अब कश्मीर में धारा 370 हटाने का वक्त

punjabkesari.in Thursday, Jun 21, 2018 - 04:27 AM (IST)

जम्मू -कश्मीर में भाजपा-पी.डी.पी. गठबंधन का बोझ अंतत: वहां की जनता और सुरक्षा बलों को उठाना पड़ा था। गठबंधन टूटने पर महबूबा मुफ्ती के अलावा किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि न केवल जम्मू-कश्मीर के देशभक्त लोग बल्कि शेष देश के कश्मीर प्रेक्षक भी आतंकवाद और पाकिस्तान के प्रति गहरी हमदर्दी रखने वाली पी.डी.पी. के साथ भाजपा का गठबंधन आश्चर्यजनक, अस्वाभाविक और देश के प्रति निष्ठा रखने वालों का मनोबल गिराने वाला समझ रहे थे। हाल ही में राइफल मैन औरंगजेब और राइजिंग कश्मीर के सम्पादक शुजात बुखारी की निर्मम हत्या ने शायद भाजपा के सब्र की सीमा लांघ दी और जैसा महबूबा मुफ्ती की प्रतिक्रिया से जाहिर है, उनको बताए बिना दिल्ली में भाजपा महासचिव  राममाधव ने गठबंधन तोडऩे की घोषणा कर दी। 

मामला एकदम गुप्त रखा गया। जम्मू-कश्मीर के सभी मंत्रियों को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने जरूरी वार्ता के लिए दिल्ली बुलाया। महबूबा मुफ्ती को भनक तक नहीं लगी। वास्तविकता यह है कि कश्मीर में जिस प्रकार हालात बिगड़ रहे थे और भाजपा मंत्रियों की स्थिति लगभग अप्रभावी बनाने में महबूबा पूरी कोशिश कर रही थीं, उसे देखते हुए अनुमान है कि गठबंधन तोडऩे का निर्णय बहुत पहले हो चुका होगा। एस.एस.पी. आयूब पंडित, फौजी अफसर लै. उमर फैयाज, पत्थरबाजों के बढ़ते हौसले, सेना और अद्र्धसैनिक बलों पर जेहादी पत्थरबाजों के खुले बेरोक-टोक आक्रमण और हाल ही में औरंगजेब व शुजात बुखारी की नृशंस हत्याओं ने स्पष्ट कर दिया कि महबूबा की आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में कोई दिलचस्पी नहीं है। 

कश्मीर में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार हर दिन, हर फैसले से महबूबा मुफ्ती पी.डी.पी. के वोट बैंक को सींच रही थीं। वह आतंकवादी-पत्थरबाज-पाकिस्तान समर्थक तत्वों को यह बताना चाहती थीं कि भाजपा उनके सहारे चल रही है और वह भाजपा की नीतियां कतई लागू नहीं होने देंगी। इधर महबूबा अपना परम्परागत वोट बैंक बचा रही थीं, उधर हर दिन जम्मू का भाजपा का समर्थक क्षेत्र गुस्से तथा आक्रोश में उबल रहा था और भाजपा का परम्परागत वोट बैंक दरक रहा था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शहादत से सींची गई पार्टी महबूबा के आतंकवाद समर्थक विकास रहित शासन तले सब कुछ खोने लगी थी-विश्वास, साख, प्रतिष्ठा और राजनीतिक समर्थन। 

हालांकि ईमानदारी की बात है, भाजपा ने अपनी क्षति की कीमत पर भी गठबंधन चलाने की पूरी कोशिश की। कश्मीर के साथ अब ये गठबंधन के प्रयोग समाप्त कर एक बड़ी मुहिम के तहत वहां से अलगाववादियों, जेहादियों, पत्थरबाजों की पूर्ण समाप्ति का वक्त आ गया है। सेना व अन्य सुरक्षा बलों को कश्मीर में पनप रहे कायर आतंकवादियों को समाप्त करने की खुली छूट मिले और जो लोग ज्यादातर कश्मीरी शांति से भारतीय के नाते तरक्की की जिंदगी जीना चाहते हैं उनको संरक्षण तथा विकास का पूरा अवसर मिलना चाहिए। 

महबूबा मुफ्ती ने 213 करोड़ बाढ़ राहत कोष का और 300 करोड़ बाल तथा विकास महिला कल्याण का खर्च ही नहीं किया। इसी प्रकार हजारों अन्य योजनाएं अधूरी रहीं। एक ओर न काम करने का आतंक दूस..री ओर गोली की दहशत। यदि भाजपा अब भी गठबंधन नहीं तोड़ती तो उसे केवल जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में क्षति उठानी पड़ती। वास्तव में महबूबा की नजरों में सिवाय कश्मीर घाटी के छोटे से समर्थक इलाके के अलावा और कुछ था ही नहीं। जम्मू-कश्मीर केवल एक प्रांत का या चुनावी राजनीति का विषय नहीं है, यह सम्पूर्ण देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा से जुड़ा है। भारतीय संसद में पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को मुक्त कराने के लिए सर्वदलीय सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया हुआ है। अब कश्मीर में निर्णायक कदम उठा कर वहां से स्थायी तौर पर आतंक समाप्त करने तथा विभाजक धारा 370 हटाने का वक्त आ गया है।-तरुण विजय


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