अब अमरीका से जी.एस.पी. संबंधी नई चुनौती

punjabkesari.in Sunday, May 05, 2019 - 02:26 AM (IST)

हाल ही में अमरीका के 25 सांसदों ने अमरीका व्यापार प्रतिनिधि राबर्ट लाइटहाइजर को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि भारत को व्यापार में दी गई सामान्य तरजीही व्यवस्था (जी.एस.पी.) के तहत जो शुल्क मुक्त आयात की सुविधा समाप्त करने के आदेश की अवधि 3 मई 2019 को खत्म हुई है, उसे समाप्त न करते हुए आगे भी जारी रखा जाना चाहिए। 

इन सांसदों ने कहा है कि भारत में लोकसभा चुनाव 2019 के बाद नई सरकार गठित होने के पश्चात उससे इस महत्वपूर्ण मसले पर नए सिरे से बात करने का अवसर मिलेगा। इन सांसदों ने कहा है कि जी.एस.पी. भारत के साथ-साथ अमरीका के लिए भी लाभप्रद है। इस व्यवस्था से अमरीका में निर्यात और आयात पर निर्भर नौकरियां सुरक्षित बनी रहेंगी। इस व्यवस्था के खत्म होने से वे अमरीकी कंपनियां प्रभावित होंगी, जो भारत में अपना निर्यात बढ़ाना चाहती हैं। 

गौरतलब है कि विगत 4 मार्च को अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमरीका की संसद को एक पत्र के जरिए भारत को दी गई जी.एस.पी. व्यवस्था को समाप्त करने के अपने इरादे से अवगत कराया था। ट्रम्प ने कहा कि भारत के साथ व्यापार एक मूर्खतापूर्ण कारोबार है और इस पर अमरीकी अधिकारियों द्वारा गौर किया जाना चाहिए। 

ट्रम्प का कहना है कि भारत अमरीका पर बहुत अधिक शुल्क लगाने वाला देश है। उन्होंने कहा कि यद्यपि भारत उनका अच्छा मित्र है, लेकिन वह कई मदों पर 100 फीसदी से अधिक शुल्क वसूल रहा है। ऐसे में अब अमरीका भारतीय उत्पादों पर जवाबी शुल्क (मिरर टैक्स) लगा सकता है। यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि भारत सरकार द्वारा विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के यूजर डाटा को भारत में ही रखने के लिए नियम बनाने के मद्देनजर भी ट्रम्प ने अमरीकी कम्पनियों के हित में शुल्क बढ़ाने का मन बनाया है। यह भी प्रतीत हो रहा है कि इस समय डोनाल्ड ट्रम्प ट्रेड वॉर का रुख चीन के बाद भारत की ओर मोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। 

ज्ञातव्य है कि वर्ष 1976 से जी.एस.पी. व्यवस्था के तहत विकासशील देशों को दी जाने वाली आयात शुल्क रियायत के मद्देनजर करीब 2000 भारतीय उत्पादों को शुल्क मुक्त रूप से अमरीका में भेजने की अनुमति मिली हुई है। इस व्यापार छूट के तहत भारत से किए जाने वाले करीब 5.6 अरब डॉलर यानी 40 हजार करोड़ रुपए के निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगता है। 

आंकड़े बता रहे हैं कि जी.एस.पी.के तहत तरजीही के कारण अमरीका को जितने राजस्व का नुक्सान होता है, उसका एक चौथाई भारतीय निर्यातकों को प्राप्त होता है। लेकिन अमरीका द्वारा भारत से व्यापार में मांगी जा रही छूट उसके द्वारा जी.एस.पी. वापस लिए जाने से भारत को होने वाले राजस्व नुक्सान की तुलना में काफी ज्यादा है। जी.एस.पी. वापस लिए जाने से भारत को करीब 19-24 करोड़ डॉलर सालाना के राजस्व की हानि होगी, जबकि जी.एस.पी. बरकरार रखे जाने के बदले अमरीका द्वारा आई.टी. उत्पादों पर जो छूट मांगी जा रही है, उसकी कीमत करीब 3.2 अरब डॉलर होगी। 

इतना ही नहीं, अमरीका ने भारत द्वारा चिकित्सा उपकरणों पर निर्धारित की गई कीमत सीमा का भी विरोध किया है। भारत में इन चिकित्सा उपकरणों का 7 अरब डॉलर का बाजार है। यह बाजार आयुष्मान भारत के पूरी तरह अमल में आने के बाद तेजी से बढ़कर 12 अरब डॉलर पर पहुंच जाने का अनुमान है। वहीं अगले 2-3 वर्षों में इसके 20 अरब डॉलर पर पहुंच जाने की आशा है। 

नि:संदेह एक ओर जब अमरीका भारत का तरजीही प्राप्त दर्जा खत्म करने के अंतिम सोपान पर है, वहीं दूसरी ओर अमरीका व चीन के बीच जारी कारोबार वार्ता के दौरान चीन के कूटनीतिक दृष्टिकोण के कारण ट्रेड वॉर के समाप्त होने की संभावना बन गई है। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इस ट्रेड वॉर के खत्म होने के पीछे अमरीका की कोई बड़ी उदारता नहीं है बल्कि उसकी मजबूरी भी है। इससे अमरीकी उपभोक्ताओं तथा अमरीकी कंपनियों को अधिक आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है। ऐसे में भारत-अमरीका के बीच कारोबारी तनाव को कम करने के लिए अमरीका के साथ वाणिज्यिक वार्ता को आगे बढ़ाना होगा और एक उचित दृष्टिकोण प्रस्तुत करना होगा। 

नि:संदेह भारत का यह एक सराहनीय कूटनीतिक कदम है कि इसने अमरीका से आयातित बादाम, अखरोट और दालों समेत 29 वस्तुओं पर जवाबी शुल्क लगाने की समय सीमा एक बार फिर 2 मई से बढ़ाकर 16 मई, 2019 कर दी है।  इस परिप्रेक्ष्य में भारत अमरीका के साथ कारोबार संबंधों के तनाव को कम करने के लिए लचीला रुख अपनाते हुए अमरीका से आयात होने वाले उन्नत तकनीक से लैस स्मार्ट फोन, सूचना एवं संचार तकनीक से जुड़े विभिन्न उत्पादों पर कम आयात शुल्क लगाने की डगर पर आगे बढ़ सकता है। 

ऐसे में अब यदि वाणिज्यिक वार्ता और कूटनीतिक प्रयासों से अमरीका के साथ कारोबार तनाव खत्म करने की कोशिश को कामयाबी नहीं मिले तो भारत को अपने उद्योग-कारोबार और सांस्कृतिक मूल्यों के मद्देनजर अमरीका के अनुचित दबाव से बचना होगा। साथ ही भारत द्वारा कुछ कठोर रुख अपनाते हुए अमरीका से आयात होने वाले पूर्व निर्धारित उत्पादों पर आयात शुल्क आरोपित करना उपयुक्त होगा। अमरीका को याद करना होगा कि 1999 में पोखरण विस्फोट के बाद अमरीका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे लेकिन बाद में अमरीकी कंपनियों के हितों के मद्देनजर अमरीका ने स्वत: ही ये प्रतिबंध हटाए थे। ऐसे में अब अमरीका को भी इस बात को ध्यान में रखना होगा कि चीन की तरह भारत पर भी उसका दाव उलटा न पड़ जाए।-डा. जयंतीलाल भंडारी
                 


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