बहुत अच्छी नहीं रही एन.डी.ए. की कारगुजारी

punjabkesari.in Friday, Apr 26, 2019 - 04:39 AM (IST)

पिछले 5 वर्षों में एन.डी.ए. के निराशाजनक प्रदर्शन के बारे में क्या कहा जा सकता है? भाजपा नीत एन.डी.ए. की कार्य प्रणाली बेशक खराब रही है लेकिन यह कहना भी कठिन होगा कि कांग्रेस नीत यू.पी.ए. ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। 

यू.पी.ए. ने, निश्चित तौर पर, कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की थीं जिनमें शानदार आर्थिक वृद्धि और सूचना का अधिकार तथा सुनिश्चित ग्रामीण रोजगार मुख्य हैं लेकिन यू.पी.ए. प्राथमिक स्तर पर सब लोगों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने में असफल रही। इसके अलावा वह जाति प्रथा को भी पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाई। एन.डी.ए. क्यों असफल हुई, यह समझने के लिए हमें कुछ मुद्दों को देखना होगा। 

समस्या यह है कि एन.डी.ए. ने विभिन्न कमियों को सुधारने के लिए कदम नहीं उठाए  बल्कि उसने खाई को और चौड़ा कर दिया है। इसने जातिवाद को और बढ़ा दिया, इसने सब लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधा का प्रावधान नहीं किया तथा अपने चुनावी वायदों के विपरीत बेरोजगारी को बढ़ावा देकर गरीब लोगों के लिए नौकरी पाना और मुश्किल कर दिया (एन.डी.ए. के कार्यकाल में भारत पिछले आधी सदी में सबसे ज्यादा बेरोजगारी की तरफ बढ़ा)। 

एन.डी.ए. ने देश को बांटा
इस असफलता के साथ-साथ एन.डी.ए. नेताओं ने देश को साम्प्रदायिकता के आधार पर भी बांटा। भारत के नए शासकों ने अकादमिक संस्थाओं में लाल फीताशाही को बढ़ावा दिया, अभिव्यक्ति की आजादी को दबाया और असहमति जताने वालों को देशद्रोही मानते हुए जेल में डाला।  वास्तव में, हिन्दूवादी शासकों ने देश को गलत दिशा में धकेलने की कोशिश की है। 

सोची-समझी और प्रमाणित आर्थिक नीतियों पर चलने की बजाय हिन्दुत्व शासक ‘जादुई विकास’ के रास्ते पर चलने के लिए लालायित रहे-जैसे कि नोटबंदी द्वारा धन जुटाने और खुशहाली लाने का प्रयास किया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार की ओर से रखा गया काले धन को खत्म करने का उद्देश्य तो पूरा नहीं हुआ बल्कि इससे व्यापार और छोटे कारोबारियों को भारी नुक्सान पहुंचा। यदि जादू दिखाने का काम पी.सी. सरकार के पास ही रहने देते तो अच्छा होता। 

आजमाई हुई नीतियों पर चलने की जरूरत
भारत को असामान्य उपायों की बजाय उन आर्थिक नीतियों पर चलना होगा जिनसे दुनिया भर में अच्छे परिणाम हासिल हुए हैं। हमारी वास्तविक जरूरतों में दक्ष सार्वजनिक सेवाएं, निजी क्षेत्रों के लिए उचित प्रोत्साहन, सावधानीपूर्वक किया गया सार्वजनिक निवेश तथा विज्ञान और तकनीकी का विकास शामिल है। यूरोप और जापान ने 19वीं शताब्दी तथा दक्षिण कोरिया और चीन ने 20वीं शताब्दी में जो कुछ सीखा वह आज भारत के समक्ष उपलब्ध है। यदि हम प्रमुख आधुनिक अर्थशास्त्री एडम स्मिथ का अनुपालन करें तो आज भारत में विकास को प्रोत्साहित करने के लिए हमें केवल धनी लोगों को लाभ पहुंचाने की मानसिकता छोड़ कर सब लोगों के कल्याण पर ध्यान देना होगा। स्मिथ ने जहां बाजार अर्थव्यवस्था के समुचित उपयोग पर बल दिया था, वहीं आम जनता के लिए सार्वजनिक सेवाएं जैसे कि प्रारंभिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाने की बात कही थी जोकि सरकारें कर सकती हैं। 

जन कल्याण और उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए ये सुविधाएं उपलब्ध करवाना बहुत जरूरी हैं। चीन ने बाजार अर्थव्यवस्था का अच्छा उपयोग किया है लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि चीन ऐसा इसलिए कर पाया क्योंकि उसके पास शिक्षित श्रम बल और स्वस्थ जनसंख्या उपलब्ध थी जो दुनिया में जानी जाने वाली किसी भी वस्तु का निपुणता से उत्पादन कर सकती थी। 

आयुष्मान भारत की कमियां
हमारे यहां आयुष्मान भारत कार्यक्रम की काफी प्रशंसा की जाती है और यह कहा जाता है कि उसके माध्यम से लोगों को महंगी स्वास्थ्य सुविधा सस्ती दरों पर उपलब्ध करवाई जा रही है। लेकिन आयुष्मान भारत में सब लोगों के लिए बेहतर प्राथमिक सुविधा का प्रावधान नहीं है। यह एक बड़ी कमी है। वास्तव में अधिकतर लोगों की आयु घटाकर (सब के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए कुछ न करना) कुछ लोगों की आयु बढ़ाना (लाभ चाहने वाले प्राइवेट उद्योगों को रियायत देना) एक गलती है। एक अच्छी हैल्थ केयर के तहत सब लोगों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा का प्रावधान होना चाहिए। 

यू.पी.ए. पर उपेक्षा करने का आरोप लगाया जा सकता है जबकि एन.डी.ए. ने तो उन चीजों को पूरी तरह छोड़ दिया है जिनकी देश को इस समय जरूरत है। लगातार विकास के लिए एक समान दृष्टिकोण का होना जरूरी है। स्वास्थ्य सुविधा और आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों के मामले में भारत को बड़े रचनात्मक बदलाव की जरूरत है। 


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