मान्यता देने की वजह से लाखों लोगों को गैर-कानूनी तरीके से एन.आर.सी. में शामिल कर लिया गया है। 

हिंदुओं के लिए नागरिकता की मांग
संविधान के अनुसार धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता, इसीलिए एन.आर.सी. फॉर्म में धर्म का कोई कॉलम नहीं रखा गया था परन्तु भाजपा इस मुद्दे पर राष्ट्रवाद की गुगली खेलते हुए, शरणार्थी हिन्दुओं के लिए भारतीय नागरिकता की मांग कर रही है, जबकि राज्य के माटीपुत्र नेता, असम समझौते के तहत हिन्दू और मुस्लिम सभी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग कर रहे हैं।  हिन्दू, जैन, बौद्ध और ईसाइयों को शरणार्थी मानते हुए उन्हें नागरिकता देने के लिए भाजपा सरकार ने पिछले कार्यकाल में लोकसभा में नागरिकता कानून पारित कराया था। अगली जनगणना सन् 2021 में होगी, जिसके साथ अब पूरे देश में एन.आर.सी. लागू करने की बात गृहमंत्री अमित शाह द्वारा की जा रही है। इस मुद्दे पर फिर से पेंच नहीं फंसे, इसलिए संघ परिवार द्वारा नए नागरिकता कानूनों को तुरंत बनाने की मांग भी हो रही है। 

आजादी के बाद भारत में सन् 1951 में पहली बार जनगणना के साथ असम व देश के अन्य राज्यों में एन.आर.सी. यानी भारतीय नागरिकता का रजिस्टर बनाया गया। बंगलादेश युद्ध के बाद लाखों शरणार्थियों और घुसपैठियों के असम में बसने से वहां अनेक हिंसात्मक आन्दोलन हुए। शांति के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा किए गए असम समझौते के अनुसार 25 मार्च, 1971 के बाद आए सभी विदेशियों को असम से निष्कासित किया जाना था। इस समझौते के बाद बड़ा कानूनी सवाल खड़ा हो गया, जिसका 35 साल बाद अभी तक समाधान नहीं हुआ है। 

भारत के अन्य राज्यों में वर्ष 1951 के पहले आए हुए सभी लोगों को भारतीय नागरिक माना जाता है, परन्तु असम में मार्च 1971 की समय सीमा निर्धारित की गई है। इसलिए नागरिकता कानून 1955 की धारा 6ए और मार्च 1991 की  समय सीमा को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मांग की गई। याचिकाकत्र्ताओं के अनुसार असम के लिए बनाए गए विशेष नियम से संविधान में दिए गए समानता और कानून के शासन के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। इस पर 13 बड़े सवाल उठाए गए, जिनकी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2018 में 5 जजों की संविधान पीठ बनाने का आदेश दिया था। सवाल यह है कि 13 मुद्दों पर संविधान पीठ का फैसला लिए बगैर, दो जजों के छोटे बैंच ने आपाधापी में एन.आर.सी. की प्रक्रिया को आगे बढ़ाकर लाखों लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ क्यों किया? 

मुकद्दमों का बोझ व अराजकता बढ़ेगी
अब आगे सवाल यह है कि एन.आर.सी. में जिनका नाम नहीं है, उन्हें कब और कैसे आदेश दिया जाएग? क्या एन.आर.सी. समन्वयक को लिस्ट बनाने के साथ आदेश पारित करने का भी अधिकार है? आदेश के बगैर पीड़ित लोग विदेशियों के लिए बनाए गए ट्रिब्यूनल में अपील कैसे करेंगे? सवा तीन करोड़ मुकद्दमों के बोझ से दबी अदालतों की व्यवस्था इन नए मामलों का बोझ कैसे उठाएगी? फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एन.आर.सी. में अनेक घुसपैठिए शामिल हो गए हैं जबकि भारतीय नागरिकों को एन.आर.सी. में शामिल होने के लिए  लम्बी लड़ाई लडऩी होगी। 

दस्तावेजों का अनुवाद, कोर्ट फीस, वकीलों की फीस समेत अनेक खर्च और मुकद्दमों के जंजाल में घुसपैठियों के साथ भारतीय नागरिकों को भी पिसना होगा। एन.आर.सी. से बाहर किए गए लोगों को राज्य सरकार ने विधिक सहायता मुहैया कराने का आश्वासन दिया है तो सरकार के खर्चे पर सरकार के खिलाफ अब अदालतों में संग्राम कैसे होगा? संविधान के अनुसार विदेशी घुसपैठिए को भारतीय नागरिकता और अन्य अधिकार नहीं दिए जा सकते। इसके बावजूद असम के मुख्यमंत्री और केन्द्रीय गृह मंत्रालय एन.आर.सी. से बाहर किए गए लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई से इंकार क्यों कर रहे हैं? 

कई लाख रोहिंग्या अवैध तौर पर घुसपैठ करके भारत के विभिन्न राज्यों में बस गए और उनमें से अधिकांश लोगों ने आधार और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज हासिल कर लिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने रोङ्क्षहग्याओं को निष्कासित करने पर अभी तक कोई रोक नहीं लगाई है, इसके बावजूद सरकार अभी तक किसी भी रोङ्क्षहग्या को भारत से बाहर नहीं भेज पाई है। मार्च 2019 के आंकड़ों के अनुसार असम में 1.17 लाख लोगों को विदेशी नागरिक घोषित करने के बाद डिटैंशन कैम्पों में रखा गया है। एन.आर.सी. से बाहर किए हुए लोग यदि घुसपैठिए साबित हो भी गए तो बंगलादेश उन्हें स्वीकार नहीं करेगा। तो क्या लाखों लोगों को सरकारी खर्चे पर डिटैंशन कैम्प में रखा जाएगा? एन.आर.सी. मसले पर लोगों की नागरिकता के साथ सरकार और अदालतों की व्यवस्था पर भी अनेक सवाल खड़े हो गए हैं?-विराग गुप्ता (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
1


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News