गुजरात से उत्तर भारतीयों का पलायन: विभाजनकारी राजनीति का एक और वीभत्स रूप

punjabkesari.in Friday, Oct 12, 2018 - 04:56 AM (IST)

हाल ही में गुजरात में जिस प्रकार उत्तर भारतीयों को धमकाने और पलायन के लिए विवश करने का मामला सामने आया है, उसने स्वतंत्र भारत में सक्रिय विभाजनकारी राजनीतिक मानसिकता को पुन: स्पष्ट कर दिया है। देश में लम्बे कालखंड से क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु कभी दलित, पाटीदार, जाट, गुर्जर, मराठा तो कभी सवर्ण समुदाय के नाम पर सामाजिक समरसता का गला घोंटने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। इस हिंसा के माध्यम से गुजरात को विकास की पटरी से उतारने का षड्यंत्र रचा जा रहा है? 

ऐसा पहली बार नहीं है कि देश में एक भाग के लोगों को किसी अन्य क्षेत्र में अवांछित बताकर धमकाया जा रहा हो। गुजरात से पहले महाराष्ट्र में भी ऐसा पागलपन देखने को मिल चुका है। पूर्वोत्तर में भी कई बार ये लोग वहां के अराजक तत्वों की घृणा झेल चुके हैं। दुर्भाग्य से उत्तर भारतीय ही अधिकतर इसका शिकार होते हैं। गुजरात में अभी जो कुछ हो रहा है, उसकी जड़ें 28 सितम्बर को साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में 14 माह की बच्ची से बलात्कार की घटना में मिलती हैं। मामले में आरोपी बिहार निवासी रविंद्र साहू नाम के प्रवासी मजदूर को गिरफ्तार कर लिया गया था। 

स्वाभाविक रूप से घटना को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश था, जिसे भड़काने और गैर-गुजरातियों के प्रति वैमनस्य की भावना पैदा करने का आरोप उस क्षत्रिय ठाकोर सेना पर लग रहा है, जिसका नेतृत्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी और पार्टी विधायक अल्पेश ठाकोर करते हैं। बीते दिनों अल्पेश ने ही सार्वजनिक रूप से घृणा फैलाने वाला वक्तव्य देते हुए कहा था, ‘‘प्रवासियों के कारण अपराध बढ़ गया है। उनके कारण मेरे गुजरातियों  को रोजगार नहीं मिल रहा है। क्या गुजरात ऐसे लोगों के लिए है?’’ गुजरात में हिन्दी भाषियों पर हमले को लेकर पुलिस ने 300 से अधिक  लोगों को गिरफ्तार किया है। 

नि:संदेह समाज में किसी भी अपराध के उन्मूलन में कड़े से कड़े कानून की भी एक सीमा होती है। यदि सरकार की इच्छाशक्ति और सख्त कानूनी प्रावधानों से समाज को अपराध मुक्त किया जा सकता है तो कठोर विधि-नियमों से देश बलात्कार जैसे घृणित और जघन्य अपराधों से वर्षों पहले मुक्त हो गया होता। किसी भी अपराध का तुरंत संज्ञान, पुलिस द्वारा तत्काल उचित कार्रवाई, न्यायालय द्वारा अविलम्ब निर्णय, समाज में नैतिक मूल्यों के प्रति चेतना और संस्कार होने से समाज के भीतर अपराधों में कमी लाना संभव है किन्तु आपराधिक घटना के लिए किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को मारना-पीटना और उन्हें पलायन के लिए विवश करना क्या न्यायसंगत है? क्या अपराधी का कोई विशेष क्षेत्र होता है? 

हमले के भय से प्रवासी श्रमिकों के पलायन से गुजरात की औद्योगिक इकाइयां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। इसका मुख्य कारण, अधिकतर इकाइयों का पूरी तरह से बाहरी श्रमिकों पर आश्रित होना है। इस प्रदेश में अन्य राज्यों से आए लगभग 80 लाख श्रमिक कार्यरत हैं, जो हीरा, कपड़ा, टाइल्स, रसायन, ऑटो, फार्मा और लघु-मध्यम विनिर्माण इकाइयों में काम करते हैं। गुजरात औद्योगिक विकास निगम चांगोदर के अध्यक्ष राजेंद्र शाह के अनुसार, ‘‘हमले के भय से 10 से 40 प्रतिशत श्रमिक काम छोड़कर चले गए हैं, जिससे कई फैक्टरियों का काम बंद हो गया है।’’ 

क्या प्रवासी श्रमिक केवल गुजरात तक सीमित हैं, दिल्ली-एन.सी.आर., हरियाणा और पंजाब में प्रवासी श्रमिकों की बड़ी संख्या बसती है, जो भवन निर्माण, सड़क निर्माण और कृषि आदि से जुड़े कार्यों में कड़ी मेहनत करते हुए अपना जीवन-यापन करते हैं।  पंजाब पृथ्वी की सबसे उपजाऊ भूमियों में से एक है। यूं तो यह प्रदेश गेहूं के उत्पादन के लिए विख्यात है, इसके विपरीत इस वर्ष मार्च में पंजाब को गेहूं की बजाय चावल की उत्कृष्ट खेती के लिए प्रथम पुरस्कार दिया गया है। क्या ये सब प्रवासी कृषि मजदूरों के बिना संभव है, जिसमें अधिकतर संख्या पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की है? एक आंकड़े के अनुसार, पंजाब में 70-80 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों पर धान की बिजाई का काम निर्भर है। 

