‘...अब श्वेत तथा अश्वेत की जुगलबंदी’

punjabkesari.in Monday, Nov 09, 2020 - 03:40 AM (IST)

सुप्रीमकोर्ट, जिसमें कि डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी द्वारा ज्यादा से ज्यादा न्यायाधीशों की नियुक्तियां की गई थीं, के माध्यम से अपनी असली निराशा में फिर से चुनाव करवाने की उम्मीदें जिंदा रखी हैं। इसके लिए कार्रवाई सोमवार को शुरू होगी जिसका मकसद अमरीकी राष्ट्रपति चुने गए जो बाइडेन के लिए अवरोधक पैदा करना है जिनके लिए  270 चुनावी वोटों (538 में से) का अपेक्षित आंकड़ा हासिल करना था ताकि अमरीका के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर सत्ता पर विराजमान हो सके। इसकी संभावना नहीं है कि भारत के जो ट्रम्प प्रशासन के साथ निकट संबंध थे वह नए राष्ट्रपति बाइडेन से भी वैसे ही स्थापित हो सकें। 

विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत तथा अमरीका में संबंध मूलभूत से आपसी विश्वास, लाभों, मजबूती तथा उत्साह सहित संस्थागत ढांचे के साथ आधारित हैं। सैन्य समझौते जिसके तहत संवेदनशील सैटेलाइट डाटा को आपस में बांटना  के अलावा चीन के साथ सीमा गतिरोध इत्यादि मुद्दों को भी बाइडेन के प्रशासन में और मजबूती प्रदान करना है। चुनावी प्रचार के दौरान जो बाइडेन का संदेश स्पष्ट था कि भारत-अमरीका सहयोग उनके प्रशासन की प्रमुख प्राथमिकता होगी। बाइडेन ने यह भी कहा कि वह ट्रम्प द्वारा लागू किए गए एच 1 बी वीजा के अस्थायी स्थगन को भी खत्म करेंगे। 

बाइडेन ने और ज्यादा उदार आव्रजन नीति लागू करने का संकेत भी दिया। बाइडेन ने आगे कहा कि भारत के साथ एक कूटनीतिक सहयोग अनिवार्य तथा महत्वपूर्ण है। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें गर्व है कि उन्होंने एक सीनेटर के तौर पर भारत-अमरीका सिविल न्यूक्लियर डील को अमरीकी कांग्रेस के माध्यम से पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। मूल पहलुओं को देखा जाए तो इस डील ने वास्तव में द्विपक्षीय संबंधों को बदल कर रख दिया।

अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों में भारत में पूर्व अमरीकी राजदूत रिचर्ड वर्मा ने तीन अन्य प्रमुख भारतीय-अमरीकी लोगों के साथ मिलकर आप्रवासी भारतीयों का समर्थन हासिल करने के लिए जमीन को तैयार किया और बाइडेन के लिए मत हासिल करने में मदद की। सुरक्षा परिषद में शामिल होने के लिए भारत के दावे के बारे में बाइडेन सकारात्मक दिखाई दे सकते हैं जिसमें 15 सदस्य हैं। सुरक्षा परिषद में शामिल होने के भारतीय दावे का चीन ने विरोध किया था। 

विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मोदी के निकट संबंध बाइडेन की अगले 4 वर्षों की विदेश नीति से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। ट्रम्प काल के दौरान भारत अपने मित्र देशों के साथ खड़ा रहा है। प्रत्येक राष्ट्र से उसने द्विपक्षीय हितों की सुरक्षा की है। ऐसे राष्ट्र चीन के खिलाफ भारत के साथ खड़े रहे। भारत के साथ हाल ही में हस्ताक्षरित रक्षा समझौतों को भी बाइडेन बिगाडऩा नहीं चाहेंगे। 

ट्रम्प द्वारा प्रोत्साहित इस्लाम फोबिया से भी बाइडेन की कूटनीति दूर रहना चाहेगी। अलग-थलग करने की नीति जो ईरान पर लागू की गई उससे भी बाइडेन बचना चाहेंगे ताकि ईरान के साथ वर्तमान गतिरोध वाला व्यवहार बदला जा सके। अमरीका तथा ईरान के साथ रिश्तों में सुधार होने से भारत को इसका फायदा मिलेगा। हालांकि ट्रम्प प्रशासन ने भारत को इस बात के लिए बाध्य किया था कि वह सस्ता तेल और गैस ईरान तथा वैनेजुएला से न खरीदे। भारत को अमरीका से महंगा तेल तथा गैस खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ा जिससे हमारे हितों को चोट पहुंची। यदि भारत ईरान से तेल का निर्यात पुन: शुरू करना चाहता है तो बाइडेन इसके लिए कोई अड़चन नहीं डालेंगे। 

विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व में चीन के साथ जो बाइडेन भिडऩा पसंद करेंगे। वह ट्रम्प के कुछ विचारों को गले लगाएंगे मगर उनके स्टाइल तथा उनके उपायों को नकारेंगे। मगर भारत के बारे में हमेशा दिमाग में ध्यान रहेगा। इस कारण निकट संबंधों को बिगाडऩा नहीं चाहेंगे। बाइडेन के सलाहकार जैफ्रे प्रैसकाट ने कहा कि पेइचिंग शायद जो बाइडेन को लेकर असहज महसूस करेगा क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि बाइडेन सहयोगियों के साथ कार्य करेंगे। श्वेत तथा अश्वेत (बाइडेन तथा कमला हैरिस) की जुगलबंदी अमरीका में ट्रम्प प्रशासन द्वारा नस्लभेदी मुद्दों से क्षतिग्रस्त हुई अमरीका की छवि को सुधारने की कोशिश करेगी।-के.एस. तोमर 
 


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