अब स्कैम नहीं,स्कीमों का दौर

punjabkesari.in Friday, Mar 08, 2024 - 06:07 AM (IST)

‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ भारत की राजनीति रूपी क्रिकेट मैच में वर्ष 2014 में भाजपा की पारी में ओपनिंग बल्लेबाजी करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसी घोषणा के साथ अपने प्रथम कार्यकाल की शुरूआत की थी। विगत 10 वर्षों में उनके नेतृत्व में देश की राजनीति भारत की अर्थव्यवस्था को तेज गति से चलने और उडऩे वाली अर्थव्यवस्था बनाने में सफल सिद्ध हुई है। कांग्रेस तथा समय-समय पर उनके सहयोगी दलों ने जिस प्रकार देश के साधनों का दोहन किया उन्हें देखकर यह लगने लगा था कि भारत की अर्थव्यवस्था और भारत की सारी राजनीति ‘स्कैम’ अर्थात् भ्रष्टाचारों का पर्यायवाची बन चुकी है। 

भारत की इस स्कैम नीति का संक्षिप्त-सा उल्लेख करते हुए हमारा आध्यात्मिक देश उन भ्रष्टाचारों को भुला नहीं पाएगा जब 1950 के दशक में ही 120 लाख रुपए का मुंधरा घोटाला सामने आया तो उसके बाद 70 के दशक में नागर वाला कांड हो गया, 1980 के दशक में बिहार  में  चारा घोटाले ने ख्याति अर्जित की और इधर केन्द्र में बोफोर्स घोटाले में तो कांग्रेस ने अपनी सरकार खो दी। 1990 के दशक में इन घोटालों की संख्या में धड़ा-धड़ वृद्धि होने लगी। 

भारतीय स्टाक मार्कीट, स्टाम्प पेपर, मुम्बई का जल हाऊसिंग घोटाला, हवाला का घटना चक्र, मैच फिक्सिंग, प्रोविडैंट फंड घोटाला, मानेसर का भूमि घोटाला, लुधियाना सिटी सैंटर घोटाला, केन्द्र की सरकार बचाने के लिए कैश फॉर वोट घोटाला, कर्नाटक वक्फ बोर्ड की भूमि का घोटाला, महाराष्ट्र सिंचाई घोटाला, रेलवे की भॢतयों में 2013 का घोटाला, उसी वर्ष में हैलीकाप्टर खरीदने में रिश्वतखोरी, 2-जी घोटाला, नोएडा भूमि घोटाला तथा पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग में भॢतयों का घोटाला आदि के अतिरिक्त भी अनेकों छोटे-बड़े घोटाले इस देश के राजनीतिज्ञों की शान बन चुके थे। भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने तो यहां तक सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि केंद्र के हर एक रुपए में से नागरिकों तक केवल 15 पैसे ही पहुंचते हैं। इस से स्पष्ट है कि उस समय 85 प्रतिशत सरकारी खजाना लुटता ही रहा। 

वर्ष 2014 के बाद इस घोटाला परिदृश्य में केन्द्र सरकार के स्तर पर तो पूरी तरह शून्यता पैदा हो गई, क्योंकि सत्ता का ध्यान अब क्या खाया पर नहीं अपितु क्या बचाया और क्या बांटा पर था। वर्ष 2014 के बाद  नरेन्द्र मोदी जी ने सबसे पहले सारे देश को यह बताने का प्रयास किया कि अब तक की सरकारों ने इस देश में से क्या खाया। इसके बाद जब उन्होंने अपनी पारी की शुरूआत की तो अपनी मानसिकता को प्रकट करते हुए उन्होंने ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ को अपने कार्यों का मिशन बनाया। 

विगत 10 वर्षों में यदि खेती के क्षेत्र को देखें तो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, किसान मानधन, मिट्टी के स्वास्थ्य की योजना, प्रधानमंत्री केन्द्रीय सिंचाई योजना आदि के द्वारा हरित क्रांति के नए आयाम स्थापित किए गए हैं। मछली पालन में भी अब नीली क्रांति के नाम से इसे एक अंतर्राष्ट्रीय उद्योग की तरह विकसित कर दिया गया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्मान भारत योजना, स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, पोषण अभियान, जन-औषधि परियोजना आदि के द्वारा भारत के कोने-कोने में ग्रामीण स्तरों तक भी स्वास्थ्य की सुविधाओं के साथ-साथ स्वास्थ्य चेतना जागृत की जा रही है। शहरी विकास के क्षेत्र में अनेकों स्मार्ट शहर तथा करोड़ों आवास आबंटित किए गए हैं। ग्रामीण विकास के सम्बन्ध में मनरेगा को नए जोश और पूरी ईमानदारी के साथ लागू किया गया है। 

ग्राम सड़क योजनाओं, जल-जीवन मिशन, नदियों के संरक्षण और गांवों में स्वराज्य अभियान के द्वारा पंचायतों को आॢथक रूप से शक्तिशाली बनाना, आदर्श ग्राम योजना और स्वच्छ भारत के साथ-साथ डिजिटल विलेज जैसी योजनाओं के माध्यम से एक-एक गांव को राष्ट्र की प्रगति के साथ-साथ कदमताल करने के लिए सक्षम बना दिया गया है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना, कौशल विकास योजना, अटल पैंशन योजना, उज्ज्वला योजना, उजाला योजना, मातृ वंदना योजना, मुद्रा योजना, रोजगार प्रोत्साहन योजना, सुरक्षित मातृत्व, पुलिस बलों का आधुनिकीकरण, दीनदयाल अनत्योदय योजना, श्रम योगी मानधन, राष्ट्रीय समाजसेवा योजना तथा भूमि स्वामित्व योजना जैसे राष्ट्रव्यापी अभियानों ने देश के कोने-कोने तक इन अनेकों सामाजिक योजनाओं का लाभ ईमानदार से पहुंचाने का सफल प्रयास किया है।-अविनाश राय खन्ना (पूर्व सांसद)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News