औद्योगिक क्षेत्र लुधियाना, जिसे अक्सर भारत का मैनचैस्टर भी कहा जाता है, वहां अकेले प्रवासी मजदूरों की अनुमानित संख्या 14 लाख है। बीते कुछ वर्षों से पंजाब में इन मजदूरों की संख्या में लगातार कमी आ रही है, जिससे प्रदेश का किसान और राज्य का उत्पादन (कृषि सहित) प्रभावित हो रहा है। किसी भी क्षेत्र में प्रवासी का अर्थ मजदूरों या श्रमिकों से नहीं होता है। आज के दौर में तकनीक भी प्रवास का एक रूप है। क्या यह सत्य नहीं कि पश्चिमी देशों में बनी गाडिय़ां भारत सहित शेष विश्व में बिक रही हैं और अमरीकी फोन भारतीय बाजार में जगह बना चुका है? वर्तमान समय में यदि अमरीका और चीन की संरक्षणवादी नीतियों को छोड़ दें तो निर्विवाद रूप से आज वैश्विक आर्थिकी प्रवासी श्रमिकों, प्रवासी उत्पाद और प्रवासी उपभोक्ताओं के दम पर चल रही है। 

इटली में रहने वाले प्रवासी भारतीय मूल के सिखों के कारण वहां दूध उद्योग काफी चमक गया है। स्थिति यह हो गई है कि यदि ये लोग काम नहीं करें तो दूध उत्पादन ठप्प हो सकता है। इटली के रहने वाले अधिकतर युवा गाय-भैंस की आवश्यक देखभाल के लिए होने वाली मेहनत से दूर ही रहना पसंद करते हैं, जो भारत से इटली पहुंचे सिखों और पंजाबी समुदाय के लोगों के लिए वरदान बन गया। मेहनती सिखों के लिए यह एक ऐसा काम है, जिसके लिए उन्हें अलग से कुछ सीखना नहीं पड़ता। भारतीय परंपराओं से जुड़े होने के कारण वे इस कार्य से परिचित हैं, जिस कारण उन्होंने वहां के दूध व्यवसाय पर गहरी पकड़ बना ली है। इटली के सबसे बड़े कृषि संगठन से जुड़े एक अधिकारी सिमोन  सोलाफानेली के अनुसार, ‘‘प्रवासी भारतीय समुदाय की एक पूरी पीढ़ी इस काम को अच्छी तरह अपना चुकी है और इसका कोई विकल्प नहीं है।’’ 

इसी तरह ईसाई बहुल कनाडा में भी प्रवासी भारतीयों का वर्चस्व किसी से छिपा नहीं है। वर्तमान कनाडाई मंत्रिमंडल में चार सिख मंत्री (रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन सहित) हैं। यह उपलब्धि केवल इटली या फिर कनाडा तक सीमित नहीं है। विश्व के 48 देशों में 3 करोड़ से अधिक प्रवासी भारतीय बसे हैं, जिनमें से अधिकतर ने संबंधित देशों में सामाजिक और सांस्कृतिक विषमताओं के बीच वहां के आॢथक,  शैक्षणिक और व्यावसायिक क्षेत्र को मजबूती दी है। ये सभी कृषि, मजदूर, व्यापारी, शिक्षक, चिकित्सक, वैज्ञानिक, अधिवक्ता, अभियंता, प्रबंधक, प्रशासक आदि के रूप में कार्यरत हैं। वैश्विक स्तर पर सूचना और तकनीकी क्षेत्र में क्रांति लाने में भी प्रवासी भारतीयों की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत से अमरीका जाकर बसे पटेल समुदाय के लोग गत कई दशकों से वहां विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत हैं। अमरीकी आतिथ्य उद्योग में  पटेल मोटल (होटल) की तूती बोलती है। 

भारत में भी कई प्रवासी अपनी दक्षता के आधार पर उचित स्थान पाने में सफल हुए हैं। देश के जिस सबसे पुराने राजनीतिक दल के विधायक अल्पेश ठाकोर और उनके समर्थकों पर आज गुजरात में गैर-गुजराती प्रवासियों के विरुद्ध जहर उगलने और उन्हें प्रदेश से पलायन के लिए विवश करने का आरोप लग रहा है, उसी दल की पूर्व अध्यक्षा और वर्तमान पार्टी अध्यक्ष की माता सोनिया गांधी भी स्वयं इतालवी मूल की भारतीय नागरिक हैं, जिनकी अध्यक्षता में यू.पी.ए. ने डा. मनमोहन सिंह सरकार के रूप में देश पर दस वर्षों तक लगातार शासन किया। 

यह सत्य है कि रोजगार के संदर्भ में अक्सर प्रवासियों के कारण संबंधित क्षेत्र के स्थानीय लोगों के एक वर्ग में नाराजगी रहती है,जिसे दूर करने की आवश्यकता है किंतु इसके लिए क्षेत्र में हिंसा और वैमनस्य को बढ़ावा देना उस विभाजनकारी औपनिवेशिक मानसिकता का मूर्तरूप है, जिसका एकमात्र उद्देश्य किसी भी सामाजिक समस्या को शाश्वत बनाए रखना है। तथाकथित सैकुलरिस्ट, विशेषकर कांग्रेस अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए मई 2014 के बाद से इसी विघटनकारी मानसिकता पर आश्रित है।-बलबीर पुंज


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Pardeep

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