मंत्री जी और सरकार की नीट-24 परीक्षा

punjabkesari.in Friday, Jul 19, 2024 - 05:49 AM (IST)

मैडीकल प्रवेश परीक्षा का मामला इस बार जहां पहुंचा है उसमें साफ लगता है कि देश भर के बच्चे और अभिभावक तथा सुप्रीम कोर्ट इसे किसी साफ नतीजे तक पहुंचाए बगैर नहीं रहेंगे। यह बात अदालत भी जानती होगी, लेकिन वह एक बार में अपनी शक्ति का उपयोग करके अफरातफरी मचाना नहीं चाहती होगी। सो उसने कई तरह के सवाल इस परीक्षा का संचालन करने वाली नैशनल टैसिं्टंग एजैंसी (एन.टी.ए.) और सरकार के सामने रखे और यह प्रयास भी किया कि सारे बच्चों को दोबारा परीक्षा में बैठाने या व्यवस्था को ज्यादा परेशान किए बिना कुछ ‘लोकल आप्रेशन’ से बीमारी ठीक हो जाए तो वह भी किया जाए। पहले उसने काऊंसङ्क्षलग रोकने पर बंदिश नहीं लगाने का फैसला दिया था। 

पर इन सारी कोशिशों में चालीस दिन से ज्यादा का कीमती समय निकल चुका है। कीमती इसलिए कि अब तक बच्चों की काऊंसङ्क्षलग और नामांकन का काम पूरा हो चुका होता और कई जगह पढ़ाई भी शुरू हो जाती। देरी की शुद्ध वजह केंद्र सरकार और उसकी इस एजैंसी एन.टी.ए. द्वारा की जा रही शरारतें हैं। शरारत ही कहना ज्यादा उचित है क्योंकि इन दोनों का व्यवहार ऐसा है जैसे इनको पता ही नहीं है कि पेपर लीक हुआ और परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। पेपर लीक की कथा तो परीक्षा की तारीख से पहले ही शुरू हुई और दिन-ब-दिन नए साक्ष्य और अपराधी सामने आते जाने से इसकी व्यापकता, भयावहता और इसमें शामिल लोगों की ताकत का रहस्य खुलता जा रहा है। जब लीक कराने के खेल के छुटभैये पोस्ट डेटेड चैक से भुगतान लेने जैसे व्यवहार चला रहे थे तब उनकी पहुंच, दु:साहस और ऊपर से कनैक्शन के बारे में सहज ही सोचा जा सकता है। यह तो भला हो बिहार पुलिस के एक जुनूनी अधिकारी का जिसने जान जोखिम में डालकर इस पूरे षड्यंत्रकारी नैटवर्क को नंगा दिखाने की शुरूआत की। 

हम देख रहे हैं कि रोज नई गिरफ्तारियां हो रही हैं और रोज नए साक्ष्य मिल रहे हैं। अभी ही जो तस्वीर उभर रही है वह कई-कई राज्यों में 50 से 100 करोड़ रुपए तक के लेन-देन की ओर इशारा करती है। और यह संबंधों या विचारधारा के आधार पर कुछ बच्चे- बच्चियों को ‘फेवर’ करने की जगह एक धंधे के रूप में, वाॢषक कमाई के अवसर के रूप में सामने आ चुका है। और जिस तरह से सरकार, मानव संसाधन मंत्री और एन.टी.ए. ने पहले दिन से इस मामले में आचरण किया है वह बताता है कि वे न तो इस मामले में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं, न अपना दोष या चूक मानने को तैयार हैं और न ही आगे से ऐसी गलती न हो इसका इंतजाम करना चाहते हैं। मंत्री महोदय तो पहले दिन से पेपर लीक न होने का तमगा बांटने में लग गए थे। जो एकमात्र कार्रवाई हुई है वह एन.टी.ए. के प्रमुख का तबादला है-उनको भी किसी तरह की सजा नहीं मिली है। ये वही सज्जन हैं जिन्हें मध्य प्रदेश में व्यापक करवाने का अनुभव है और आज भी उस मामले में कुछ नहीं हुआ है जबकि उसे सामने लाने वाले कितने ही लोग मारे जा चुके हैं। 

जब मंत्री जी पेपर लीक मानने लगे तो उनका मंत्रालय और एन.टी.ए. इसे सीमित लीक बताने में लगा है। और जगह तो नहीं लेकिन अदालत में सरकार और एन.टी.ए. की तरफ से दी जाने वाली दलीलें उनकी मंशा का सबसे अच्छा प्रमाण हैं। लगता ही नहीं कि इतना बड़ा अपराध हुआ है। सारी कोशिश मामले को ढकने और रफा-दफा करने की लगती है। पर जैसा कहा गया है ऐसा हो पाना अब असंभव है। और यह बोलने में भी हर्ज नहीं कि अब 24 लाख विद्यार्थियों और आगे के वर्षों में परीक्षा देने वाले बच्चे-बच्चियों की परीक्षा तो ली ही जाएगी, धर्मेन्द्र प्रधान और नरेंद्र मोदी सरकार की परीक्षा अभी से शुरू हो चली है। जितना वक्त बीत रहा है उनकी परीक्षा और मुश्किल होती जा रही है। अभी अदालत तो सुनवाई करके जल्दी फैसला देगी, क्योंकि उसे बच्चों के एकैडमिक साल की चिंता है और अगर दोबारा परीक्षा कराने का आदेश हुआ तो यह लगभग एक समैस्टर का वक्त बर्बाद करेगा। 

दूसरा उपाय अब दिखता भी नहीं। और सरकार की चले तो उसकी जांच और सुझाव का दौर ङ्क्षखचता जाएगा और विद्यार्थी तथा उनके मां-बाप थक-हारकर चुप बैठ जाएंगे। पर मामला ऐसा है और इसमें इन 24 लाख परिवारों का ही नहीं आगे बैठने वाले बच्चों का भी इतना कुछ दाव पर लगा है कि वे चुप नहीं बैठ पाएंगे। और सरकार अपनी तरफ से जो भी दाव-पेंच चलेगी, उनका सरकार की मंशा पर शक बढ़ता जाएगा। यह स्थिति प्रधान और मोदी जी के लिए ज्यादा महंगी साबित होगी। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने पेपर लीक पर सख्त सजा के प्रावधान के कानून बनाए हैं। पर लीक रोकना पहली जरूरत है। और उसके लिए चीन जैसे देशों की परीक्षा व्यवस्था से सीखना हो तो वह भी किया जा सकता है। उससे ज्यादा अच्छी चीज परीक्षा को विकेंद्रित करना होगा। 

हर राज्य एक तारीख और एक पाठ्यक्रम के आधार पर प्रवेश परीक्षा कराए। एक हद तक पाठ्यक्रम में भी विविधता मानी जा सकती है। या फिर 7 चरण के चुनाव की तरफ परीक्षा को भी फेज के हिसाब से किया जाए। इस प्रसंग में तो पूरा पढऩे-लिखने वाला समाज ही परीक्षा दे रहा है और उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा है।-अरविंद मोहन
 


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