भारत की धरती पर किसी भी सैन्य अड्डे की अनुमति नहीं देनी चाहिए

punjabkesari.in Sunday, Sep 24, 2023 - 04:21 AM (IST)

भारत 3 समुद्रों अर्थात अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के संगम पर स्थित है। ये सभी समुद्री क्षेत्र भारत के लिए विशेष महत्व रखते हैं जो दुर्भाग्य से पाकिस्तान और चीन की दोहरी चुनौतियों के कारण भूमि जुनून और इसी समुद्री अंधेपन से पीड़ित हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से पिछले 7 दशकों से अनिवार्य रूप से भूमि पर आधारित है। व्यापक हिंद प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा भारत की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसका नीला पानी भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए जीवन रेखा के रूप में काम करता है। जो 80 प्रतिशत से अधिक महत्वपूर्ण कच्चे तेल आयात के पारगमन की सुविधा प्रदान करता है और इसके बाकी अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसलिए भारत ऐतिहासिक रूप से हमेशा प्रतिबद्ध रहा है और इसकी वकालत की है कि हिंद महासागर शांति का क्षेत्र होना चाहिए। भारत हिंद महासागर और विशेषकर इसके क्षेत्र में विदेशी सैन्य अड्डों के खिलाफ रहा है।

16 दिसम्बर 1971 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यू.एन.जी.ए.) ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें हिंद महासागर को शांति क्षेत्र बनाने का आह्वान किया गया था। क्या भारत व्यापक हिंद प्रशांत क्षेत्र में सैन्य अड्डों के संबंध में और यहां तक कि अपनी धरती पर भी अपना रुख बदल रहा है? कम से कम भारत और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच हाल की संयुक्त विज्ञप्तियों को पढऩे से ऐसा प्रतीत होता है। संयुक्त राज्य अमरीका और भारत के 22 जून 2023 के संयुक्त वक्तव्य के पैराग्राफ 14 में कहा गया है कि अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री मोदी ने आगे तैनात अमरीकी नौसेना सम्पत्तियों के रख-रखाव और मुरम्मत के केंद्र के रूप में भारत के उभरने और मास्टरशिप मुरम्मत समझौतों के समापन का भी स्वागत किया। इससे अमरीकी नौसेना को मध्य यात्रा और आकस्मिक मुरम्मत के लिए अनुबंध प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए अनुमति मिलेगी। 

8 सितम्बर 2023 को भारत और अमरीका के संयुक्त वक्तव्य के पैराग्राफ 18 में भी यही सूत्रीकरण दोहराया गया था। इसमें कहा गया है कि, ‘‘नेताओं ने दूसरे मास्टरशिप मुरम्मत समझौते के समापन की सराहना की जिसमें सबसे हालिया समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।’’ अमरीकी नौसेना और मझगांव डॉक शिप बिल्डर्स लिमिटेड दोनों पक्षों ने अगस्त 2023 में आगे तैनात अमरीकी नौसेना सम्पत्तियों और अन्य विमानों और जहाजों के रख-रखाव और मुरम्मत के लिए एक केंद्र के रूप में भारत के उद्धव को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जताई। 11 जुलाई 2023 को दक्षिण भारत स्थित एक समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि, ‘‘अमरीकी नौसेना के युद्धपोतों की मुरम्मत 5 वर्ष के ऐतिहासिक मास्टर शिप यार्ड मुरम्मत समझौते के अनुसार चेन्नई के कट्टुपल्ली बंदरगाह पर लार्सन एंड टुब्रो के शिपयार्ड में होने की संभावना।’’ पिछले महीने अमरीकी नौसेना और लार्सन एंड टुब्रो के बीच हस्ताक्षर किए गए। वर्तमान में शिपयार्ड अमरीकी नौसेना के सिविल कमांड जहाजों के लिए मुरम्मत प्रदान कर रहा है। 

अमरीका के पास पहले से ही इंडो पैसेफिक के प्रशांत भाग में ‘हब और स्पोक’ गठबंधन की एक शृंखला है जो उत्तरी एशिया में जापान से शुरू होती है और दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, थाईलैंड को शामिल करते हुए आस्ट्रेलिया तक जाती है। इसका सिंगापुर और यहां तक कि ताईवान के साथ पूर्ण स्पैक्ट्रम सुरक्षा संबंध है। 10 सितम्बर 2023 को इसने 1955-1975 तक चले वियतनाम युद्ध की परेशान विरासत को पार करते हुए वियतनाम के साथ भी अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक सांझेदारी स्तर पर उन्नत किया। 

इंडो पैसेफिक के इंडो हिस्से में संयुक्त राज्य अमरीका के बहरीन, कतर, कुवैत, ओमान, यू.ए.ई., इसराईल और डिएगो मार्सिया में बेस हैं। इसका सऊदी अरब के साथ सुरक्षा संबंध है और तुर्की नाटो सहयोगी हैं। अमरीकी नौसेना का पांचवां और सातवां बेड़ा नियमित रूप से जापान से स्वेज नहर तक इंडो पैसेफिक में पारगमन और गश्त करता है। आस्ट्रेलिया, अमरीका, यूनाइटेड के बीच नव-गठित सुरक्षा समझौते (ए.यू.के.यू.एस.) का उद्देश्य दक्षिण चीन सागर की निगरानी करना और आस्ट्रेलिया जैसे अपने क्षेत्रीय सहयोगियों को परमाणु संचालित हमलावर पनडुब्बियों (एस.एस.एन.) सहित मूल्यवान तकनीक प्रदान करके सशक्त बनाना है। 

चीनी भी पिछले 2 दशकों में इंडो पैसेफिक में सैन्य ठिकानों की खोज और सुरक्षा के मामले में आक्रामक रहे हैं। चीनियों ने परिश्रमपूर्वक अफ्रीका के हार्न में जिबूती से लेकर पाकिस्तान में गवादर, श्रीलंका में हंबनटोटा, म्यांमार में कोको द्वीपों पर एक निगरानी स्टेशन, कम्बोडिया में एक नौसैनिक अड्डा बनाया है। चीन पश्चिम हिंद महासागर में और अधिक सैन्य अड्डे बनाने पर विचार कर रहा है। इसके साथ ही एक और नौसैनिक सुविधा अफ्रीका के अटलांटिक महासागर के किनारे बन रही है। 

शी जिनपिंग के बीजिंग में सत्ता संभालने के बाद से हिंद प्रशांत क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। भारत के पास दो विकल्प हैं या तो इंडो पैसेफिक में सुरक्षा समूहों और नैटवर्क के बड़े समूह में एक कनिष्ठ भागीदार बन सकता है जो अमरीका के अधीन है क्योंकि दोनों देशों की संबंधित रक्षा क्षमताओं में व्यापक अंतर को देखते हुए कभी भी समान सांझेदारी नहीं हो सकती। निष्कर्ष के तौर पर भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्ता बनाए रखनी चाहिए और भारतीय धरती पर किसी भी सैन्य अड्डे की अनुमति नहीं देनी चाहिए। भले ही वे कैसे भी तैयार हो और अल्पावधि में विकल्प कितना भी आकर्षक क्यों न हो, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने सैन्य अड्डे बनाने पर विचार करना चाहिए।-मनीष तिवारी
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News