एम.एस.एम.ई. के लिए उत्पादन आधारित अलग प्रोत्साहन स्कीम क्यों नहीं

punjabkesari.in Wednesday, Aug 04, 2021 - 06:30 AM (IST)

हाल ही में राज्यसभा में एम.एस.एम.ई. मंत्री नारायण राणे ने एक सवाल के जवाब में कहा कि एम.एस.एम.ई. (माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजिज) क्षेत्र के लिए समर्पित पी.एल.आई. (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसैंटिव) यानी उत्पादन आधारित अलग प्रोत्साहन स्कीम के लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। राणे से यह भी पूछा गया कि क्या नीति आयोग पी.एल.आई. स्कीम को दो भागों में विभाजित करने पर विचार कर रहा है- पहला उच्च उत्पादन लक्ष्यों वाली बड़ी कंपनियों के लिए एक बड़ी योजना और दूसरा एम.एस.एम.ई. के लिए? राणे ने एक लिखित जवाब में कहा, ‘‘जहां तक नीति आयोग का सवाल है, अभी तक एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के लिए समॢपत पी.एल.आई. स्कीम के लिए विचाराधीन कोई प्रस्ताव नहीं है।’’ 

महामारी के कारण लॉकडाऊन से उबरने के लिए पी.एल.आई. स्कीम के तहत घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों की वृद्धिशील बिक्री पर प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है। देश में मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां स्थापित करने के लिए विदेशी कंपनियों को आमंत्रित करने के अलावा, इस स्कीम में स्थानीय कंपनियों के लिए भारत में उत्पादन और विनिर्माण का विस्तार करने के लिए भी प्रोत्साहित करने का प्रावधान है। हालांकि, महामारी के कारण, 2020-21 में आयात 18 प्रतिशत घटकर 388.92 अरब अमरीकी डॉलर हो गया, जबकि 2019-20 के दौरान यह 474.71 अरब अमरीकी डॉलर था। 

पी.एल.आई. स्कीम से आयात पर खर्च होने वाली भारी विदेशी मुद्रा में कटौती, चीन पर निर्भरता कम करने (देश में कुल आयात का 16 प्रतिशत चीन से) और देश में बढ़ते बेरोजगारों को रोजगार की उम्मीद, एम.एस.एम.ई. को आगे बढ़ाए बगैर कैसे पूरी हो सकती है? महामारी की दूसरी लहर से उबरने के बाद अब जहां एम.एस.एम.ई. के लिए भी आॢथक संकट से उबरने का सही समय है, ऐसे में उन्हें भी सरकार से प्रोत्साहन की जरूरत है। भारत की अर्थव्यवस्था कैसे ठीक होती है, यह इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि एम.एस.एम.ई. संकट से कैसे उबरते हैं क्योंकि यह क्षेत्र हमेशा देश की आॢथक स्थिति के लिए महत्वपूर्ण रहा है। 

कृषि के बाद एम.एस.एम.ई. दूसरा सबसे बड़ा रोजगारदाता है जो करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। देश की जी.डी.पी. में इसका 30 प्रतिशत योगदान है और निर्यात में 48 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बावजूद इसके मौजूदा पी.एल.आई. स्की स ज्यादातर बड़ी कंपनियों के लिए बनाई गई हैं। यदि सरकार मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में आत्मनिर्भरता चाहती है, तो एम.एस.एम.ई. के लिए समॢपत अलग से पी.एल.आई. स्कीम बहुत जरूरी है। 

मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए 13 औद्योगिक क्षेत्रों के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन का प्रावधान है लेकिन इसमें विशिष्ट क्षेत्रों के कुछ उद्योगों के लिए योजनाओं की घोषणा की गई है, जिनमें चिकित्सा उपकरण, फार्मास्यूटिकल, मोबाइल और उपकरण निर्माता, ऑटोमोबाइल और ऑटो पुर्जे, दूरसंचार और नैटवर्किंग उत्पाद, उन्नत रसायन विज्ञान सैल बैटरी, कपड़ा, खाद्य उत्पाद, सौर मॉड्यूल, स्पैशल स्टील और इलैक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी उत्पाद शामिल हैं। 

मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर के 13 विशिष्ट उद्योगों के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपए की पी.एल.आई. स्की स में नीति निर्धारकों द्वारा शर्तें ही ज्यादातर बड़ी कंपनियों को ध्यान में रखकर तय की गई हैं। ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनैंट मैन्युफैक्चरर्स को 57,042 करोड़ रुपए की पी.एल.आई. स्कीम का एक बड़ा हिस्सा केवल 5-7 बड़ी ऑटोमोबाइल और 15-20 बड़ी ऑटो कंपोनैंट कंपनियों को मिलना तय है जबकि देश के हजारों एम.एस.एम.ई. इस स्कीम से बाहर हैं। 

ऑटोमोबाइल उद्योग की पी.एल.आई. स्कीम का कटु सत्य यह है कि 57,042 करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज में से एक भी धेला एम.एस.एम.ई. के हाथ नहीं आने वाला। अगर कुछ बड़े उद्योगों को एम.एस.एम.ई. के हितों को ताक पर रखकर प्रोत्साहित किया जाता है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सिद्धांत-‘सबका साथ, सबका विकास’ कैसे लागू किया जाएगा? इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि जहां बड़े उद्योग और बड़े हो जाएंगे और छोटे उन पर ज्यादा निर्भर हो जाएंगे। 

प्रोत्साहन के लिए ‘चैंपियंस’ के नाम पर चंद बड़ी कंपनियों का चयन न केवल एक भेदभावपूर्ण नीति है; बल्कि इससे न उद्देश्य की पूॢत हो रही है और न ही संवैधानिक रूप से यह सही है। अनुभवजन्य है कि प्रोत्साहन पैकेज को आर्थिक तौर पर आकार देने के लिए समग्र विकास को ध्यान में रखा जाना चाहिए। देश के नीति निर्माताओं को एम.एस.एम.ई. के उत्पादन आधारित वित्तीय प्रोत्साहन के लिए पात्रता के बुनियादी मानदंडों में ढील पर विचार किए जाने की स त जरूरत है। 

आगे का रास्ता : हाल ही में ट्रेडर्स को भी एम.एस.एम.ई. की श्रेणी में शामिल किए जाने से उल्टा आयात को प्रोत्साहन मिलेगा जिससे कई मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां भी देश में उत्पादन की बजाय आयात का कारोबार करना पसंद करेंगी। यदि सरकार मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में आत्मनिर्भरता बढ़ाना चाहती है तो उसे एम.एस.एम.ई. के लिए एक अलग पी.एल.आई. योजना पर विचार करना चाहिए क्योंकि इसी सैक्टर में मैन्युफैक्चरिंग थोक में होती है।

भारत अभी भी बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है, जिस पर भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा का खर्च हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। एम.एस.एम.ई. को समॢपत एक अलग पी.एल.आई. स्कीम जहां देश की आयात निर्भरता कम करने का बेहतर विकल्प है, वहीं इससे नौकरियों के भी अधिक अवसर पैदा होंगे। (सोनालीका ग्रुप के वाइस चेयरमैन, कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब राज्य योजना बोर्ड के वाइस चेयरमैन)-अमृत सागर मित्तल


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